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निमेष कमीशन रिपोर्ट 4 जून को दिल्ली में जारी किया जाएगा

BeyondHeadlines News Desk

2007 में हुए उत्तर प्रदेश सीरियल ब्लास्ट के आरोपी मौलाना तारिक़ कासमी और खालिद मुजाहिद पर बने जस्टिस आर. डी. निमेष कमीशन रिपोर्ट को 4 जून को दिल्ली के कांस्टेट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हाल में दिन के 12 बजे मीडिया के बीच ‘पीपुल्स कैम्पेन अगेंस्ट पोलिटिक्स आफ टेरर’ (पीसीपीटी) आम करने जा रही है.

स्पष्ट रहे नवंबर 2007 में यूपी कचहरी धमाकों के बाद तारिक़ कासमी और खालिद मुजाहिद के गिरफ्तार किए जाने के यूपी एसटीएफ के दावों पर उठे सवालों पर तत्कालीन बसपा सरकार द्वारा जांच के लिए आर. डी. निमेष जांच आयोग का गठन किया गया.  जस्टिस निमेष ने अपनी रिपोर्ट पिछले साल 31 अग्स्त 2012 को ही वर्तमान सपा सरकार को सौंप दिया था. ऐसे में इस रिपोर्ट को सरकार को जारी कर देना चाहिए था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया.  पीसीपीटी के सदस्य अमीक जामेई ने BeyondHeadlines से बातचीत में बताया कि सरकार के द्वारा 7 महीने बाद भी निमेष रिपोर्ट जारी न करना उसकी नीयत पर सवाल उठाता है. ऐसे में हम यह महसूस करते हुए कि इस रिपोर्ट का सार्वजनिक होना जनहित में है!

उन्होंने बताया कि पिपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर (पीसीपीटी) को यह रिपोर्ट गुप्त सूत्रों से हाथ लगी, जिसमें इन दो युवको की रिहाई के लिए आन्दोलन कर्ताओं, सम्बंधित परिवार, अधिवक्ता और प्रेस की कही बाते सच साबित हुई जिसे जस्टिस निमेष ने भी कहा की दोनों युवको की संलिप्तता संदिग्ध है.

Nimesh Commission Report will be released on June 4 in Delhi

पीसीपीटी के आन्दोलन से सरकार ने जस्टिस निमेष कमीशन को आम तो नहीं किया लेकिन इसकी बुनियाद पर दोनों युवको को 17 मई 2013 को केस वापस लेने की अर्जी बाराबंकी कोर्ट में दाखिल कर दी. जब यह नौजवान रिहाई के नजदीक थे, इनमें से एक युवक खालिद मुजाहिद के बेरहमी से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने क़त्ल कर दिया यह कहते हुए कि वो हार्ट अटैक से मर गया. पीसीपीटी पोस्ट मार्टम के पहले साक्ष्यों को देख कर इसे कोल्ड बलाडेड मर्डर मानती है.

वो सवाल करते हुए पूछते हैं कि सवाल यह है कि भारत की जेलों में यह कैसी जघन्य हत्याए हो रही हैं, इसके लिए जो लोग जिम्मेदार है उनका क्या किया जाना चाहिए? क्या इसे तरह राजनीतिक दल भविष्य में अपने प्रतिद्वंदियों को ऐसे ही जेलों में निबटाती रहेंगी? क्या यूं ही किसी ख़ास जहन के साथ किसी खास तबके की हत्या होती रहेगी और सच का गला यूं ही घोटा जाता रहेगा?

पीसीपीटी के सदस्यों ने बताया कि हमें इस बात का आभास है कि इस रिपोर्ट को सरेआम करना उत्तर प्रदेश सरकार की अवमानना है और हम इसके लिए जोखिम लेने को तैयार हैं, लेकिन यह अब ज़रूरी हो गया है कि सरकार की करनी को जनता के सामने रखा जाये और पुलिस के एक खास तबके में उभर रही साम्प्रदायिकता सोच से देश को रूबरू कराया जाये जो की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष  देश में हमें मंजूर नहीं है.

स्पष्ट रहे कि पीपुल्स कैम्पेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर (पीसीपीटी) एक राजनीतिक आन्दोलन है जो मुख्यता आतंकवाद, अलगाववाद एंव अतिवाद के नाम पर फंसाये गए लोगो की रिहाई के लिए बनाया गया है. जिसे भारत की वामपंथी और सेकूलर ताकतों का भरपूर समर्थन हासिल है.

पीसीपीटी यह मानती है की भारत में उभरे चरमपंथ के खतरे को बड़ी मज़बूती से लड़ा जाना चाहिए लेकिन पिछले 15 सालो में बहुतेरों मामलो में देश की अदालतों के ज़रिये यह प्रकाश में आया है कि मुस्लिम नौजवान 16-18 सालो बाद कोर्ट से बाइज़्ज़त बरी हुए है. हमनें इनसे मुलाकाते की. इनके दर्द को देश के सामने रखा. सवाल यह उठा कि इनकी जिन्दगियाँ को बर्बाद करने का हक़ किसे था? निर्दोषों को धमाके में उड़ाने वाले असली मुजरिम कौन है? क्या हम लोकतंत्र में पुलिस को ऐसी छूट दे सकते है कि वह किसी भी खास सम्प्रदाय या समुदाय को किसी  खास सोच के साथ निशाना बनाये?

इन्हीं सवालो को लेकर पीसीपीटी वजूद में आया. हमारा मानना है कि देश में लंबित मामलो को एक साल के अन्दर स्पीडी ट्रायल के जरिये निबटारा हो. जो शख्स दोषी पाया जाये उसे सज़ा दी जाये और जो बेकसूर हो, उन्हें रिहा किया जाये. सालो बाद निर्दोष रिहा हुए युवको को उचित मुवावजा देकर उनका पुनर्वास किया जाये व दोषी पुलिस अफसरों के खिलाफ़ सज़ा का प्रावधान हो तथा 90 दिन के अन्दर फाईनल चार्जशीट दाखिल किये जाये.

4 जून को होने वाले इस कांफ्रेंस को पीसीपीटी के लीडर अतुल कुमार अंजान, राष्ट्रिय सचिव भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और मुहम्मद अदीब ( राज्य सभा सांसद) सहित पीसीपीटी के अन्य गणमान्य सदस्य भी हिस्सा लेंगे.

निमेष कमीशन की रिपोर्ट के मुख्य अंश आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं :

निमेष आयोग ने उठाए यूपी पुलिस पर सवाल

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