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न्यायपालिका राजनीति नहीं बल्कि संविधान के प्रति हो जिम्मेवार

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : शहजाद को लेकर आए फैसले पर आज लखनऊ विधासभा पर चल रहे रिहाई मंच के धरने पर इसको लेकर लिखी तख्तियां और नारे लगाकर कहा गया है यह फैसला नहीं बल्कि न्यायपालिका द्वारा न्याय और लोकतंत्र पर साम्प्रदायिक हमला है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि अगर मुस्लिम सवालों को छोड़कर भी देखें तो कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने भी मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनायक पर माओवादी गतिविधियों के नाम पर सजा सुना दी थी.

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि शहजाद पर आया फैसला न्याय नहीं बल्कि लोकतंत्र का कत्ल है, और यह सवाल भी उठता है कि क्या न्याय पालिका अब राजनीतिक पार्टियों के सुविधानुसार फैसले देंगी.

Supreme Court should monitor lower courts communalismउन्होंने कहा कि शहजाद मामले में अभियोजन पक्ष के इस दलील को न्यायपालिका द्वारा मान लिया जाना कि उन्होंने बाटला हाउस जैसे अति भीड़-भाड़ वाले इलाके के लोगों को इस मामले में गवाह इसलिए नहीं बनाया कि वहां के अधिकतर लोग उसी धर्म को मानने वाले थे जिस धर्म से आरोपी सम्बंध रखते हैं, कोर्ट के साम्प्रदायिक जेहनियत को उजागर करता है.

उन्होंने कहा कि पुलिस के इस तर्क को मानकर सम्बंधित कोर्ट ने साफ कर दिया है कि उसमें और दिल्ली पुलिस जिसने बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद पकड़े गए मुस्लिम युवकों का चेहरा खास तौर पर मुस्लिमों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले गमछे से ढ़क कर मीडिया के सामने पेश किया था, दोनों की साम्प्रदायिक सोच में कोई फर्क नहीं है. वह भी साम्प्रदायिक पुलिस अधिकारियों की तरह ही हर मुसलमान को आतंकवाद समझती है.

उन्होंने कहा कि शहजाद  का फैसला दिल्ली स्पेशल सेल और आईबी जैसी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाली एजेंसियों का मनोबल बढ़ाने के लिए दिया गया है ताकि आईबी अपने द्वारा बनाए गए फर्जी आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के अस्त्तिव पर उठ रहे सवालों से जनता का ध्यान भटका सके.

उन्होंने कहा कि इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि शहजाद पर आए फैसले के बाद आईबी देश में फिर से कोई आतंकी धमाका करा कर निर्दोष नागरिकों की हत्या करवा दे और उसे शहजाद पर आए फैसले पर इंडियन मुजाहिदीन की प्रतिक्रिया बता दे.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि कल शहजाद के फैसले के बाद यह बात आ रही है कि बचाव पक्ष इसके खिलाफ उच्च अदालतों में जाएगा, पर यह सिलसिला कब तक चलेगा? क्या सेशन कोर्ट और लोवर कोर्ट सिर्फ सजा सुनाने के लिए हो गई हैं अगर ऐसा है तो इन कोर्टों और भारतीय पुलिस जो हर कमजोर पर डंडा चला देती है में कोई फर्क नहीं रह जाता.

जिस तरीके से पिछले दिनों 14-14 साल बाद लोग बेगुनाह रिहा हुए ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि क्या निर्दोषों की 14 साल की बबार्दी की वजह निचली अदालतों की साम्प्रदायिकता नहीं है. जिन्होंने जिरह के नाम पर बिना किन्हीं ठोस सुबूतों के केसों को लंबे-लंबे समय तक खींचा और उसके बाद सजा सुना दी.

हम सुप्रिम कोर्ट से पूछना चाहेंगे कि ऐसे बहुत से मामलों जिनमें निर्दोषों को लंबे समय बाद बरी कर दिया गया उनमें उसने निचली अदालतों के उन जजों के खिलाफ कोई कार्रवायी क्यों नहीं की? क्या उसे ऐसे मामलों की समीक्षा की ज़रूरत नहीं लगती।?

प्रवक्ताओं ने कहा कि ऐसे कईयों लोग तो सिर्फ पास के जिले कानपुर में हैं. यह बहुत चिंता का विषय है कि जिस देश के नागरिक पर राष्ट्र निर्माण का जिम्मा होता है उस पर आप आगे राज्य द्रोही का आरोप लगाईए. आधी जिन्दगी वो खुद को बरी कराने में लगा दे और उसके बाद मुआवजा की लड़ाई लड़े.

भागीदारी आंदोलन के भवननाथ पासवान, पीसी कुरील और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि न्यायालय जो फैसले दे रही हैं वह भारतीय संविधान के मानकों पर आधारित हैं या किसी हिटलर और मुसोलिनी के फांसीवादी कानून के यह जांच का विषय है.क्योंकि सामूहिक चेतना के नाम पर किसी को फांसी पर चढ़ा देने की सीख बाबा साहब अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान नहीं देता. हमारे न्यायालय जो फैसले दे रहे हैं वो हमारे मौलिक अधिकारों और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ होते जा रहे हैं, जो भारत जैसे दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.

इंडियन नेशनल लीग के हाजी फहीम सिद्दीकी, भारतीय एकता पार्टी (एम) के सैय्यद मोईद अहमद और मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारुकी ने कहा कि आज 66 दिनों से हम खालिद को न्याय दिलाने के लिए विधानसभा पर बैठे हैं पर अखिलेश सरकार न्याय देने से तो दूर वो किए गए वादे के मुताबिक मानसून सत्र बुलाकर आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखने से भी भाग रही है.

रिहाई मंच पिछले 66 दिनों से कह रहा है कि खालिद के हत्यारे दोषी पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी की जाए, जिन दोषी पुलिस अधिकारियों को चिन्हित करने की बात निमेष कमीशन कर रहा है. उन्हें चिन्हित कर जेल भेजा जाए क्योंकि उनका बाहर रहना प्रदेश की सुरक्षा के लिए खतरनाक है. लेकिन सरकार मांगें नहीं मान कर अपने निकम्मेपन को उजागर कर रही है.

उन्होंने कहा कि 4 अगस्त को इस आंदोलन के 75 दिन पूरे होंगे ऐसे में तमाम इंसाफ पसन्द अवाम उस दिन अधिक तादाद में धरने में शामिल हों.

शायर जुबैर जौनपुरी ने कहा कि रिहाई मंच लोगों के साम्प्रदायिक जेहनियत को बदलने की कोशिश कर रहा है. कोई हिंदु या मुसलमान बुरा नहीं होता बुरी होती है सोच. सरकार की सोच बुरी है इसलिए हम यहां धरना देकर उसे अपनी सोच बदलने और इंसाफ की राह पर चलने  की नसीहत दे रहे हैं. जिसे अगर सरकार नहीं मानेगी तो उसे नुक़सान उठाना होगा.

उत्तर प्रदेश की कचहरियों में सन् 2007 में हुए सिलसिलेवार धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और खालिद के हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग को लेकर रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना गुरूवार को 66वें दिन भी जारी रहा.

धरने का संचालन लक्ष्मण प्रसाद ने किया. धरने को जमात ए इस्लामी हिन्द के मौलाना खालिद, पीसी कुरील, मनोज कुमार, भवन नाथ पासवान, भारतीय एकता पार्टी (एम) के सैयद मोईद अहमद, मौलाना कमर सीतापुरी, जैद अहमद फारूकी, हाजी फहीम सिद्दिीकी, एमआई शेख, मोहम्मद फैज, फैजान मुसन्ना, महमूद अली, डा0 अजीम खान, शिब्ली बेग, आई अहमद, अबरार अहमद फारुकी, बब्लू यादव, लक्ष्मण प्रसाद, शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने संबोधित किया.

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