Anurag Bakshi for BeyondHeadlines
दुनिया भर में वैज्ञानिक प्रयोगों व अनुभवों से यह बात पुष्ट हुई है कि जीएम फसलें मानव के साथ-साथ कृषि के लिए भी बेहद नुकसानदायक हैं. जो भारतीय कृषि के लिए बड़े संकट में तब्दील होने जा रहे हैं. कई साल पहले जब भारत ने अमेरिका से गेहूं का आयात किया था तो गेहूं के साथ-साथ कुछ अनजान खतरनाक खरपतवार भी भारत आ गए थे.
अमेरिका के बाद अब भारत के छोटे किसानों की बारी है. महाखरपतवारों का खतरा सिर पर मंडरा रहा है. इसका नजला भारतीय खेती पर पड़ेगा. जीएम फसलों से भारत की खेती तबाह हो जाएगी.
मेरे शब्दों पर ध्यान दें… देश में जल्द ही किसानों की खुदकुशी के आंकड़े और भी तेजी के साथ बढ़ने जा रहे हैं. और इसकी जिम्मेदार जीएम फसलों को भारत में उतारने को आतुर कुछ कृषि वैज्ञानिकों और सरकार होगी.
इन घातक खरपतवारों को नियंत्रित करना बेहद कठिन है. फुलनू 1.32 करोड़ हेक्टेयर में फैल चुकी है और कमोबेश यही हाल कांग्रेस घास का भी है. जो नेपाल के कुल क्षेत्रफल के बराबर के रकमे में फैल चुकी है.
पहले ही खरपतवारों के हमले झेल रहा भारत अब एक नई मुसीबत-महाखरपतवार का सामना कर रहा है. इस खरपतवार को खत्म करना बहुत मुश्किल है. इस पर रासायनिक छिड़काव भी आसानी से असर नहीं करते. यह खतरनाक खरपतवार अमेरिका, कनाडा जैसे उन 26 देशों में महामारी की तरह फैल रही है. जहां जीएम फसलें उगाई जाती हैं. जहां-जहां जीएम फसलों का व्यावसायीकरण होता है. कीट और खरपतवार न केवल इन फसलों से प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेती हैं, बल्कि जल्द ही शैतान की तरह बेकाबू होने लगती हैं.
दस साल पहले कृषि-व्यापार कंपनी मोनसेंटो ने दावा किया था कि उसकी जीएम फसलों से राउंडअप वीडीसाइड्स खरपतवार नहीं फैलता. लेकिन आज अमेरिका की कृषि योग्य भूमि का करीब आधा भाग इस भयानक खरपतवार की जद में आ चुका है. 2010 से 2012 की तीन साल की अल्पावधि में ही इन महाखरपतवारों से प्रभावित इलाका 3.26 करोड़ एकड़ से बढ़कर 6.12 करोड़ एकड़ हो चुका है.
अमेरिका के ही जॉर्जिया प्रांत में एक लाख एकड़ से अधिक जमीन पिगवीड महाखरपतवार की गिरफ्त में आ चुकी है. किसान दस गुना खरपतवार नाशक छिड़काव के बाद भी इसे काबू नहीं कर पा रहे हैं. अब मोनसेंटो कंपनी किसानों को अनेक घातक और यहां तक कि 2,4-डी जैसे प्रतिबंधित कीटनाशकों का घोल मिलाकर छिड़काव की सलाह दे रही है. कनाडा में भी दस लाख एकड़ जमीन राउंडअप वीडीसाइड्स की चपेट में आकर बर्बाद हो चुकी है.
विषैली भूमि और ज़हरीले होते व घटते भूजल के कारण आधुनिक कृषि पारिस्थितिक विनाश की ओर बढ़ रही है. जहां लाइलाज खरपतवारों का राज होगा. न केवल खरपतवार बल्कि नए-नए किस्म के कीटों और सूक्ष्म जीवों पर नियंत्रण के लिए और भी घातक, महंगे और खतरनाक रसायनों पर किसानों की निर्भरता हो जाएगी. जाहिर है कि इसके बावजूद जीत खरपतवारों और कीटों की सेना ही होगी और कृषि संकट तेजी से गहराता चला जाएगा.
उद्योग जगत के लिए घातक कीट और खरपतवार पूरी दुनिया में मोटे मुनाफे के अवसर पैदा करते हैं. जीएम कंपनियां किसानों को फसलों पर अधिक तेज और घातक रासायनिक छिड़काव करने के लिए कह रहे हैं. ये अकसर कई तेज कीटनाशकों का घालमेल होते हैं. कृषि-व्यापार कंपनियों के लिए इसमें दोहरा लाभ है.
अब विश्व की तीन सबसे बड़ी जीएम कंपनियों का 70 प्रतिशत से अधिक वैश्रिवक बीज बाजार पर कब्जा है. इसके अलावा इनका कीटनाशक बाजार पर भी दबदबा है. हमेशा बढ़ने वाली रासायनिक कीटनाशकों की ब्रिकी निश्चित तौर पर जीडीपी में तो वृद्धि करती है. लेकिन पर्यावरण और कृषि के भविष्य पर इसका जो विनाशकारी प्रभाव पड़ता है. उसकी चिंता सरकार को नहीं है.
लाखों एकड़ ज़मीन में जीएम फसल उगाई जा रही हैं और यह जमीन महाकीटों और महाखरपतवारों का अड्डा बन रही है. इस कारण भविष्य में कृषि की दशा बहुत विनाशकारी होने जा रही है. मैं कभी-कभी सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि महाकीट और महाखरपतवार मानव जाति की सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है. मैं जिस अंधकारमय भविष्य की बात कर रहा हूं, वह दूर की कौड़ी नहीं है. यह हमारे जीवनकाल में ही होने जा रहा है.
यह जैवआतंकवाद मानवजाति का दुश्मन है. अब भी वक्त है कि किसान जीएम फसलों के घातक दुष्परिणामों को समझें. सरकार को तो जैसे कृषि, पर्यावरण और किसानों की चिंता ही नहीं है.
कृषि विशेषज्ञों, एनजीओ और किसानों की आपत्तियों को दरकिनार कर पिछले दिनों सरकार ने नेशनल बायोटेक्नॉलोजी रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल लोकसभा में पेश कर ही दिया. इस बिल के विरोध में बड़ी संख्या में किसानों, कृषि विशेषज्ञों, समाजसेवी कार्यकर्ताओं ने 18 जुलाई को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन का फैसला लिया है.