बिहार : गंवई राजनीति का अखाड़ा बन गए स्कूल

Beyond Headlines
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BeyondHeadlines Education Team

पिछले महीनों बिहार में विधानसभा कार्यवाही के दौरान बिहार के शिक्षा मंत्री पी.के. शाही ने यह घोषणा किया था कि वर्ष 2013-14 से हरेक वर्ष राज्य के एक हज़ार पंचायतों में माध्यमिक स्कूल स्थापित किया जाएगा. उन्होंने यह भी आंकड़े दिए कि फिलहाल राज्य के 8405 पंचायतों में से लगभग 5500 पंचायतों में माध्यमिक स्कूल नहीं हैं.

real story of bihar education systemखैर, यह सिर्फ एक चुनावी घोषणा है. इसलिए यहां की जनता उनकी बातों को कब का भूल चुकी है. यहां आलम तो यह हो गया कि फिलहाल जो स्कूल मौजूद हैं, उन्हें ही राज्य सरकार सुचारू रूप से चला पाने में सक्षम नहीं है. कड़वा सच तो यह है कि यहां पूरी सरकार व राज्य का निज़ाम सिर्फ घोषणाओं पर ही चलता है.  वैसे भी आप सभी इस तथ्य से रूबरू ज़रूर होंगे कि राजनीति बिहार के रग-रग में शामिल है. ऐसे में शिक्षा जगत कैसे इससे अछूता रह सकता है? मीड डे मील और मौत पर होने वाली राजनीति तो आप देख ही रहे हैं. लेकिन BeyondHeadlines की एजुकेशन टीम ने बिहार के पश्चिम चम्पारण में जांच-पड़ताल की की कैसे यहां के स्कूल गंवई राजनीति का अखाड़ा बन गए हैं. और इन सबके बीच बच्चों की पढ़ाई पर क्या असर पड़ रहा है…

न सिर्फ विद्यालय शिक्षा समितियां बल्कि गंवई राजनीति के भंवरजाल में भी ‘मास्साब’ भी फंसे हैं. नतीजतन ज़िले के कई स्कूल, वहां के शिक्षक और छात्रों का पठन-पाठन गंवई राजनीति का शिकार बन रहे हैं. मामला चाहे विद्यालय समिति में सचिव बनने का हो, चाहे समिति में नहीं आ पाने का मलाल… हर हालात में स्कूल ही गांवों की राजनीति का अखाड़ा बन रहे हैं. बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के बगहा में मंझरिया गांव के एक विद्यालय में शिक्षा समिति में अपनी गोटी लाल करने के लिए बच्चों को हथियार बना दोहरे नामांकन भी कराए गए. इस मामले में सीआरसीसी की भूमिका भी संदिग्ध रही. बेतिया के बैरिया प्रखंड में भी यहां के लोकल पॉलिटिक्स ने स्कूलों के शैक्षणिक माहौल को काफी नुक़सान पहुंचाया है. रामनगर में तो कई बार शिक्षकों की पिटाई भी हो चुकी है. यही नहीं, इस गंवई राजनिति के खातिर पश्चिम चम्पारण के बहुतेरे विद्यालयों में तालाबंदी भी हो चुकी है.

यहां के बैरिया प्रखंड में अभी भी दर्जनों विद्यालय अपने ज़मीन व भवन का रोना रो रहे हैं. कहीं विद्यालय की ज़मीन नहीं है तो कहीं मौजूद स्कूलों में ही तालाबंदी की जा चुकी है. यही नहीं, यहां दर्जनों स्कूल झोंपड़ी में चलने को मजबूर हैं. प्रशासन ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन मीड डे के खानों व घोटालों में इनका हिस्सा ज़रूर होता है.

नरकटियागंज के प्राथमिक विद्यालय सियरही में भवन व मीड डे मील को लेकर ग्रामीणों व शिक्षिकाओं के बीच ऐसी ठनी कि ग्रामीणों ने स्कूल में तालाबंदी कर दी. तालांबदी लगभग दो माह तक चला. बाद में ज़िला अधिकारी के निर्देश पर एसडीएम ने बीडीओ को दंडाधिकारी नियुक्त कर ताला खुलवाया और शिक्षकों के स्थानांतरण पर मामला शांत हुआ.

रामनगर प्रखंड के एक गुरूजी ने तो अपने मनपसंद रिश्तेदार को अपने विद्यालय के शिक्षा समिति का सचिव बनाने के लिए अपने अद्भूत गुर का इस्तेमाल किया. गुरू जी ने सोचा कि कोई दूसरी सचिव बनेगी, हर बार टेंशन देगी. इससे अच्छा है कि अपने लोग बने ताकि टेंशन फ्री रहा जाए. सो उन्होंने पोषक क्षेत्र के अपने एक रिश्तेदार लड़के का नामांकन किया अपने स्कूल में किया. गुरू जी की कृपा से लड़का फर्स्ट आया और फिर उसके बाद अपने दांव पेंच का इस्तेमाल करके अपने रिश्तेदार को सचिव बनवा दिया.

दरअसल, विद्यालय शिक्षा समिति के गठन में सरकार ने नियम निकाला कि जो बच्चा अपने वर्ग में प्रथम आएगा, उसी की मां शिक्षा समिति की सचिव बनेगी. जबकि शिक्षा समिति के अध्यक्ष पद पर गांव में पोषक क्षेत्र के वार्ड सदस्य, नगर पंचायत तथा नगर परिषद के वार्ड पार्षद अध्यक्ष होते हैं. यहां भी आम सहमति नहीं होने की स्थिति में चुनाव की प्रक्रिया अपनाई जाती है. अब यहीं पेंच फंसता है. कई लोग अपने दबंगई के कारण सचिव पद हासिल करने के लिए शिक्षकों पर अपने बच्चे को प्रथम लाने का दबाव बनाते हैं. चुनाव को लेकर ही स्कूलों में राजनीति प्रवेश करती है और शैक्षणिक माहौल बिगड़ता है.  और इसी अराजक व्यवस्था से नौनिहालों के भविष्य पर ग्रहण लग रहा है. पर राज्य की ‘सुशासन सरकार’ को इससे कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें तो सिर्फ अपने वोट बैंक से मतलब है. यही वजह है कि यहां भी उनकी पार्टी के छोटे नेता हावी हैं.

BeyondHeadlines Education Team की यह रिपोर्ट आगे भी जारी रहेगी…

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