BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : नक्सलवाद के नाम पर गढ़चिरौली से पत्रकार और सामाजिक कार्यकता प्रशांत राही की गिरफ्तारी से साफ हो जाता है कि इस देश की सरकारें देशी-विदेशी कम्पनियों द्वारा देश के प्राकृतिक संसाधनों के कार्पोरेट लूट का रास्ता साफ करने के लिए लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर भी हमले कर रही हैं.
प्रशांत राही गढ़चिरौली जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा जिन्हें माओवादी बताकर पकड़ा गया है के केस के मामले में पैरवी करने गए थे. अगर किसी अपराध में फंसाए गए लोगों की कानूनी पैरवी करने वालों को भी पकड़ा जाने लगेगा तो फिर इस देश में न्यायिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी. प्रशांत राही की गिरफ्तारी साबित करती है कि माओवाद से लड़ने के नाम पर सरकारें किस तरह जनता के न्यायिक अधिकरों को छीन कर देश में पुलिस राज कायम करना चाहती हैं.
रिहाई मंच प्रशांत राही की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करता है और उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग करता है. ये बातें रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने खालिद मुजाहिद के हत्यारे पुलिस और खुफिया अधिकारियों की गिरफ्तारी की मांग के लिए चल रहे रिहाई मंच के धरने के 105वें दिन कहीं.
रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि प्रशांत राही लम्बे समय से माओवाद के नाम पर फंसाए गए लोगों के साथ जेल के अंदर होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ़ और उन्हें राजनीतिक बंदी का दर्जा दिलाने की कानूनी और न्यायसंगत लड़ाई रह हैं. जो कहीं से भी संविधान विरोधी नहीं है. इसलिए उनकी गिरफ्तारी पर स्वयं न्यायपालिका को संज्ञान लेते हुए उन्हें रिहा करना चाहिए. क्योंकि वे गढ़चिरौली माओवाद के नाम पर गिरफ्तार किए गए संस्कृतिकर्मी हेम मिश्रा की कानूनी सहायता के लिए गढ़चिरौली गए थे.
उन्होंने कहा कि सरकारों के इशारे पर जिस तरह आतंकवाद और माओवाद के नाम पर फंसाए गए लोगों की कानूनी पैरवी करने वालों पर दमन किया जा रहा है वह लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरनाक है. और इससे यह साबित होता है कि सरकारें नहीं चाहती कि इन आरोपों में बंद लोगों को किसी भी तरह की कोई कानूनी सहायत मिले, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो फंसाए गए लोग छूट सकते हैं, जिससे साबित होता है कि ऐसे मामलों में पुलिस सिर्फ निर्दोषों को फंसा रही है जिनके खिलाफ कोई ठोस सुबूत नहीं हैं.
इस मौके पर इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि आतंकवाद और नक्सलवाद का हव्वा खड़ा कर कमजोर और अल्पसंख्यक समुदायों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले किये जा रहे हैं. मामला चाहे उत्तर प्रदेश के खालिद मुजाहिद का हो या छत्तीसगढ़ के सोनी सोरी का कानून के रखवाले ही जनता के दुश्मन बन गए हैं.
उन्होंने कहा कि खालिद की हत्या के बाद जिस तरह से प्रदेश की सपा सरकार हत्यारे पुलिस और आईबी अधिकारियों को बचाने की कोशिश कर रही है उससे समझा जा सकता है कि प्रदेश की सरकार भले जनता द्वारा चुनी गयी हो, लेकिन उसकी जवाबदेही जनता के बजाए साप्रदायिक पुलिस अमले के प्रति है. इसीलिए सपा हुकूमत में हुए 100 से अधिक दंगों में किसी भी दोषी पुलिस अधिकारी पर कोई कार्यवायी नहीं हुयी है और उन्हें खुला छोड़ दिया गया कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएं वे फिर से संघ परिवार के सहयोग से दंगे कराएं.
उन्होंने कहा कि कानपुर में 1992 में पुलिस के सहयोग से हुए दंगों के दोषी पुलिस अधिकारी एसी शर्मा की दंगों में भूमिका की जांच के लिए गठित जस्टिस माथुर कमीशन की रिपोर्ट 1997 से ही सरकार के पास के पास धूल फांक रही है. लेकिन उस पर कार्यवायी करने के बजाए सपा सरकार ने एसी शर्मा को प्रदेश पुलिस का मुखिया बना दिया.
उन्होंने कहा कि विधान सभा सत्र के दौरान ‘डेरा डालो-घेरा डालो’ अभियान के तहत सपा के उन तमाम मुस्लिम नेताओं और मंत्रियों के काले चिट्ठे उजागर किये जाएंगे जो सपा मुखिया मुलायम को टोपी पहना कर मुसलमानों को टोपी पहनाने का काम करते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता अमित मिश्रा ने कहा कि सपा सरकार में साम्प्रदायिक तत्वों के हौसले किस क़दर बुलंद हैं, इसका अंदाजा इससे लग जाता है कि विधान सभा जैसे इलाके में हिंदु महासभा भारत को हिंदु राष्ट्र घोषित करने, मुसलमानों से मताधिकार छीनने और उन्हें पाकिस्तान और बांग्लादेश भेजने का आह्वान करने वाले कानून और संविधान विरोधी पोस्टर लगाता है, लेकिन यहां की आईबी, एलआईयू, एटीएस और पुलिस को इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता. जबकि बाबरी मस्जिद और गुजरात के दोषियों को सजा देने जैसी न्यायोचित मांगों वाले पोस्टर लगाने के आरोप में न जाने कितने मुस्लिम युवकों पर राजद्रोह जैसे संगीन मुकदमे दर्ज कर दिए जाते हैं.
वहीं शिवदास प्रजापति और योगेंद्र यादव ने कहा कि आसाराम के बलात्कार में फंसने के बाद सपा सरकार को प्रदेश भर में फैले उनके आश्रमों की जांच करानी चाहिए और इस काम के लिए उन खुफिया अधिकारियों को लगाना चाहिए जो बेवजह निर्दोष मुसलमानों को फंसाने में अपनी उर्जा बर्बाद करते हैं.
उन्होंने लखनऊ में एक एसओ द्वारा महिला कान्स्टेबल के साथ की गयी अभद्रता को प्रदेश में पुलिस की बढ़ती गुंडागर्दी का नजीर बताते हुए कहा कि जब एडीजी कानून-व्यवस्था अरूण कुमार पुलिस को दबंग जैसी घटिया और अश्लील फिल्म से प्रेरणा लेने की नसीहत देंगे तो यही होगा. उन्होंने इस शर्मनाक घटना की नैतिक जिम्मेदरी लेते हुए एडीजी कानून-व्यवस्था से त्यागपत्र देने की मांग की.
धरने के समर्थन में आए पिछड़ा समाज महासभा के एहसानुल हक़ मलिक और भारतीय एकता पार्टी के सैय्यद मोईद अहमद ने कहा कि 16 सितम्बर से शुरू होने वाले सत्र के दौरान होने वाले ‘डेरा डालो-घेरा डालो’ आंदोलन से रिहाई मंच सपा की फिरकापरस्ती और भाजपा के साथ उसके गठजोड़ को उजागर कर देगा. इसकी तैयारी के तहत कानपुर, बाराबंकी, आज़मगढ़, फैजाबाद समेत आस-पास के कई जिलों में जनसम्पर्क कर लोगों से बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर वादाखिलाफी करने वाली सरकार की असलियत बताई जा रही है.
आज़मगढ़ से जारी बयान में रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि देश में जिस तरह से शासक वर्ग जनता पर संगठित हमले के लिए तैयार हो रहा है उसके प्रतिरोध में चाहे वो मुस्लिम, आदिवासी या दलित समाज हो ये भी व्यापक मोर्चे की तैयारी कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि उत्तराखंड आंदोलन और टिहरी आंदोलन से जुड़े पत्रकार प्रशांत राही दो साल पहले इसी वक्त माओवाद के आरोप से जेल से छूटे थे और उसके बाद उन्होंने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम समाज के साथ हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ आज़मगढ़ और लखनऊ में होने वाले सम्मेलनों में शिरकत की थी. ऐसे वक्त में जब प्रशांत को आज महाराष्ट्र में गिरफ्तार किया गया है. हम इंसाफ और इंसानियत की इस लड़ाई में उनके साथ हैं और सरकारों को समझ लेना चाहिए कि इस तरह की गिरफ्तारियों से जनविरोधी सरकारों के खिलाफ जनता की व्यापक गोलबंदियां रूकने वाली नहीं हैं.
यूपी की कचहरियों में 2007 में हुए धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की मांग को लेकर रिहाई मंच का धरना मंगलवार को 105 वें दिन भी जारी रहा. धरने का संचालन राजीव यादव ने किया.