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BeyondHeadlines > India > पुलिस के पक्ष में न्यायपालिका का खड़ा होना लोकतंत्र के लिए खतरनाक
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पुलिस के पक्ष में न्यायपालिका का खड़ा होना लोकतंत्र के लिए खतरनाक

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 29, 2013
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8 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : पूरे सूबे में लगभग हर रोज़ हो रही साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं किसी कानून व्यवस्था की कमजोरी के चलते नहीं सरकार की साम्प्रदायिक एजेंडे के तहत हो रही हैं. इसीलिए मथुरा का कोसी कलां हो या फैजाबाद या अब कानपुर व मेरठ किसी भी दंगे में असली मुजरिमों को नहीं पकड़ा गया.

इन दंगों के जरिये मुसलमानों के वोट से हाथ धोने से डरी सरकार नए सामाजिक समीकरण बनाने पर तुली हुयी है. लेकिन इसका उसे कोई फायदा नहीं होने वाला. ये बातें दिल्ली स्थित लीगल फ्रीडम के अध्यक्ष और अधिवक्ता अभिषेक आनंद ने रिहाई मंच के धरने के 69 वें दिन कहीं.

Indefinite dharna to bring Khalid Mujahid's killers to justice completes 69 daysअभिषेक आनंद ने कहा कि खालिद मुजाहिद की हत्या के बाद जिस तरह प्रदेश सरकार ने लीपा पोती करने की कोशिश करते हुये कभी उनके परिजनों को मुआवजे का लालच दिया तो कभी मुख्यमंत्री ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने से पहले ही उसे स्वाभाविक मौत बता दिया से समझा जा सकता है कि सरकार इस हत्याकांड के रहस्य को छुपाने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है.

उन्होंने कहा कि आजकल एक नया चलन चल गया है कि किसी भी एन्काउंटर जिस पर जनता सवाल उठाती है उसे यह कह कर टाल दिया जाता है कि इससे पुलिस का मनोबल गिर जाएगा. उन्होंने कहा कि बाटला हाउस मामला हो या खालिद की हत्या, सरकारों का यह तर्क किसी न किसी रूप में हम देख सकते हैं. इसमें न्यायपालिका की भूमिका भी पुलिस के पक्ष में साफ दिखने लगी है. यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने कहा कि जिस तरीके से चाहे वो जर्मन बेकरी ब्लास्ट मामले में हिमायत बेग का मामला हो या फिर हाल में आज़मगढ़ के शहजाद का जिस तरीके  से कोर्ट ने उन्हें मुजरिम साबित किया, ये सभी फैसले न्याय देने के बजाय इंडियन मुजहिदीन को स्थापित करने की कोशिश हैं.

उन्होंने कहा कि इंडियन मुजाहिदीन आईबी द्वारा संचालित संगठन है इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि बिना किसी ठोस सुबूत के शहजाद को दोषी बनाया गया तो वहीं बाटला हाउस मुठभेड़ का राजदार राजेन्द्र कुमार जो की इशरत जहां मसले में पहले ही फंस चुके हैं को बचाने की कोशिश हुयी ताकि सच्चाई पर पर्दा पड़ा रहे. ऐसे में साफ हो जाता है कि इंडियन मुजाहिदीन या आईएम का आईबी के साथ गहरे सम्बंन्ध हैं.

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने कहा कि जिस इंडियन मुजाहिदीन का नाम आने के सालों बाद उस पर बैन लगाया गया और उस पर अब तक कोई ट्रिब्यूनल नहीं गठित किया गया. अगर सरकार मानती है कि यह देशी संगठन है तो सरकार को बताना चाहिए कि आईएम को प्रतिबंध करने के बाद इसके किस पदाधिकारी या कार्यालय को इस प्रतिबंध की सूचना दी गयी या फिर इसको लेकर क्या कुछ विज्ञापित करवाया गया. इन सभी बातों का सरकार के पास कोई जवाब नहीं है.

ऐसे में देखा जाय तो कानूनी आधार पर इस संगठन को प्रतिबंधित करने में भी सरकार गंभीर नहीं है. यह अगंभीरता बताती है कि सरकार आईएम को प्रतिबंधित किसी आतंकी संगठन के कारण नहीं बल्कि मुसलमानों के खिलाफ आतंकी होने का हौव्वा खड़ा करने में दिलचस्पी के कारण कर रही है. सरकार का आईएम को लेकर जो रवैया है वो बताता है कि सरकार जानती है कि अगर इस संगठन पर ज्यादा दबाव बनाने पर आईबी और आईएम के बीच का सम्बंध खुल जाएगा.

रिहाई मंच लगातार मांग करता रहा है कि इंडियन मुजाहिदीन पर सरकार श्वेतपत्र लाए क्योंकि जनता को जानने का हक है कि आखिर यह क्या चीज है जिसके नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को आईबी फांस रही है.

अलग दुनिया के अध्यक्ष केके वत्स, हरेराम मिश्रा और इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि आज जिस तरीके से पीपी पाण्डे ने गिरफ्तार न होने के लिए नाटक किया क्या इस तरह का नाटक करने पर किसी आम आदमी को भी इतनी छूट दी जा सकती है.

उन्होंने कहा कि यह गंभीर चिंता का सवाल है कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों को फर्जी तरीके से तो जेलों में ठूंस दिया जाता है पर जब इन्हीं घटनाओं में पुलिस अधिकारियों पर बेगुनाहों को झूठे तरीके से फंसाने या हत्या का मामला आता है तो ऐसे दोषियों का संरक्षण सरकार करती है. ठीक यही बात खालिद की हत्या के बाद दोषी पुलिस अधिकारियों को लेकर सपा सरकार भी कर रही है.  ऐसे में सरकारों को इस जवाबदेही को तय करना होगा कि वो पुलिस के प्रति जिम्मेवार हैं कि जनता के प्रति…

जुबैर जौनपुरी और भारतीय एकता पार्टी (एम) के सैयद मोईद अहमद ने बताया कि आरडी निमेष आयोग की रिपोर्ट को अखिलेश यादव मानसून सत्र बुलाकर वादे के मुताबिक सदन के पटल पर रखें. रिहाई मंच के धरने के 75 वें दिन 4 अगस्त को इज्तमाई दुआ में इंसाफ पसन्द अवाम से गुजारिश है कि ज्यादा से ज्यादा तादाद में रिहाई मंच के धरने पर पहुंचकर दुआ में शिरकत फरमाएं.

डा0 राममनोहर लोहिया के दस वर्ष तक निजी सचिव रहे तथा समाजवादी चिंतक स्वर्गीय नंदकिशोर मेमोरियल फाउंडेशन के राष्ट्रीय महासचिव आलोक मोहन ने भी उत्तर प्रदेश सरकार से पुरजोर मांग की कि वह खालिद मुजाहिद के कातिल पुलिस कर्मियों को सख्त सजा दे.

श्री मोहन ने कहा कि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार में मुसलमानों की संरक्षा और सुरक्षा खतरे में है. जब-जब सपा सरकार सत्ता में आती है तो मुसलमानों दलितों व अन्य पिछड़ों पर अत्याचार बढ़ जातें हैं. 1992 से अब तक की घटनाओं का इतिहास यही बताता है.

उन्होंने कहा कि सपा प्रदेश के मुसलमानों में पुलिस तंत्र के ज़रिए खौफ पैदा करना चाहती है. जिससे मुसलमान मजबूर होकर उन्हें वोट दें. उन्होंने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार की हरकतें सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर अग्रसर होती दिखाई पड़ रही हैं.

उत्तर प्रदेश की कचहरियों में सन् 2007 में हुए सिलसिलेवार धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और खालिद के हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग को लेकर रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना सोमवार को 69 वें दिन भी जारी रहा.

धरने का संचालन बब्लू यादव ने किया. धरने को भारतीय एकता पार्टी (एम) के सैय्यद मोईद अहमद, मौलाना कमर सीतापुरी, हाजी फहीम सिद्दिीकी, मोहम्मद फैज, इनायतुल्ला खान, अनूप पटेल, नरेन्द्र पटेल, महमूद आलम, अभिषेक आनंद, सुरेन्द्र यादव, शिब्ली बेग, मदन मोहन पाण्डे, कमर इरशाद, असल उल्ला, नरेन्द्र पटेल, शाहनवाज आलम और राजीव यादव शामिल रहे.

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