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Reading: ‘नरेन्द्र’ के सपनों का भारत अवश्य ही साकार होगा
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BeyondHeadlines > India > ‘नरेन्द्र’ के सपनों का भारत अवश्य ही साकार होगा
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‘नरेन्द्र’ के सपनों का भारत अवश्य ही साकार होगा

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 3, 2013
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11 Min Read
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Anita Gautam

उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध क्षेत्र बनारस, जिसे लोग काशी के नाम से भी जानते हैं. हिन्दू आस्था का शहर, जहां 12 ज्योर्तिलिंगो में से एक ज्योर्तिलिंग है. यहां देश क्या, विदेशों से लोग भगवान के दर्शनों और मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं. कल-कल करती गंगा की पवित्र, निर्मल पावन लहरें, मनुष्य के पाप क्या, कई रोगों को ठीक करने की ताकत रखती हैं. 100 से अधिक घाट के बीच रात्रि गंगा आरती के दर्शनों को लोग कैमरों में रिकार्ड करते हैं, तो वहीं डॉक्यूमेन्टरी फिल्में भी बनाई जाती हैं.

दरअसल, बनारस वो शहर है जिसने धार्मिक अस्मिता को बरक़रार रखने के साथ-साथ देश को भारत रत्न जैसे अनेक कवि, दार्शनिक, संगीतज्ञ एवं लेखक तक दिए. दूसरी ओर शिक्षा की बात की जाए तो देश का जाना माना बनारस विद्यापीठ, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ भी संसार भर में लोकप्रिय है.

Conversion in Banarasमैं यहां तमाम मंदिरों, घाटों, विद्यापीठों का इसलिए वर्णन कर रही हूं, क्योंकि ये पूर्णरूपेण हिन्दू आस्था का शहर है. विपरित इसके यहां मुस्लिम संप्रदाय के लोगों की भी जनसंख्या अच्छी-खासी है. इस आस्था के शहर में हर धर्म संप्रदाय के लोग मां गंगा को मात्र नदी या पानी का स्रोत नहीं बल्कि पवित्र मां के रूप में मानते हैं. ये सब बनारस शहर का वो चमचमाता रूप है जिसे भारत ही नहीं पूरा विश्व खुली आंखों से देखता है. बनारस के नाम से लोगों के मुंह बनारसी पान तो महिलाओं के ज़हन में बनारसी ज़रीदार साड़ी सामने आ जाती है.

बहुत रोशनी है इस शहर में… पर इस चकाचौंध रोशनी के पीछे ऐसे भी तमाम गांव हैं, जो आज तक रोशनी से कोसों दूर हैं. जहां लाइट के बजाय सिर्फ सनलाइट से ही काम चलाना पड़ता है. दुध से नहाने वाले भगवान शंकर के शहर में भूख है… गरीबी है… असाक्षरता है और अंधविश्वास के साथ-साथ धर्म-परिवर्तन का सबसे बड़ा अड्डा भी…

जी हां, हिन्दू से ईसाई बनाने का काम यहां जोर-शोर से चलता है, जिसे पूरी प्लानिंग से मिशनरियों द्वारा एक मिशन का रूप दिया जाता है. इसके भी विभिन्न चरण है- जानिए कैसे…

गरीब लोगों को रोज़गार देने की बजाय मिशनरियों से मुफ्त में भोजन बांटा जाता है. दवा के नाम भभुत में दवाईयों को पीस कर गॉड के प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं. बच्चों को मुफ्त शिक्षा से लेकर महिलाओं में अंधविश्वास को पानी तेल और न जाने कितने तरीकों से दिमाग में बैठाया जाता है.

मजे की बात है बनारस के क्राइस नगर में तो मातृधाम नामक एक जगह पर महीने के पहले और तीसरे बुधवार को बड़ी तादात में महिलाएं 1 बोतल पानी और 1 बोतल तेल लेकर जाती हैं. सामुहिक प्रार्थना सभा में पादरी कुछ अंग्रेजी वाक्यों के उच्चारण के बाद पानी को माथे से लगा वही पानी और साथ लाए तेल में वहां रखे तेल में थोड़ा और तेल मिलाकर ईश्वर का प्रसाद स्वरूप लोगों में बांट देते हैं, जिसे लोग खुशी-खुशी अपने घर इस उम्मीद से लेकर लौटते हैं कि अब उनके दुख और दर्द दोनों ही दुर हो जाएंगे… पर शायद यह आस्था नहीं अंधविश्वास है.

वहीं की एक समाज सेविका से बात की तो पता चला कि लोग पैसे के अभाव में डॉक्टर के पास नहीं जाते और जब पादरी के पास जाने का कारण पूछा तो अधिकांश महिलाएं बोली कि कई बार हमारे बच्चों को नज़र लग जाती है. लोग दुश्मनी निकालने के लिए जादू-टोना करके घर पर भूत बैठा देते हैं और फिर जब हम ओझा के पास जाते हैं तो वे ओझैती करना तो दूर चार फूंक मारने का बहुत पैसा बताते हैं. मजबुरन हमें पैसे देने पड़ते हैं.

और दूसरी ओर जब हम पादरी के पास जाते हैं तो वो मुफ्त में हमें जीजस का निर्मल पानी और ज्यादा तकलीफ होने पर फुंका हुआ भभूत दे देते हैं जिससे हम फटाफट ठीक हो जाते हैं.

वहीं सभा में आई एक महिला से धर्म-परिवर्तन की बात करने पर वह गुस्से से बोली- हिंदू धर्म में तमाम जातियां हैं. हम दलित हैं. गांव के लोग हमें मंदिर नहीं जाने देते… कुएं से पानी नहीं भरने देते… यहां तक कि ज्यादा तबियत खराब होने पर डॉक्टर घर नहीं आते… अलबत्ता बुरा व्यवहार करते हैं… बच्चों की पढ़ाई के लिए जैसे-तैसे मजदुरी करते हैं पर स्कूल में एक तो फीस ज्यादा है, उपर से हमारे बच्चों को अन्य बच्चों से दूर कुर्सी की बजाय ज़मीन पर बैठाया जाता है.

हम लोग जबसे इस सभा में आए हैं, कई लोगों से हमारा परिचय हुआ. पादरी ने हमारे बच्चे का मुफ्त में मिशनरी स्कूल में एडमिशन कराया और हमारा बच्चा अब अच्छी शिक्षा ले रहा है. फिर हमारे बच्चे का नाम ऐमि हो या अमीता उससे क्या फर्क पड़ता है?

बच्चे के गले में भगवान का लाकेट डालने भर से बवाल हो जाता है. कई बार तो गांव के पंडितों ने विरोध किया, पर जीजस का लाकेट डालने से हमारे बच्चे का भविष्य ही बन रहा है. आखिर इन सबके पीछे बुराई ही क्या है? आखिर कोई तो हमें पूछ रहा है अपने बराबर बैठाकर हमारे बारे में सोच रहा है.

धर्म-परिवर्तन की सीधी बात पूछने पर पादरी का जवाब था. यहां धर्म परिवर्तन नहीं, मन परिवर्तन होता है. लेकिन मन परिवर्तन के लिए लोगों को पानी, भभूत या तेल का सहारा लेना पड़ रहा है. यह बात मेरी समझ से थोड़ा परे थी…

इतने लोगों से बातचीत के दौरान लोगों की आर्थिक एवं मानसिक स्थिति को जानने पर मेरी समझ अंधविश्वास की अपेक्षा असाक्षरता पर टिक गई. लोगों में बढ़ रहे अंधविश्वास का मूल कारण गरीबी के साथ-साथ असाक्षरता और असमानता है. असाक्षरता के चलते ही लोग अच्छे और बुरे के अंतर को समझ नहीं पाते. दूसरी ओर भेदभाव इंसान को समाज से जोड़ने की बजाय समाज से तोड़ देता है. उसे ऐसे छोर पर पहुंचा देता है जहां वो अकेला होता है और जो उस अकेले की ओर ज़रा सा देख ले, व्यक्ति उसी से उम्मीद करता है और गरीबी हालत इंसान को समझौते के रंग में रंग देती है.

वहीं दूसरी ओर, खासतौर से हिन्दु धर्मावलम्बियों की बात की जाए तो लंबे समय से चले आ रहे हिन्दु धर्मांतरण के कारणों की तह तक जाना अति आवश्यक होगा. मुझे नहीं लगता आज तक किसी व्यक्ति से जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया हो और शिकायत रूपी एफआईआर किसी पुलिस स्टेशन में दर्ज हो.

जहां तक मेरी समझ का सवाल है देश में जब तक लोग एक जुट हो मानवता को धर्म एवं महिला और पुरूष को दो जाति के रूप में नहीं मानेंगे, तब तक ये भेद मिटने वाला नहीं. सदियों से धर्म के रक्षक कहलाने वाले शास्त्र और समाज को लेकर हो हल्ला तो करते दिखते हैं पर कभी समाज के लोगों को मनुष्य बनाने की कोशिश नहीं करते. हिन्दु धर्म में प्रत्येक जाति के लिए अलग-अलग नियम बनाने से क्या कभी लोगों में एकजुटता का होना संभव होगा?

भारत देश में राम और कृष्ण की पूजा तो हर घर में होती है पर क्या कभी किसी ने राम की तरह जातिगत भेद मिटा किसी शबरी का झूठा खाया? कृष्ण की तरह किसी सुदामा को गले लगाया?  शायद नहीं… क्योंकि हमारे देश में हिन्दू होने के बाद भी गैर जातिय शादी करने तक पर समाज से बहिष्कृत कर दिए जाते हैं. ब्राह्मण किसी दलित से शादी नहीं कर सकता. तो दलित 21वीं सदी में भी मंदिरों में पांव नहीं रख सकता, राजपूतों को आज भी दबंग के रूप में ही जाना जाता है, पर शायद ही कोई राजपुताना औरत के आंसुओं का दर्द समझे.. आखिर ये धर्म भेद क्यों और कब तक??

जब हमारे देवी-देवता, महाषुरूष बिना किसी भेदभाव के देश के नवनिर्माण में पहल कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं? नरेन्द्र यानी हमारे स्वामी विवेकानंद (स्वामी विवेकानंद का एक नाम नरेन्द्र भी है, आप इस नरेन्द्र को नरेन्द्र मोदी समझने की भूल न करें…) के अनुसार भारत के विकास पथ में सबसे बड़ी बाधा सनातन परंपराओं की कमजोरी है, अशिक्षा है, गरीबी है…

अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए देश के तमाम ओझाओं-बाबाओं और फादरों की ओर देखने की अपेक्षा यदि समानता, शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य की ओर ध्यान दिया जाए, तो यकीनन देश में ऐसे पाखंडी लोगों की समाप्ति हो जाएगी, जो अपने धर्म और मज़हब के नाम लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं… जिस दिन भारत में समानता और शिक्षा का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को मिल जाएगा उसी दिन विवेकानंद का वो सपना साकार होगा जिसे वो कभी शिकागों में देख कर आए थे.

(लेखिका प्रतिभा जननी सेवा संस्थान की दिल्ली स्टेट कोर्डिनेटर हैं.)

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