India

एक अपील पॉस्को के लिए बुने गए तथाकथित झूठ के इर्द-गिर्द सच को खोजने के लिए

Saurabh Verma for BeyondHeadlines

ओड़िशा की सरकार यह घोषित कर चुकी है कि पॉस्को  के लिए ज़मीन अधिग्रहण का कार्य पूरा हो गया है और जल्द ही वो दीवारे भी खीच देंगे, जो जंगल बच गए हैं, उन्हें भी जल्द ही काट देंगे (बस एक बार उन्हें पर्यावरण अनुमति मिल जाये) फिर शुरू होगा कारखाना बनाने का काम.

दूसरे शब्दों में कहे तो भारत की सबसे बड़ी विदेशी पूंजी निवेश के खिलाफ सामान्य और ग्रामीण लोगों द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन की सरकार ने हत्या कर दी है.

सच में आखिर हुआ क्या? क्या लोगों ने हार मान ली? या उन्हें दबाने के लिए बल का प्रयोग किया गया? कुल मिलकर क्या पॉस्को प्रतिरोध संघर्ष अभियान अपने अंत की तरफ है?

an appeal for to find the truth of POSCOयह किसी से छिपा नहीं है कि वहां आखिर हुआ क्या है, मीडिया के कुछ वर्गों से खबरें आ रही हैं, इसी तरह लोग महीनों से आतंक में जी रहे हैं और उनके असंतोष को दबाने के लिए क्रूरता की सारी हदे पार की जा रही हैं. अपने पान के खेतों को बचाने पर बूढी औरत को लातों से मारा जा रहा है. इस विध्वंस को रोकने के लिए लोग आत्मदाह करने की कोशिश कर रहे हैं और एक तरह से गोबिंदपुर के लोग आक्रमणकारी सैन्य सुरक्षा बलों के दलों का पूर्ण रूप से शिकार हो रहे है.

हालाँकि वहां से पर्याप्त जानकारी मिली है कि अभी भी वहां आतंक की हवा चल रही है और लोगों के ऊपर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. बड़ी मुश्किल से किसी राजनैतिक पार्टी अथवा संगठन का हो-हल्ला सुनाई पड़ रहा है. सिविल सोसाइटी ने जो अब तक लोगों के साथ मिलकर इसी परियोजना के खिलाफ रैली निकाल रही थी, उन्हीं लोगो ने अब चुप्पी साध ली है.

एक अंजान सी ख़ामोशी इस हवा को भारी बना रही है. ख़ामोशी जिसने पुरजोर रूप से गोबिंदपुर के लोगों की आवाज़ उनके गॉव से बाहर पूरी दुनिया तक जाने से रोक दी. ये ख़ामोशी तभी टूटती है जब सेना के लोगों की चहलक़दमी गोबिंदपुर के किसी घर में जाकर रूकती है.

यह अपील उन सभी लोगों के लिए है जो ये मानते हैं कि इस मुश्किल ख़ामोशी को तोड़ने की ज़रुरत है, तो आइये गोबिंदपुर में आगे आकर अपना कैमरा, क़लम, ब्रुश जो भी आपका हथियार है. उठाइये और इन लोगों की आवाज़ बनिए…

कॉर्पोरेट मीडिया की एक सुर में चलाये जाने वाली पुलिसिया कार्यवाही और बड़ी ही सावधानी से बनाये जाने वाले बयानों का विश्वास बिलकुल मत कीजिये. इसके बजाय आइये साथ मिलकर खोजते है सच को कि क्या सरकार ने सही तरीके से ज़मीन का अधिग्रहण किया है अथवा सब-कुछ कोरा झूठ है. लोगों को जताने के लिए की सबकुछ खत्म हो गया है.

आइये जानते हैं कि क्या पान के खेतो को उजाड़ना ही भूमि अधिग्रहण है. आइये जानते हैं कि कितने लोग अपनी इच्छा से अपनी ज़मीन देने को तेयार हैं और कितने लोग मरते दम तक ज़मीन का एक टुकड़ा भी किसी को नहीं देंगे, और क्या होता है जब वो लोग विरोध करते हैं.

आइये जानते है क्या सब कुछ ख़त्म हो गया है या लोग अभी भी प्रतिरोध कर रहे है. आइये जानते हैं कि बिना पर्यावरण आनुमति के यह परियोजना प्रकृति को अब तक कितना नुकसान पहुंचा चुकी है. आइये जानते है कि यहाँ और कितनी प्राकृतिक आपदा आयेंगी, जबकि 1999 में आये महा चक्रवात ने सब कुछ तबहा कर दिया था.

आइये जानते है कि क्या जटाधारी नदी इस परियोजना से बच पायेगी. आइये इस चुप्पी को तोड़ते है और देश के विशालतम पूंजी निवेश का सच सबके सामने रखते हैं, जो गोबिंदपुर के साधारण लोगों को तबाह कर रहा है…

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