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बटला हाउस ‘हत्याकांड’ का सच छुपाने की कोशिश है यह फैसला

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच ने बटला हाउस मामले से जुड़े शहजाद अहमद प्रकरण पर आए फैसले को न्यायिक फैसले के बजाए राजनीतिक फैसला क़रार देते हुए कहा कि इस फैसले का मकसद बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ पर घिरी केन्द्र सरकार को बचाना है न कि तथ्यों के आधार पर फैसला सुनाकर न्याय के राज को स्थापित करना.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि बचाव पक्ष के महत्वपूर्ण तर्कों मसलन बटला हाउस जैसे भीड़-भाड़ वाले इलाके जहां यह घटना हुई में पुलिस द्वारा किसी भी स्वतंत्र गवाह को न पेश कर पाना, मोहन चंद्र शर्मा की कथित हत्या में प्रयुक्त असलहे जो पुलिस के मुताबिक शहजाद का था का बरामद न होना, और न ही उस हथियार के इस्तेमाल का कोई सुराग घटना स्थल से मिलना, और पुलिस की इतनी बंदोबस्त के बावजूद आरोपी शहजाद का भाग जाना, जैसे सवालों का कोई उत्तर सरकारी पक्ष द्वारा नहीं दिया गया. ऐसे में शहजाद को मुजरिम बताने वाले फैसले को न्यायिक फैसला जो तथ्यों के आधार पर तय होता है, नहीं माना जा सकता.

Verdict on Shahzad political not judicialउन्होंने कहा कि इस फैसले से बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ और आईबी द्वारा संचालित फर्जी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व को जायज ठहराने की कोशिश की गयी है. इस फैसले को उन्होंने बाबरी मस्जिद और अफजल गुरु पर आए फैसलों की फेहरिस्त में रखते हुए कहा कि इसमें भी तथ्यों के बजाए समाज के बहुसख्यंक तबके के सांप्रदायिक हिस्से की मुस्लिम विरोधी चेतना को संतुष्ट करने की कोशिश की गई है.

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि बटला हाउस फर्जी एनकाउंटर पर न्यायिक जांच की मांग को जिस तरह अदालत और मानवाधिकार आयोग ने यह कह कर खारिज कर दिया था कि इससे पुलिस का मनोबल गिर जाएगा तभी यह तय हो गया था कि अदालतें इसी तरह का फैसला देंगी.

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद फैसले से शुरु हुई यह पूरी प्रकिया भारत में न्यायपालिका के ज़रिए हिन्दुत्वादी फांसीवाद थोपने की राज्य मशनरी की साजिश को दर्शाता है. जिसे सिर्फ इसलिए नहीं बर्दाश्त किया जा सकता कि यह फैसले अदालतों द्वारा दिए गए हैं.

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों जिस तरीके से होम एफेयर्स डिपार्टमेंट के आरवीएस मनी ने यह बात सामने लाई कि संसद पर हमला और 26/11 मुंबई पर हुए हमलों में सरकार संलिप्त थी तो ऐसे में अदालतें भी कटघरे में आती हैं क्योंकि इन दोनों ही मामलों में दो व्यक्तियों को दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र ने समाज के साम्प्रदायिक हिस्से के सामूहिक चेतना को संतुष्ट करने के नाम पर फांसी के तख्ते पर पहुंचा दिया है.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने कहा कि इस पूरे मामले में निष्पक्ष विवेचना नहीं की गई, जो न्याय का आधार होता है. दूसरे, यह पूरी कहानी दिल्ली क्राइम ब्रांच ने गढ़ी है जिसकी ईमानदारी की पोल लियाकत शाह मामले मे खुल चुकी है कि किस तरह उसने लियाकत पर दिल्ली में आतंकी वारदात करने की साजिश रचने का ही आरोप नहीं लगाया बल्कि उसके पास से खतरनाक हथियार भी बरामद दिखा दिए.

उन्होंने कहा कि अगर सामाजिक संगठनों ने समय रहते लियाकत मामले पर सवाल नहीं उठाया होता तो शहजाद की तरह ही कोई अदालत पुलिसिया कहानी पर मुहर लगाते हुए उसे सजा सुना देती.

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि शहजाद प्रकरण पर आए फैसले के बाद यह ज़रुरी हो जाता है कि लोकतंत्र को बचाने के लिए अदालतों की सांप्रदायिकता के खिलाफ लोग मुखर हों.

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों जिस तरह आईबी के अधिकारी और बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के राजदार राजेन्द्र कुमार को इशरत जहां मामले में गृहमंत्रालय द्वारा बचाने की कोशिश की गई कि कहीं बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ का सच न उजागर हो जाए तभी साफ हो गया था कि शहजाद मामले में इसी तरह का फैसला आएगा.

उन्होंने कहा कि इस तरह के पक्षपातपूर्ण फैसले बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात 2002 के जनसंहारों से भी ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि इसमें कोई सांप्रदायिक राजनीतिक गिरोह मुसलमानों पर हमलावर नहीं हैं बल्कि वह संस्था हमलावर है जिसका काम इंसाफ करना है.

रिहाई मंच के इलाहाबाद के प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह और लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि रिहाई आंदोलन ने देश में बढ़ रही न्यायपालिका की सांप्रदायिकता पर अफजल गुरु के फांसी के बाद और बाबरी मस्जिद पर आए सांप्रदायिक फैसले की पुरजोर मुखालफत करते हुए यूपी के लखनऊ, वाराणसी, आजमगढ़ समेत विभिन्न स्थानों पर बड़े जन सम्मेलन किए थे और शहजाद प्रकरण पर भी अदालत की साम्प्रदायिकता के खिलाफ मुहीम चलाएगा.

उन्होंने कहा कि समाज की सांप्रदायिक चेतना को संतुष्ट करने के लिए कुछ दशकों पहले पाकिस्तान को जिस तरह पेश किया जाता था, उसके स्थान पर इंदिरा गांधी के दौर में पंजाब, और उसके बाद कश्मीर जैसे क्षेत्रों को ला दिया गया जहां कत्लेआम की राजनीतिक साजिशें रची र्गइं. इसी कड़ी में राज सत्ता आज हमारे आस पड़ोस के जिले आजमगढ़ के साथ भी यही करना चाहती है. इसलिए रिहाई मंच इस पूरी टेरर पालिटिक्स को जड़ से उखाड़ने के लिए खालिद मुजाहिद की हत्या समेत आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को न्याय दिलाने के लिए 65 दिनों से लखनऊ विधानसभा पर बैठा है.

इंडियन नेशनल लीग के हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि खालिद हत्या मामले को लेकर बियांड हेडलाइन्स नाम की एक वेबसाइट ने यूपी सरकार से 29 मई को सूचना मांगी थी पर आज तक उत्तर प्रदेश सरकार ने सूचनाएं नहीं दीं.

उन्होंने कहा कि जब अखिलेश यादव खालिद की हत्या को बीमारी से हुई मानते हैं तो आखिर क्यों नहीं सूचनाएं देते हैं, जबकि आरटीआई से सूचना प्राप्त करना एक कानूनी अधिकार है. ऐसे में अखिलेश यादव को यह बताना चाहिए कि उनकी क्या मजबूरी है कि वो खालिद की हत्या से जुड़ी सूचनाओं को जनता को नहीं बताना चाहते.

रिहाई मंच के धरने के 65 वें दिन समर्थन में आए मौलाना मसूद और डा0 अली अहमद कासमी ने कहा कि खालिद की मौत के बाद जिस तरीके से सपा सरकार ने इंसाफ की हत्या की है उसे अल्पसंख्यक समुदाय माफ नहीं करेगा. अगर अल्पसंख्यक समुदाय किसी को सत्ता में पहुंचा सकता है तो वह नाइंसाफी के सवाल पर उसे उतार भी सकता है.

रमजान के पाक महीने में हम इंसाफ के लिए अपने बेगुनाह बच्चों की रिहाई के लिए रिहाई मंच की इस मुहीम में शामिल होकर धरने पर बैठे हैं और दुआएं मांग रहे हैं. हम अपने बेगुनाह बच्चों को यकीन दिलाते हैं कि हक और इंसाफ की इस जंग को अंतिम दम तक लड़ा जाएगा.

भागीदारी आंदोलन के नेता पीसी कुरील ने कहा कि आज शहजाद पर जो फैसला आया है वो इस बात को साफ कर रहा है कि देश में कोई लोकतंत्र नहीं है यहां पर एक मनुवादी तंत्र है, जिसे विकृत मानसिकता के लोग संचालित कर रहे हैं. जिनका एजेण्डा है कि दलित, मुस्लिम, आदिवासी तबके को न्याय से वंचित कर एक ऐसी शोषण आधारित व्यवस्था को कायम रखा जाए जो सामंतवाद को स्थापित कर सके. इसलिए शहजाद प्रकरण पर आए फैसले को मानवाधिकार हनन तक सीमित नहीं रखा जा सकता यह पूरी तरह से हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है जिसे लोकतंत्र का संरक्षण करने वाली न्यायपलिका ने दिया है.

उत्तर प्रदेश की कचहरियों में सन् 2007 में हुए सिलसिलेवार धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रपायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और खालिद के हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग को लेकर रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना गुरूवार को 65 वें दिन भी जारी रहा.

धरने का संचालन हरेराम मिश्रा ने किया। धरने को डा0 अली अहमद कासमी, पीसी कुरील, मोहम्मद सुलेमान, मौलाना कमर सीतापुरी, एमआई शेख, फैजान मुसन्ना, सालिब, सरफराज कमर, एए खान, मोहम्मद अजमल, सादिक खान, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, सादिक, बब्लू यादव, लक्ष्मण प्रसाद, दिनेश यादव, शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने संबोधित किया.

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