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बिसरा रिपोर्ट खालिद के हत्यारे पुलिस और आईबी अधिकारियों को बचाने की कोशिश

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : सन् 2007 में कचहरी बम धमाकों के आरोप में आईबी तथा एटीएस द्वारा फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की हिरासत में हुई हत्या के गुनहगार पुलिस एवं आईबी अधिकारियों की गिरफ्तारी, निमेष आयोग की रिपोर्ट पर तत्काल अमल करने और आतंकवाद के नाम पर प्रदेश की जेलों में कैद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की रिहाई की मांग को लेकर 22 मई से चल रहा रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना 53वें दिन भी जारी रहा.

रिहाई मंच के अनिश्चितकालीन धरने में आज उपवास पर झारखण्ड से आये मानवाधिकार नेता मुन्ना कुमार झा बैठे. रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने अवाम से 15 जुलाई, सोमवार को सीपीएम महासचिव प्रकाश करात के धरने में शामिल होने के मौके पर उपस्थित होने की अपील की.

Viscera Report aimed to save Khalid's killersरिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा को अपनी पूर्ववर्ती बसपा सरकार से सीख लेनी चाहिए जिसके शासनकाल में ठीक खालिद मुजहिद की तरह ही लखीमपुर खीरी में मुस्लिम लड़की सोनम के साथ थाने में बलात्कार व हत्या के बाद हुए दो पोस्टमार्टमों में सरकार के दबाव में रिपोर्ट को बदलवाकर यह स्थापित करने की कोशिश की गई थी कि सोनम के साथ रेप नहीं हुआ था पर इस घटना से मायावती सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी. आज ठीक वही काम प्रदेश की सपा सरकार कर रही है.

पहले उसके इशारे पर खालिद के हत्यारे पुलिस अधिकारियों और आईबी के अधिकारियों को बचाने के लिए बाराबंकी डीएम और एसएसपी ने सपा के स्थानीय लोगों को पंचनामे का गवाह बनाया और हमारे बार-बार कहने के बावजूद कि खालिद के शरीर पर अनेकों जख्म के निशान थे, उनको नहीं लिखा. रही बात बिसरा रिपोर्ट की तो सोनम रेप कांड में दो फारेंसिक जांचों में दो अलग-अलग तथ्य सामने आए. एक यह कि जिस कमरे में रेप हुआ था उसमें से बरामद गद्दे, चादर और सोनम के कपड़ों पर पाए गए खून के निशान एक हैं तो वहीं दूसरी फारेंसिक जांच कहती है कि गद्दे और चादर पर खून के निशान थे ही नहीं.

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस तरीके से मुसलमानों को न्याय से वंचित करने के लिए कभी पोस्टमार्टम रिपोट, बिसरा रिपोर्ट तो कभी फारेंसिक रिपोर्टों में सरकार के दबाव में फेरबदल किया जा रहा है, यह कोई सामन्य बात नहीं है. यह राज्य सत्ता द्वारा मुस्लिम समाज को न्याय से वंचित करने की कोशिश है. न्याय से जब-जब अवाम को वंचित किया गया है तब-तब फांसीवाद मज़बूत हुआ है. हम किसी भी हालात में ऐसा नहीं होने देंगे और रिहाई मंच का यह आंदोलन इस जम्हूरियत को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है.

अनिश्चित कालीन धरने के 53वें दिन आयोजित सभा को संबोधित करते हए भागीदारी आंदोलन के नेता भंवन नाथ पासवान ने कहा कि रिहाई मंच के इस धरने में उन सब लोगों की आवाज़ लगातार उठाई जा रही है, जिन्होंने व्यवस्था की प्रताड़ना झेली है या फिर झेल रहे हैं. यह मंच केवल मुसलमानों का ही नहीं है जैसा कि समाजवादी पार्टी के नेता राम आसरे कुशवाहा कह रहे हैं.

रिहाई मंच का मक़सद है कि वंचितों को इंसाफ दिलाया जाए चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान. उन्होंने कहा कि पिछली मायावती सरकार ने जनता के दबाव में सच्चाई का पता लगाने के लिए निमेष आयोग का गठन किया था, जिसे छः महीने में रिपोर्ट देनी थी. लेकिन बसपा सरकार ने जानबूझ कर रिपोर्ट को लटकाए रखा. यही सुलूक सपा सरकार भी रहा जिसने रिपोर्ट के आ जाने के बाद भी जानबूझ कर उसे सार्वजनिक नहीं किया जो यह साबित करता है कि सपा सरकार की नीयत मुसलमानों के लिए साफ नहीं है.

धरने को संबोधित करते हुए पिछड़ा महासभा के नेता एहसानुल हक मलिक ने कहा कि सपा नेता राम आसरे कुशवाहा जो आज यह कह रह रहे हैं कि रिहाई मंच के लोगों को अगर कोई समस्या है तो सीधे सरकार से बात करनी चाहिए. बेहद बचकाना और हल्का बयान है. उन्होंने उनका इतिहास बताते हुए कहा कि कुशवाहा पहले भाजपा में थे और आज भी देश के अल्पसंख्यकों पर इनकी जेहनियत बिल्कुल संघ की खतरनाक मानसिकता से मेल खाती है.

उन्होंने कहा कि देश में जो भी संगठन नफरत की राजनीति करते हैं, उन्हे तुरंत सरकार को प्रतिबंधित कर देना चाहिए. लेकिन यह जगजाहिर है कि गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के पक्ष में माहौल बनाने के लिए किस तरह से समाजवादी पार्टी के लोग खड़़े रहते हैं.

उन्होंने कहा कि यह कितना शर्मकनाक है कि जब रिहाई मंच के लोगों की मांग पर सरकार के पास कोई जवाब नहीं है तो वह बचकाने बयान दे रही है तथा हिंदू और मुसलमानों के बीच एक रेखा खींचने का नापाक काम कर रही है. उन्होंने कहा कि अगर हमारी बातें जल्द सुनी न गयी तो यहां भी तहरीर चौक बनने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.

धरने के समर्थन में आए भागीदारी आंदोलन के नेता पीसी कुरील ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि यह धरना आज उन लोगों की आवाज़ बन चुका है जिनके वजूद पर संकट आ गया है. रिहाई मंच का धरना इसलिए नहीं है कि केवल सरकार को बदनाम किया जाय बल्कि मंच चाहता है कि इस देश में इंसानियत और न्याय की व्यवस्था कायम रहे.

उन्होंने कहा कि जो लोग भी सत्ता में भागीदारी कर रहे हैं वे भी उतने ही गुनहगार हैं, जिन्होंने निर्दोष खालिद को जेल भेजा था. उन्होंने कहा कि अपने खुद के फायदे के लिए सेक्यूलर बनने वाले मुलायम सिंह से मुसलमानों को कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए. जातिगत रैलियों पर उच्च न्यायालय के रोक के सवाल पर उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि इस देश में जाति के आधार पर जुल्म हुए हैं और पीडि़त तबकों की जातिगत गोलबंदी से ही इस पर काबू पाया गया गया है.

उन्होंने कहा कि अगर जातियां जातियों पर जुल्म करेंगी तो जातिगत गोलबंदी को देश की कोई भी अदालत नहीं रोक सकती. उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक उत्पीडि़त दलित वर्ग पहले जाति के आधार पर ही संगठिति हुआ और इस संगठन में जब राजनैतिक चेतना आयी तभी दलित लोगों की व्यवस्था में भागीदारी बढ़ी. उन्होंने कहा कि जब तक ईमानदारी से प्रयास नहीं किए जायेंगे सामाजिक व्यवस्था में सबकी भागीदारी नहीं होगी.

धरने के समर्थन में झारखण्ड से आये पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता मुन्ना कुमार झा ने कहा कि सवाल केवल उत्तर प्रदेश की आवाम पर हो रहे जुल्म का नहीं है. खनिज संपदा के मामले में धनी राज्य झारखण्ड में भी आदिवासी और नक्सली होने के आरोप में लगभग चार हजार लोग इस समय विभिन्न जेलों में बंद हैं. उन्होंने कहा कि आम झारखण्डी नागरिक को एक ओर टाटा का धुंआ मार रहा है तो दूसरी ओर सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की गोलियां. पूरी व्यवस्था ने आम आदमी के खिालाफ एक विषाक्त माहौल तैयार कर दिया है.

आज झारखंड का समूचा सामाजिक परिवेश और उसकी संस्कृति ही अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. आदिवासियों को सारण्डा के जंगलों से भगाया जा रहा है, उन्हें सरेआम गोली मारी जा रही है. पिछले दो सालों में तीस हजार लोगों का विस्थापन हुआ है. लेकिन उनकी समस्याओं को कोई सुनने वाला नहीं है.

उन्होंने कहा कि झारखण्ड के गांवों में सबसे ज्यादा गरीबी है. उनके पास चावल तक खाने को नहीं है. लोग मलेरिया से बड़ी तादाद में मर रहे हैं. सरकार को आम जनता की कोई फिक्र नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार पूंजीपतियों के लूट के रास्ते को पुख्ता करने के लिए आदिवासियों का खून बहा रही है. इसी तरह यूपी में भी सरकारें निदोर्ष मुसलमानों की छवि आतंकी की बना कर जनता के सामूहिक प्रतिरोध को कमजोर करना चाहती हैं. ताकि लोग न्यूक्लियर डील या सीआईए के साम्राज्यवादी घुसपैठ जैसे देश की सम्प्रभुता को चुनौती देने वाली नीतियों का मुकाबला न कर सकें.

धरने को संबोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि खालिद के बिसरा रिपोर्ट में उसके नाम के पहले आतंकवादी शब्द के जुड़े होने का सीधा मतलब है कि सपा सरकार उसे आज भी आतंकवादी मानती है. जबकि निमेश आयोग की रिपोर्ट उन्हें निदोर्ष बता चुकी है. यह बात साफ है कि मुसलमानों के प्रति अखिलेश सरकार की जेहनियत साफ नहीं है. उन्होंने रोजेदारों से रिहाइ मंच के धरने में बड़ी तादाद में शामिल होने की अपील की.

धरने का संचालन रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने किया. इस दौरान हरे राम मिश्र, समीउल्लाह, डॉ. अली अहमद कासमी, भारतीय एकता पार्टी के राष्ट्रीय सदर सैयद मोईद अहमद, इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद समी, मुस्लिम मजलिस के प्रवक्ता जैद अहमद फारूकी, मोहम्मद फैज, शाहनवाज आलम आदि उपस्थित रहे.

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