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छोटा सिख बच्चा और ऐसे कंडक्टर…

Sayed Parwez for BeyondHeadlines

ऑफिस जाने के लिए बदरपुर मेट्रो स्टेशन पर था. मेरे आगे एक माँ और उसके साथ उसके दो बच्चे, जिसमें एक  लड़का और एक लड़की थी. उसके बच्चे के पहनावे से वह सिख धर्म की लगती थी.

खैर मैं  पीछे-पीछे चल रहा था. उसके बाद अचानक वो नज़रों से उझल हो गए. कारण  भीड़ भी थी. मैं मेट्रो  प्लेटफार्म पर पहुँच चुका था. मेट्रो आई और मैं चढ़ा. अचानक वह माँ बच्चे दुबारा दिखाई दिए.

मैंने देखा कि वह मेट्रो के अन्दर-अन्दर ही  महिला कोच की तरफ आ रहे थे. माँ और लड़की तो महिला कोच में घुस गयी,  लेकिन उसका बच्चा नहीं घुसा. उसकी माँ ने उससे महिला कोच में आने के लिए भी कहा. लेकिन वह नहीं गया. जबकि वह जा सकता था. उम्र से बच्चा 9  वर्ष का होगा.

in delhi metro

उसने स्पष्टता से कहा मम्मी यह तो महिला कोच है. इसमें जाना मना है. उसकी बातों से यह अहसास ज़रुर हुआ. और खास कर ऐसे व्यक्तियों को सबक लेना चाहिए जो उसकी उम्र और पद से बड़े होने के बाद भी महिला कोच में चढ़ जाते हैं. कोई महिला अकेले में दिखे तो उसके साथ अभद्र व्यवहर भी करने से बाज़ नहीं आते.

दरियागंज से 405 नंबर बस में बैठा बदरपुर जा रहा था. बस में भीड़ थी. प्राइवेट सेक्टर की ऑरेंज कलर (DIMTS ) की बस थी. बस की आखिर सीट से पहले मैं बैठा था. बस का पिछला गेट बिलकुल मेरे पीछे था. बस में एक महिला बिलकुल दरवाज़े के पास  खड़ी थी. मेरे मन में यह विचार आया कि वह यहाँ खड़ी क्यों हैं. महिला-सीट पर आसानी से बैठ सकती है. मुझे सीट मिली हुयी थी.

मैंने ध्यान नहीं दिया और मोबाइल की लीड कान में लगाकर गाने सुनने  लगा. बदरपुर आ गया. अपने पीछे देखा तो, महिला वहीं खड़ी थी. तभी कंडेक्टर ने उसे देखा. कंडेक्टर ने अकेली महिला समझ कर उसके तरफ अश्लीलता से देखने लगा. और इशारे भी करने लगा.

तभी तीन-चार लड़के उठ खड़े हुए और कंडेक्टर से बहस करने लगे. पता चला कि वह तीन-चार लड़के उसे साथ थे. इसे देख कर क्या आप अंदाज़ा  लगा सकते कि अकेली महिला कितनी सुरक्षित है.

419 नंबर ऑरेंज कलर बस उसका कंडेक्टर टिकटों की री-सेल्स करता है. और बस में धूम्रपान भी करता दिखा. एक बार उससे मेरी बहस भी हो गयी थी. मैंने कम्प्लेन बुक मांग की तो उसने साफ मना कर दिया और लड़ाई पर उतारू हो गया. आते-जाते एक दिन उससे  बात हुई और पता चला की वह बदरपुर में ही रहता है. और बदरपुर गवर्नमेंट  स्कूल से पढ़ा है.

बदरपुर गवर्नमेंट स्कूल में तो मैंने पढाई नहीं की है, लेकिन हरियाणा के गवर्नमेंट स्कूल से पढाई की है. बदरपुर में मेरे आस-पड़ोस के मित्र  पढ़ते थे. उनसे ही मैंने वहां के टीचरों के बारे में कुछ जानता था. उसने कहा यार तुम तो मित्र हो, लगभग स्कूल भी एक है. और बदरपुर में रहते है तो पडोसी भी हुए. रोज़ आना ही है तो जब बस से उतरों तो टिकट दे देना.

मैंने स्पष्टता से कह दिया स्कूल एक हो सकता है लेकिन सिद्धांत अलग है. ज़रुरत है अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की. जीवन में अगर आप दूसरों से अलग दिखना चाहते हैं तो -ईमानदारी को अपनाये. अगर आप के पास धन-सम्पदा कुछ नहीं है तो क्या हुआ -सत्य तो है. धन-सम्पदा इत्यादि होने के बाद भी अगर आप गलत हैं तो -आप किसी इमानदार व्यक्ति से आँखें मिला कर बात नहीं कर सकते. ज़रुरत है खुद इमानदार बनने की न कि एक दूसरे पर दोषारोपण करने की. सरकार आम लोगों से बनती है, यही आम लोग अपने मतों को 500  रुपये में बेच देते है. और बाद कहते है, विकास नहीं हो रहा, क्यों अपनी गलती नहीं मानते. यह प्रश्न है ?

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