India

बिहार में बेखौफ़ चल रहा है अवैध उत्खनन का ‘खेल’

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बेतिया (बिहार): इंडो-नेपाल के सीमावर्ती इलाकों से होकर गुज़रने वाली प्रमुख नदियों से बालू व पत्थर के अवैध उत्खनन का खेल लगातार जारी है. उत्खनन के इस खेल में ज़िले के कई बालू व मिस्कट माफिया सक्रिय हैं. इस खेल में माफिया सरकारी राजस्व की चोरी करके मालामाल हो रहे हैं. खुलेआम कत्ले-आम जारी है. बंदुक की नोक पर बेखौफ इस काले कारनामें को अंजाम दिया जा रहा है. लेकिन तमाम सच्चाई जानने के बावजूद प्रशासन इन पर नकेल कसने में पूरी तरह से विफल है.

गौनाहा, सोनवर्षा वन, बैरिया, एकवा, परसौनी व मैनाटाड़ के जसौली, धूमाटाड़, अहिर सिसवा, पचरौता आदि बालू व पत्थर माफियाओं के लिए सेफ जोन हैं. इन क्षेत्रों से होकर बहने वाली पंडई, कटहा, दोहरम, मनियारी, द्वारदह आदि नदियां उनके लिए वरदान हैं. इन्हीं नदियों से प्रतिदिन हज़ारों टन बालू का अवैध उत्खनन कर माफिया उसे ज़िले के सुदूर इलाकों में पहुंचाकर भारी मुनाफा कमाते हैं. आम लोगों की शिकायत पर कभी कभार प्रशासन द्वारा बालू लदे ट्रैक्टरों को जब्त भी किया जाता है, लेकिन बाद में रिश्वत लेकर उन्हें छोड़ दिया जाता है. जब इस सिलसिले में यहां के पदाधिकारियों बात की जाती है तो वो यह कहकर सवाल टाल जाते हैं कि अवैध उत्खनन करने वालों पर कार्रवाई की जा रही है.

Sand Mafia in Nitish Kumar’s Shining Biharमंगुराहा के स्थानीय निवासी व अधिकारी बताते हैं कि मंगुराहा व मानपूर परिक्षेत्र के जंगल वाल्मीकी व्याघ्र परियोजना के लिए संरक्षित हैं. इसलिए इन क्षेत्रों में पत्थर के साथ किसी भी तरह के उत्खनन पर रोक है. लेकिन पत्थर कारोबारियों ने पत्थर उत्खनन का एक नया तरीका इजाद किया है. वे नदियों से जिस बालू का उत्खनन करते हैं उनमें भारी मात्रा में पत्थर भी मिले होते हैं. इन पत्थरों को नदियां अपने साथ बहा कर लाती है. पत्थर बालू को तस्करों ने ‘मिस्कट’ नाम दिया है. मिस्कट का प्रयोग सड़क, भवन, नाला व पुल-पुलिया के निर्माण में किया जा रहा है.

यह कहानी सिर्फ पश्चिम चम्पारण का ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार का है. लोगों की माने तो पहले बंदूकों के साये में खनन का काम होता है, पर अब तरीका बदल गया है. किसी सरकारी अफसर को सेट कर लेने से काम चल जाता है.

यही कारण है कि भागलपूर, बांका, मुंगेर, जमुई, लखीसराय, शेखपूरा, पटना, भोजपूर, सारण, रोहतास, भभूआ, औरंगाबाद, बक्सर, गया, नालंदा, जहानाबाद, नवादा,सीवान, गोपालगंज, वैशाली, मुज़फ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी, मधुबनी, किशनगंज, सहरसा, सुपौल व मधेपुरा में आज भी बालू खनन बदस्तूर जारी है.

दिलचस्प बात तो यह है कि पिछले साल जहां एक तरफ पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द एडवांस स्टडी ऑफ इंडिया की तरफ  से आयोजित बदलते बिहार और यहां के बालू माफिया की कहानी पर सेमिनार चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ उसी दिन बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले में यहां के गौनाहा ब्लॉक के सिट्टी पंचायत के ग्रामीण पश्चिम चम्पारण ज़िला के ज़िला अधिकारी को यहां चलने वाले अवैध बालू उत्खनन तथा नदी के कटाव में विलीन होने और सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि को रेत में बदलने के लिए बालू माफियाओं के चलने वाले खेल के संबंध में एक शिकायत पत्र दिया गया. साथ ही नदी के विनाशलीला की एक सीडी भी दी गई. लेकिन आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है.

हक़ीक़त यह है कि खनन माफिया लगातार रेत निकाल रहे हैं और सोन समेत कई नदियां तबाह हो रही हैं. बिहार सरकार ने पत्थरों के खनन पर रोक लगा रखी है लेकिन अकेले सासाराम में 400 से अधिक खनन इकाईयां कार्यरत हैं. इनमें से सिर्फ 8 के लीज वैध हैं. कैमूर की पहाड़ियों में अवैध खनन से हरियाली मर गई है और पहाड़ियों का वजूद खत्म हो रहा है. रोहतास का भी यही हाल है. इस तरह पूरे सूबे में एक हजार से अधिक अवैध खनन इकाईयां कार्यरत हैं.

पश्चिम चम्पारण के एक पत्रकार पवन कुमार पाठक बताते हैं कि बालू माफियाओं का यह धंधा अब बड़ा रूप ले लिया है, और नुक़सान यहां के स्थानीय लोगों व पर्यावरण पर पड़ रहा है. एक तरफ तो सरकार माफियाओं पर ज़मीन बड़ी क़ीमत पर लीज पर दे रही है, जिससे सरकार को अच्छा रिविन्यू मिल रहा है. वहीं दूसरी तरफ नदी के तेज़ बहाव के चलते कई गांव कट रहे हैं, जिससे लोगों को दुबारा बसाने के लिए सरकार को करोड़ों खर्च करना पड़ रहा है. जिससे नुक़सान सरकार और पर्यावरण को ही हो रहा है. अब यह बात अलग है कि इससे लाभवंतित यहां के माफिया और स्थानीय नेता हो रहे हैं, क्योंकि स्थानीय नेताओं को सरकार के आवास योजना में घोटाला करने का अवसर जो मिल जाता है.

पश्चिम चम्पारण के एक गांव का एक स्थानीय निवासी बताता है कि इन लोगों को कोई अफसर भी नहीं टोकता. बालू माफिया का इतना आतंक है कि कोई भी व्यक्ति इनसे कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. यदि कोई कुछ बोल दे तो ये असलहे तक निकाल लेते हैं. नाम न छापने की शर्त पर कुछ ग्रामीणों ने बताया बालू माफिया के कारिंदों से सवाल जवाब करना जान की आफत मोल लेना है.

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