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पुलिस नहीं बदली…

Himanshu Kumar

दिल्ली में हमारे एक वकील दोस्त श्रीजी भावसार हैं.  मानवाधिकारों के लिए काम करते हैं. एक बार उन्हें ख़बर मिली कि दिल्ली के पास अली गांव नाम की एक दलित बस्ती को बिल्डिंग माफिया वाले पुलिस की मदद से तोड़ रहे हैं.

श्रीजी भावसार एक साथी महिला वकील सिस्टर सुमा के साथ तुरंत बस्ती में पहुंचे तो देखा कि चार बुलडोजर लेकर बिल्डर लोग दलितों के मकानों को तोड़ रहे हैं.  चार मकान तोड़े जा चुके थे और पूरी बस्ती को तोड़ने की योजना थी. वकील श्रीजी भावसार ने मकान तोड़ने वालों से पूछा कि आपके पास इन मकानों को तोड़ने का कोई सरकारी या कोर्ट का आर्डर है क्या? तो बिल्डरों ने वकील श्रीजी भावसार व साथी महिला वकील के साथ गाली गलौज शुरू कर दी…

Police did not change ...वकील श्रीजी भावसार व महिला वकील नज़दीक में ही सरिता विहार थाने में पहुंचे. पुलिस ने कहा आज इतवार है. आज पुलिस की छुट्टी होती है जाओ. आज कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जायेगी. वकील श्रीजी भावसार ने कहा कि मैं वकील हूँ और मुझे पता है कि रिपोर्ट रोज़ाना और चौबीसों घंटे लिखी जा सकती है. आप रिपोर्ट लिखिए और कार्यवाही कीजिये.

इस पर ड्यूटी पर तैनात सब इंस्पेक्टर ओ.पी. यादव ने एक डंडा उठा कर वकील श्रीजी भावसार को पीटना शुरू कर दिया. इससे वकील श्रीजी भावसार का का हाथ टूट गया इसके बाद वो चिल्ला कर बोला कि मेरी पिस्टल लाओ इसका एनकाउंटर करता हूँ. साथी महिला वकील सिस्टर सुमा किसी तरह वकील श्रीजी भावसार को लेकर थाने से लेकर बाहर भागी.

वकील श्रीजी भावसार ने इस पूरी घटना को अपने मोबाइल में रिकार्ड कर लिया था. मामला दिल्ली हाई कोर्ट में दायर किया गया.

तीन हफ्ते बाद वकील श्रीजी भावसार पर फिर से हमला हुआ और इस बार दो अज्ञात युवकों ने हॉकी से मार कर वकील श्रीजी भावसार का पैर भी तोड़ दिया.

मुक़दमे की सुनवाई के दौरान जज साहब ने कहा कि आप तो सिर्फ वकील हैं, लेकिन पुलिस थाने का माहौल तो ऐसा होता है कि मैं जज होने के बावजूद वहां जाने में डरता हूँ.

इस मामले में एक केस का हवाला दिया गया जिसमें गुजरात के एक जज को पुलिस वाले कोर्ट से उठा कर थाने ले गए थे और जज के मूंह में शराब की बोतल घुसा कर शराब पिलाई थी और फिर उसे बुरी तरह मारा था.

अब इस मामले में फंसा हुआ पुलिस अधिकारी वकील साहब से माफी मांग रहा है और मामले को कोर्ट के बाहर निबटाने के लिए पैर पकड़ रहा है.

लेकिन एक फायदा हो गया अब उस दलित बस्ती को तोड़ने वाले उधर नहीं आते. शायद इसलिए क्योंकि अब उन्हें बचाने वाले पुलिस के साहब ही फंस गए हैं.

दिल्ली पुलिस की कुछ और कहानियाँ अभी मेरी मेज़ पर और भी हैं. धीरे धीरे लिखूंगा… आज़ादी आई पर गुलामी वाली पुलिस नहीं बदली. ये अभी भी खुद को जनता की पुलिस नहीं सरकार की पुलिस समझते हैं.

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