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Reading: हमें जवाब चाहिए, जंगल पर अधिकार चाहिए…
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हमें जवाब चाहिए, जंगल पर अधिकार चाहिए…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published August 13, 2013
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6 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

भोपाल : मध्यप्रदेश के विभिन्न सिविल सोसाइटी समूहों ने एक सम्मेलन में महान संघर्ष समिति को समर्थन देते हुए मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश से सिंगरौली के महान जंगल पर वनाधिकार अधिनियम लागू नहीं करने पर जवाब मांगा.

केन्द्रीय जनजातीय मंत्री वी.के.सी देव के द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को महान जंगल में वनाधिकार कानून के उल्लंघन को लेकर दो महीने पहले ही चिट्ठी लिखी गयी थी लेकिन अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है.

Mahan Sangharsh Samiti demands response from Shivraj Singh Chouhanमहान कोल लिमिटेड (एस्सार व हिंडाल्को का संयुक्त उपक्रम) को प्रस्तावित खदान का विरोध कर रहे ग्राणीणों के साथ ढाई सालों से काम कर रही महान संघर्ष समिति की कार्यकर्ता व ग्रीनपीस की सीनियर अभियानकर्ता प्रिया पिल्लई ने कहा कि “राज्य सरकार ने जनजातीय मंत्रालय को अभी तक जवाब नहीं दिया है. राज्य सरकार इस मुद्दे पर अपने पैर नहीं खिंच सकती.”

प्रिया ने आगे कहा कि “पिछले साल वन व पर्यावरण मंत्रालय ने कोल ब्लॉक को पहले चरण का निकासी 36 शर्तों के साथ दिया जिसमें वनाधिकार अधिनियम को लागू करवाना भी है. फिर भी राज्य सरकार ने कंपनी को फर्जी ग्राम सभा के आधार पर अनापत्ति प्रमाणपत्र दे दिया है.”

6 मार्च 2013 को अमिलिया ग्राम में एक विशेष ग्राम सभा आयोजित की गयी थी. इसमें कुल 184 लोगों ने हिस्सा लिया लेकिन आरटीआई के सहारे निकाली गये ग्राम सभा के प्रस्ताव पर 1125 लोगों का हस्ताक्षर हैं. इनमें ज्यादातर हस्ताक्षर फर्जी हैं. कई हस्ताक्षरित नाम तो ऐसे भी हैं जिनका निधन हो चुका है. 19 जूलाई 2013 को  महान संघर्ष समिति के साथ संयुक्त प्रेस सम्मेलन में केन्द्रीय मंत्री देव ने इस मामले की जांच करने का आश्वासन दिया था.

समाजवादी जन परिषद व जनसंघर्ष मोर्चा के सुनील भाई ने कहा कि “पर्यावरण की चिंताओं और स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद सिंगरौली जिले में महान क्षेत्र का जंगल और ज़मीन देश की दो सबसे बड़ी कंपनियों को सौंपना इस देश में चल रही प्राकृतिक संसाधनों की लूट का एक और उदाहरण है. इस देश का सबसे बड़ा घोटाला कोयला घोटाला ना केवल सरकारी राजस्व की चोरी है, बल्कि स्थानीय लोगों की जिंदगियों पर भी हमला है. इससे यह भी पता चलता है कि केन्द्र और राज्य सरकारों का विकास का दावा कितना झूठा है. यह कंपनियों का विकास है, लोगों का नहीं.”

अमिलिया निवासी व महान संघर्ष समिति के कार्यकर्ता उजराज सिंह खैरवार ने कहा कि “हमलोग अपने राज्य के मुख्यमंत्री से अपने अधिकार की मांग करने के लिए भोपाल आए हैं. जनजातीय मंत्रालय ने हमें समर्थन दिया है लेकिन राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला है. कोयला खदान हमें बेघर कर देगी. हम पीढ़ियों से अपनी जीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं.”

महान संघर्ष समिति के कार्यकर्ता खदान से प्रभावित होने वाले गांवों के लोगों को अपने अधिकारों के लिए संघटित करने का प्रयास कर रहे हैं. 4 अगस्त 2013 को समिति द्वारा आयोजित वनाधिकार सम्मेलन में ग्यारह गांवों अमिलिया, बुधेर, बंधोरा, पिडरवाह, बंधा, बरवांटोला, बेरदाहा, जमगडी, खनुआखास, पिड़ताली, बदलमाडा के करीब एक हजार लोगों ने हिस्सा लिया था.

संघर्ष समिति के सदस्य गणेसी सिंह गोंड ने बताया कि “सम्मेलन से पहले हमने इन ग्यारह गांवों में पांच दिवसीय यात्रा का आयोजन किया था. उन्होंने अन्य जन आंदोलनों के लोगों द्वारा महान जंगल को कोयला खदान में बदलने का विरोध करने पर खुशी जतायी. उन्होंने कहा कि इससे हमारा उत्साहवर्धन हुआ है और अपनी लड़ाई को आगे ले जाने के लिए नयी ऊर्जा मिली है.”

स्पष्ट रहे कि सिंगरौली के महान जंगल पर कुल 62 गांवों के लोग आश्रित हैं. अमिलिया, बंधोरा, बुधेर, सुहिरा और बरवांटोला के ग्रामीणों ने महान जंगल पर वनाधिकार कानून लागू करवाने तथा प्रस्तावित कोयला खदान के विरोध के लिए महान संघर्ष समिति बनायी है.

शुरुआत में महान कोल ब्लॉक को पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अस्वीकार कर दिया था. लेकिन जैसे भी इन्हें पर्यावरण व वन मंत्रालय ने 18 अक्टूबर 2012 को पहले चरण की स्वीकृति दे दी. साथ ही, दूसरे चरण के लिए 36 शर्तें भी जोड़ी गयी, जिसमें वनाधाकिर कानून 2006 को लागू करवाना भी शामिल है.

यदि महान कोल लिमिटेड को कोयला खदान आवंटित होता है तो इसका सीधा मतलब होगा कि वहां 14,990 लोगों जिनमें 2001 के जनगणना के अनुसार 5,650 आदिवासी  की जीविका को खत्म करना. महान कोल ब्लॉक के आवंटन का मतलब होगा कि महान जंगल में आवंटन के लिए प्रतिक्षारत छत्रसाल और अन्य कोल ब्लॉक के लिए दरवाजे खोल देना.

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