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संसद व 26/11 मुंबई पर हुए हमलों पर हुए खुलासों पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 14, 2013
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7 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : जिस तरह से गृह मंत्रालय के पूर्व अधिकारी आरवीएस मनी ने इशरत जहां मामले की जांच कर रहे सीबीआई और एसआईटी टीम का हिस्सा रहे आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा से हुई बातचीत कर खुलासा करते हुए कहा कि सतीश वर्मा ने उन्हें बताया था कि संसद पर हुआ आतंकी हमला और 26/11 को मुबंई पर हुए हमले दोनों ही आतंकी हमले सरकारों ने आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सख्त कानूनों को बनाने के लिए करवाए थे, को माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्तकाल संज्ञान में लेते हुए इन दोनों घटनाओं की जांच कराने की मांग करते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने कहा कि ये दोनों ही घटनाएं शुरु से ही संदिग्ध रही हैं और तमाम मानवाधिकार संगठनों, प्रतिष्ठत पत्रकारों और यहां तक की कई सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों तक ने भी इन दोनों घटनाओं की सत्यता पर सवाल उठाए हैं.

SC must take cognizense of new revelations regarding Govts role in Parliament attack and 26/11 & order probeमोहम्मद शुऐब ने कहा की यह बात सामने आ रही है कि देश में काले कानूनों को बनाने के लिए देश में आईबी आतंकी वारदातों को अंजाम देती है, और पिछले दिनों इशरत जहां के हत्यारे राजेन्द्र कुमार को बचाने के लिए जिस तरह आईबी प्रमुख आसिफ इब्राहिम और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया उससे यह आरोप और पुख्ता हो जाते हैं. काले कानूनों का शिकार देश का वंचित तबका मुस्लिम, दलित, आदिवासी ही होते हैं.

जिन्हें आतंकवाद के नाम पर तो कभी माओवाद के नाम मारा जा रहा है. पिछले दिनों यूपी में बेगुनाह खालिद मुजाहिद की हत्या भी इसी कड़ी में हुई. ऐसे में हम माननीय सुप्रिम कोर्ट से अपील करते हैं कि वो इस संकटकाल में काले कानूनों की समीक्षा के लिए एक जांच आयोग गठित करे, जिससे इन काले कानूनों का खात्मा हो सके.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि ये दोनों ही घटनाएं और उनमें आए फैसले सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं रहे हैं. क्योंकि इनके बाद मुसलमानों की आतंकी छवि बनाने की कोशिशें लगातार की गयीं खास कर अफजल की फांसी की सजा जिसे ठोस सुबूतों के बजाए सिर्फ देश के एक हिस्से के उग्र हिंदुत्ववादी आकांक्षाओं को संतुष्ट करने के लिए सुनाया गया और अंततः न्यायिक प्रक्रिया को धता बताते हुये उसे फांसी पर भी चढ़ा दिया गया.

जिसका न जाने कितने निर्दोषों को जो आतंक के आरोप में फंसाए गये हैं कि मुक़दमों और फैसलों पर गलत असर पड़ा. उन्होंने कहा कि इस खुलासे की जांच से हालांकि अफ़ज़ल वापस जिंदा तो नहीं हो सकता लेकिन इसकी जांच आईबी और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों की आतंकी और देश विरोधी गतिविधियों की पोल खोल देगा जो लोकतंत्र को बचाने के लिए ज़रूरी है.

उन्होंने कहा कि रिहाई मंच ने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार से भी बार-बार यह मांग की है कि यूपी कचहरी धमाकों, रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमलों, वाराणसी में हुए धमाकों, गोरखपुर सीरियल ब्लास्ट समेत यूपी में हई सभी आतंकी घटनाओं की एनआईए से जांच कराई जाए. क्योंकि रिहाई मंच का आरोप है कि जिस तरह से आईबी और पुलिस अधिकारियों ने मिलकर मौलाना खालिद की हत्या करवाई ऐसे में देश को तबाह करने में शिद्दत से लगी आईबी ने ही उत्तर प्रदेश समेत देश में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया है. हमारा लगातार आरोप है कि इंडियन मुजाहिदीन आईबी द्वारा संचालित संगठन है. ऐसे में प्रदेश में हुई सभी आतंकी घटनाओं की एनआईए से जांच कराई जाए.

इस खुलासे पर बात रखते हुये मुस्लिम मजलिस के प्रदेश प्रवक्ता जैद अहमद फारूकी और इंडियन नेशनल लीग के हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि जो बात आज गृह मंत्रालय के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी मुम्बई में हुये 26/11 हमलों के संदर्भ में कह रहे हैं उसका खुलासा तो बहुत पहले महाराष्ट्र के सेवानिवृत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एसएम मुशरिफ ने अपनी किताब ‘हू किल्ड करकरे’ में कर दिया था कि 26/11 भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने करवाए थे. लेकिन अब जब सरकारी के ही सीनियर ब्यूरोक्रेट इस बात को कह रहे हैं तो ज़रूरी हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट इसे गम्भीरता से संज्ञान में लेते हुये इसकी पुनः जांच कराए.

धरने को संबोधित करते हुए भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोईद अहमद ने कहा कि एक के बाद एक घटनाओं में हकीकत सामने आ रही है कि हमारे रहबर ही रहजनी करने लगे हैं. खालिद मुजाहिद की मौत के बाद जिस तरीके से सरकार इस बात को भुलाने की कोशिश कर रही है और अखिलेश यादव ने वादा करके मानसून सत्र नहीं बुलाया और मौलाना खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी को बेगुनाह साबित करने वाली आरडी निमेष रिपोर्ट पर एक्शन नहीं किया उससे साफ हो जाता है कि इस सरकार में मुसलमानों की कोई सुनवाई नहीं है.

शायर जुबैर जौनपुरी ने शेर के माध्यम से इस बात को कहा कि 2014 में होने वाले चुनाव में खालिद का खून रंग लाएगा और इस कातिल सरकार का खात्मा कर देगा. उन्होंने कहा कि जो सरकार पाक रमजान के महीने में भी हमें सड़क के किनारे बैठने को मजबूर कर रही है ऐसी कातिल सपा सरकार के बुलाने पर कोई मुस्लिम भाई रोजे अफ्तार पार्टियों में न जाए और न ही उन्हें बुलाए.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने बताया कि कल धरने के 55 वें दिन 15 जुलाई को सीपीएम के महासचिव प्रकाश करान धरने के समर्थन में आएंगे.

धरने का संचालन रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने किया. इस दौरान हरे राम मिश्र, भारतीय एकता पार्टी के राष्ट्रीय सदर सैयद मोईद अहमद, एएनसी के फरीद खान, मुस्लिम मजलिस के प्रवक्ता जैद अहमद फारूकी, मोहम्मद फैज, शाहनवाज आलम आदि उपस्थित रहे.

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