संस्कृत विषय के साथ शाहेरा बानू बनी यूनिवर्सिटी टॉपर

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Ilyas khan Pathan for BeyondHeadlines

राजकोट : चाहे हम भारतीय किसी खास भाषा को धर्म के साथ जोड़कर देखते आए हों, लेकिन भाषा का कोई धर्म नहीं होता. भाषा का किसी सम्प्रदाय से कोई रिश्ता नहीं होता. सच तो यह है कि धर्म के सांचों में बांट कर हम भाषा का अहित करने का ही काम करते हैं. इस बात को सच साबित कर रहे हैं गुजरात के कई मुस्लिम छात्र व छात्राएं, जो उर्दू के बजाए संस्कृत को पढ़ना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं. और न सिर्फ पढ़ रहे हैं, बल्कि इस भाषा के भविष्य के लिए बेहतरीन कार्य भी करने की भी सोच रहे हैं.  इनका इस भाषा में इतना लगाव है कि उन्होंने इस विषय को लेकर यूनिवर्सिटी टॉप भी किया है.

गुजरात के सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी में हाल ही में जारी किये गए बी.ए. के परिणामो में राजकोट ज़िले के मोरबी शहर के सबजेल इलाके की रहने वाली श्रीमती आर.ओ.पटेल महिला कॉलेज की छात्रा शाहेरा बानू अनवर खान पठान ने संस्कृत विषय में 81.59 फीसदी नम्बरों के साथ यूनिवर्सिटी टॉप किया है. बीए के प्रथम व द्वितीय वर्ष में भी शाहेरा ही यूनिवर्सिटी टॉपर थी.

शाहेरा बानू अनवर खान पठान शाहेरा बानू एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की है. शाहेरा के पिता अनवर खान मकानों में पुताई का काम करके परिवार का पालन पोषण करते हैं. 6 सदस्यों के परिवार में दो भाई और दो बहनें है, जिनमें शाहेरा सबसे छोटी है. शाहेरा बताती है कि उसे संस्कृत विषय में बचपन से ही लगाव था.

शाहेरा BeyondHeadlines से बातचीत में बताती है कि अगर भारत के प्राचीन संस्कृति को समझना है तो संस्कृत बहुत ही फायदेमंद भाषा है. सच पूछे तो यह संस्कृत की ही देन है कि मैं हर साल यूनिवर्सिटी टॉपर रही हूं. यूँ तो अगर देखा जाए तो संस्कृत भारी शब्दों और कठिन व्याकरण की वजह से जटिल विषय है, परन्तु थोड़ा सा समय इस भाषा को दिया जाए तो फिर इससे सरल कोई भाषा नहीं है.

वैसे शाहेरा संस्कृत विषय में पारंगत होने के साथ-साथ अरबी और उर्दू भाषा का भी पुख्ता ज्ञान रखती है. शाहेरा कहती है कि “किसी भी भाषा का मुल्यांकन धर्म, समूह या जाति के आधार पर नहीं करना चाहिए. मैंने जितनी महेनत अरबी और उर्दू भाषा का ज्ञान प्राप्त करने में की है, उतनी ही मेहनत मैंने संस्कृत भाषा सीखने की लिए भी की है. भविष्य में मेरी इच्छा संस्कृत विषय में एम.ए. के बाद पी.एच.ड़ी. डिग्री भी संस्कृत विषय के साथ ही करने का इरादा है. और फिर इसी विषय की प्रोफेसर भी बनूंगी.

यह कहानी सिर्फ शाहेरा की ही नहीं है, बल्कि गुजरात यूनिवसिर्टी के बी.ए. के रिजल्ट में भी संस्कृत के लिए दिए जाने वाले मेडल इस बार कई मुस्लिम छात्रों ने ही हासिल की है. पहले दो मेडल पंचमहल जिले के देवगढ़ बरिया के वाई. एस. आर्ट्स ऐंड कॉमर्स कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र तैय्यब शेख को मिला है. संस्कृत के लिए मिलने वाला तीसरा मेडल यास्मीन बानू ने जीता. यास्मीन संत रामपूर के आदिवासी आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज की छात्रा है.

तैय्यब अब गोधरा कॉलेज में बीएड कर रहा है. संस्कृत के प्रति दिलचस्पी का कारण बताते हुए वह कहता है कि टोकरवा के प्राइमरी स्कूल में उसे संस्कृत के प्रति लगाव हुआ. वहां अध्यापिकाएं रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाती थीं. उनके असर में उसने संस्कृत पढ़नी शुरू कर दी. अब वह संस्कृत को ही अपना करियर बनाना चाहता है. यह भी एम. ए. के बाद संस्कृत टीचर बनना चाहता है.

तैय्यब शेख को टीचर्स ट्रेनिंग कर लेने के बावजूद जब प्राइमरी स्कूल में नौकरी नहीं मिली तो उसने ग्रेजुएशन करने की ठान ली. बी.ए. के लिए विषय लेते समय उसने संस्कृत को भी चुना. परिवार का माहौल ऐसा नहीं था कि तैय्यब को संस्कृत पढ़ाई जाती. वह बताता है कि बगैर पढ़े-लिखे किसान मां-बाप सिर्फ यह चाहते थे कि मेरा रिजल्ट अच्छा रहे.

उधर यास्मीन बानू बताती है कि उसे संस्कृत से लगाव बारहवीं की पढ़ाई के दौरान हुआ. उसके पिता फल बेचते हैं. उसे संस्कृत लेने पर घर का कोई विरोध नहीं सहना पड़ा. पिता और उनके दोस्त रफीक शेख ने संस्कृत पढ़ने के लिए उसे प्रोत्साहित ही किया. वह संत रामपुर के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती है. वह भी शेख की तरह संस्कृत में एम.ए. करना और संस्कृत पढ़ाना चाहती है.

यही नहीं, दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने भी एम.फिल करने वाले छात्र भी संस्कृत भाषा को सीख रहे हैं. BeyondHeadlines से जुड़े अफ़रोज़ आलम साहिल भी बताते हैं कि वो भी अपने एम.फिल के पढ़ाई के दौरान संस्कृत भाषा सीखा है.

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