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आतंकवाद के खात्मे की बात करने वाले ही इसे संरक्षण दे रहे हैं

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के नौजवान खालिद मुजाहिद के साथ जो कुछ हुआ वैसी घटनाएं सारे मुल्क में हो रही हैं. बात केवल यहीं की नहीं है. चाहे वह बिहार हो या फिर महाराष्ट्र एक अघोषित टेरर का माहौल पूरे देश में आतंकवाद के नाम पर मुल्क के मुसलमानों के खिलाफ बनाया गया है.

यह एक सच्चाई है कि आज जो लोग आतंकवाद के खात्मे की बात कर रहे हैं वह ही इसके पालन पोषण में लगे हुए हैं. हमें इन लोगों को बारीकी से पहचानना होगा ताकि इनके खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी जा सके.

उपरोक्त बातें मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या के आरोपी पुलिस तथा आईबी अधिकारियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पिछले 89 दिनों से चल रहे अनिश्चितकालीन धरने को संबोधित करते हुए डाक्युमेंट्री फिल्मकार आनन्द पटवर्धन ने रिहाई मंच के धरने में शिरकत करते हुए कहीं.

Indefinite dharna to bring Khalid Mujahid's killers to justiceउन्होंने कहा कि रिहाई मंच के लोग जिस तरह से एक आंदोलनात्मक लड़ाई लड़ रहे हैं वह अपने आप में एक मील का पत्थर है और आने वाले समय में जनतांत्रिक आंदोलनों के रूप में इनके इस धरने को हमेशा याद किया जायेगा.

उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था खुद ही आतंकवादी पैदा करने में जी जान से जुटी हुई है. यह सामान्य बात है कि बेगुनाहों का कत्ल असंतोष लाता है. और यह असंतोष अगर भड़क गया तो यह व्यवसथा ही संकट में पड़ जायेगी. इसलिए यह ज़रूरी है कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों का उत्पीउ़न तुरंत बंद हो.

श्री पटवर्धन ने कहा कि जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस नहीं हुआ था तब मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. लेकिन जब मैं अपनी फिल्म ‘राम के नाम’ बनाने के लिए वहां गया तो नजारा कुछ और ही था. प्रदेश पुलिस के लोग ही कारसेवकों का सहयोग कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह अभी कुछ दिन पहले यह बात मान चुके हैं कि मस्जिद गिराये जाने की पूर्व जानकारी उन्हें थी, जिससे साबित होता है कि सपा की धर्मनिरपेक्षता के दावे गलत और गुमराह करने वाले हैं.

उन्होंने कहा कि गुजरात में मुसलमानों के सामूहिक कत्लेआम के दोषी अब उत्तर प्रदेश में घुस गये हैं. इस समय इस प्रदेश की सेक्यूलर ताकतों की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है कि वे यहां पर गुजरात जैसा नरसंघार होने से हर हाल में रोकें.

उन्होंने कहा कि भाजपा के भविष्य के लिए सन् 2014 का आम चुनाव निर्णायक होगा. लेकिन उतनी ही निणार्यक सेक्यूलर और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चल रहे राजनीतिक आंदोलन भी होंगे. यही देश की दिशा तय करेंगे.

धरने को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डेय ने कहा कि अब विहिप के लोग मुलायम से मिलकर फिर से गुफ्तगू कर रहे हैं.  इन लोगों के बीच क्या बातें हुई हैं यह सब साफ हो चुका है.

मुलायम ने विहिप के लोगों से मंदिर बनवाने के लिए मुसलमानों से बात करने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा कि सूबे की सपा सरकार ने देश की सांप्रदायिक ताकतों के आगे घुटने टेक दिये हैं. संघ के पालतू वकीलों ने सरकार की मुक़दमा वापसी प्रक्रिया का खुला विरोध किया. लेकिन मैंने भी बेगुनाहों पर से मुक़दमें वापस लेने के लिए स्थानीय कोर्ट में एक याचिका लगाई थी जिसे खारिज कर दिया गया.

दरअसल सपा सरकार में एक मज़बूत इच्छाशक्ति की कमी है. अगर सरकार चाहे तो सब संभव है. सरकार से हमें अब किसी किस्म की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. सपा सरकार हिन्दुत्ववादी ताकतों के सामने घुटने के बल बैठ चुकी है.

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि भूमंडलीकरण की नीतियों के साथ शुरू हुए राजनीतिक मूल्यों के पतन ने देश को तबाही के कगार पर पहुंचा दिया है. जिसे हम मूल्यों की राजनीति से ही सुधार सकते हैं. रिहाई मंच इन्हीं मूल्यों की स्थापना की लड़ाई लड़ रहा है.

इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हरे राम मिश्र और एसएफआई के अखिल विकल्प ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी किये गये आकड़ों में अवैध हिरासत के मामले में उत्तर प्रदेश न केवल अव्वल है बल्कि इस देश में अपना सर्वोच्च सथान भी रखता हैं. यह कितने शर्म की बात है कि अपने को समाजवादी कहने वाली सपा सरकार के पिछले डेढ़ वर्षों के कामकाज में भी अवैध पुलिसिया हिरासत और टार्चर की घटनाओं में कोई कमी नहीं आयी है.

प्रदेश में तीन हजार से ज्यादा अवैध हिरासत की घटनाओं का होना यह साबित करता है कि इस प्रदेश में लोकतांत्रिक हुकूमत तो कतई नहीं चल रही है. जब सरकार आम आदमी के न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकार को भी सुरक्षित नहीं कर पा रही हो तो फिर उससे यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह खालिद के हत्यारे पुलिस वालों को कानून की सलाखों के पीछे भेजेगी.

पर बंद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने का वादा पूरा करने की मांग को लेकर चल रहे धरने का संचालन अनिल आज़मी ने किया. इस दौरान केके वत्स, डॉ. मसूदुर्रहमान, इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी फहीम सिद्दीकी, भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोईद अहमद, डॉक्टर कमरूदीन कमर, एसएफआई के अखिल विकल्प, डॉ जमील अहमद, कारी हसनैन सिद्दीकी, डॉ. आफताब, राधेश्याम, जैद फारूकी, शिवनारयण कुशवाहा, एनपी सिंह, मोहम्मद शारिक, अब्दुल कयूम सिद्दीकी, डॉ. हारिस सिद्दीकी, लेखिका शबाना अदीब, मोहम्मद नसीम, डॉ. काशिफ सिद्दीकी, कमर सीतापुरी, डॉ. अली अहमद फातमी, शिव दास प्रजापति, प्रबुद्ध गौतम, हरे राम मिश्र, मोहम्मद फैज इत्यादि उपस्ति थे.

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