Anita Gautam for BeyondHeadlines
आम आदमी की नज़र में देश के हजारों फुटपाथों पर पड़ी असंख्य महिलाओं की तरह ही दिखने वाली ये महिला, जिसे शायद ही कोई पहचानता हो. वो पिछले दो महीने से मुंबई के वरसोवा स्थित जे.पी. रोड के किनारे बने गुरूद्वारे के बाहर अपनी बदकिस्मती को गले गलाए मुम्बई जैसे चकाचौंध वाले शहर में सिर्फ अपने वफादार कुत्ते शशि के साथ गुजारा कर रही है.
ये महिला कोई और नहीं, बल्कि 65 वर्षीय सुनीता नायक हैं. वो सुनीता नायक, जो कभी मुंबई से प्रकाशित होने वाली मराठी पत्रिका गृहलक्ष्मी में संपादक रह चुकी हैं. पूणे की ग्रेजुएट छात्रा, फरार्टेदार अंग्रेजी बोलने से लेकर 5 भाषाओं में दक्ष आज अपनी बात समझाने में असक्षम है.
जो सुनीता कभी अपनी लेखनी से वार किया करती थी. महिलाओं की आवाज़ बनकर गुंजा करती थी. आज स्वयं न्याय की मांग कर रही हैं. बीते समय में आर्थिक रूप से ताक़तवर जो कभी बस और ऑटो तक में पांव रखने से कतराती थी. आज दर-दर की ठोकर खा रहीं हैं.
सुनीता को फुटपाथ पर दिन गुजारने को मजबूर करने वाली कोई ओर नहीं उनके मित्र ही हैं. ऐसे मित्र जिन पर वह आंख मूंद विश्वास किया करती थीं और वो दीमक की तरह इनका घर, गाड़ी, पैसा, नाम और शौहरत धीरे-धीरे कर सब खा गए…
इस हालात को स्वीकारते हुए भी उन्होंने अब तक किसी से आर्थिक मदद के लिए हाथ नहीं फैलाया. और गुरूदारे के बाहर अपने दिन बिता रही हैं. पर किसी ने सही ही कहा है. उपर वाला जगाता भुखा है पर भुखा सुलाता नहीं…
गुरूद्वारे के लोग उनकी भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं. और धीरे-धीरे ही सही हम जैसे लोग आंख मलते-मलते अपने दिमाग़ पर जोर डालकर उनको पहचानने की कोशिश कर रहे हैं. पर पहचानने से कुछ नहीं होगा. जब तक कि कोई सामाजिक संगठन उनकी मदद के लिए आगे न आए, कोई सुनीता का घर उन्हें वापिस न दिलाए.
आज स्याही न सही आंसू ही है पर उम्मीद है. ये क़लम फिर चलेगी. पर एक दिन एक नया इतिहास लिखेगी…