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सरकारी उलेमा कर रहे हैं दंगाई सरकार को क्लीन चिट देने की कोशिश

BeyondHeadlines News Desk

मुजफ्फरनगर : शामली में मुसलमानों पर हुये संगठित हमलों के दोषियों को बचाने में लगी सरकार ने अपने पेड उलेमाओं को मैदान में उतार कर मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश शुरू कर दी है. कुछ तथाकथित उलेमा पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर खास कर राहत शिविरों में जाकर मुसलमानों में अमन का पैगाम बांटने का नाटक कर मुस्लिम विरोधी हमले कराने वाली सरकार को क्लीन चिट देने में लगे हैं. जैसे मुसलमानों पर हुये इस जुल्म की वजह वे खुद हों. उलेमा संगठन हिंसा पीडि़तों को स्वयं पुर्नवास की व्यवस्था करने की बात करके हिंसा पीडि़त मुसलमानों के प्रति सरकार की जवाबदेही को कम कर परोक्ष तौर पर सरकार को मदद पहुंचाने में लगे हैं. जबकि अपने नागरिकों की सुरक्षा और पुर्नवास की जिम्मेदारी सरकार की है.

Rihai Manch fact finding teamये बातें रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने लखनऊ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं. उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह आतंकवाद के फर्जी आरोप में बंद खालिद मुजाहिद जिसे निमेष कमीशन की रिपोर्ट भी बेकसूर बताती है कि पुलिस द्वारा की गयी हत्या के बाद भी यही सरकारी उलेमा खालिद के चचा को 6 लाख रूपये देकर उनकी हत्या को बीमारी से हुयी मौत बताने की कोशिश कर रहे थे. जिसे अवाम ने बखूबी समझ लिया और खालिद की इंसाफ की लड़ायी को जारी रखा. इसी तरह अवाम को मुज़फ्फरनगर और शामली में सरकार की सरपरस्ती में हुयी मुसलिम विरोधी हिंसा में सरकारी उलेमाओं के बहकावे में न आते हुये इंसाफ की लड़ायी को जारी रखना होगा.

वहीं मुफ्फरनगर और शामली में मुस्लिम विरोधी संगठित हिंसा की जांच करने आए रिहाई मंच जांच दल ने कहा कि जिस तरह जाट गांवों में महिलाओं द्वारा हथियारबंद होकर पुलिस बल को गांव में न घुसने देने और घुसने पर उनके घुटने काट देने की धमकी खुलेआम देने के बावजूद उनपर मुक़दमे दर्ज न करके सरकार मुसलमानों में भय का माहैल बनाए रखना चाहती है.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पूरे इलाके में धारा-144 लगी हुयी है. बावजूद इसके भाजपा नेता हुकूम सिंह जिस तरह गांव-गांव घूम कर पंचायतों में भाषण देकर मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगल रहे हैं, उससे साफ हो जाता है कि सपा सरकार जान बूझ कर हुकूम सिंह को हीरो बनने का अवसर दे रही है, जिससे समझा जा सकता है कि सपा और भाजपा के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए आपसी समझौता हुआ है.

रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि जिस तरह 7 सितम्बर की नंगला मदौड़ की महापंचायत जिसकी इजाजत नहीं थी और जो धारा-144 लागू होने के बाद हुयी थी, से एक दिन पहले 6 सितम्बर को हुकूम सिंह के रिश्तेदार डीजीपी देवराज नागर ने मुजफ्फरनगर का दौरा किया उससे इस बात की आशंका और प्रबल हो जाती है कि पूरा ड्रामा पहले से तय था, जिसमें डीजीपी की भूमिका अहम रही है. उन्होंने मांग की कि डीजीपी देवराज नागर को तत्काल निलंबित किया जाए साथ ही हिंसा प्रभावित गांवों के प्रधानों और स्थानीय थानों के पुलिस अमले के फोन डिटेल्स को जांचा जाए, क्योंकि पीडि़त मुसलमानों ने कई बार अपने ग्राम प्रधानों और पुलिस अधिकारियों से अपनी सुरक्षा की गुहार लगायी थी, जिसे उनकी तरफ से बहुत भद्ये तरीके से गालीयां देते हुये इंकार कर दिया गया था.

इस बीच रिहाई मंच जांच दल के सदस्यों अधिवक्ता असद हयात, लक्ष्मण प्रसाद, तारिक़ शफीक़, आरिफ नसीम, राजीव यादव और शाहनवाज आलम को कांधला कैम्प में शरण लिए लिसाढ़ गांव के 28 वर्षीय शकील अहमद सैफी पुत्र सूबेदीन ने बताया कि हमारा खानदान पिछले तीन- चार सौ सालों से गांव के जाट किसानों की सेवा करता था. उनकी किसानी के औजार जैसे गड़ासे, कुदाल सब हम ही बनाते थे उनके खेतों में काम भी हम ही करते थे. लेकिन अचानक सदियों पुराना यह रिश्ता उन लोगों ने एक दिन में ही खत्म कर दिया.

शकील ने बताया कि गांव के सारे मुसलमानों ने मिल कर अजीत सिंह को मुखिया बनाने के लिए वोट दिया था. लेकिन उसी मुखिया ने उनको मारने के लिए झुंड लेकर उन पर हमला कर दिया. अपने 25 परिजनों के साथ गन्ने के खेत में दो दिनों तक छुप कर जान बचाने वाले शकील ने बताया कि हमलावर उन्हें ढ़ूढ़ने के लिए कई बार गन्ने के खेतों में आते थे जिनके साथ पुलिस भी रहती थी, लेकिन किस्मत अच्छी थी कि वे बच गए. वे कहते हैं कि शायद छोटे बच्चे भी समझ गए थे कि रोना नहीं है, वो चुप छुपे रहे. अगर बच्चे रोए होते तो हम सब मार दिये गये होते.

इसी गांव के राशिद पुत्र सुबराती ने बताया कि 7 सितम्बर को ही उन्होंने प्रधान के घर के बाहर पुलिस अधिकारियों की भीड़ देखी थी. लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि पुलिस ऐसा करेगी. वहीं कांधला रिलीफ कैम्प की व्यवस्था से जुड़े मोहम्मद सलीम ने लखनऊ से कुछ उलेमाओं द्वारा अमन कारवां लेकर कैम्प में आने पर टिप्पणी करते हुये जांच दल को बताया कि हम मुसीबत के मारे मुसलमानों के बीच इन लोगों द्वारा अमन का पैगाम लेकर आने से हमें बहुत हैरानी हो रही है. उन्हें अगर अमन का पैगाम ही बांटना है तो उन जाटों के गांवों में जाएं जहां मुसलमान काटे और जलाए गए हैं.

वहीं रिहाई मंच जांच दल को जोगिया खेड़ा राहत शिविर में रह रहे फुगाना गांव के 55 वर्षीय मान अली पुत्र फतेहदीन शेख ने बताया कि 8 सितम्बर को सुबह 9-10 बजे के करीब पूर्व प्रधान हरपाल पुत्र नहार, विनोद पुत्र मंगा जाट, अरविंद डॉक्टर पुत्र रामफल, उदयबीर पुत्र बलजोरा, सुनील पुत्र बीरम सिंह ने उनके घर के बाहर इकठ़ठे हो कर मान अली और दूसरे मुसलमानों से कहा कि वे गांव छोड़ कर न जाएं, वे लोग उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं. जब वे रूक गए तभी आधे घंटे के अंदर ही मौजूदा प्रधान थाम सिंह उर्फ थम्मू की अगुवाई में हथियारों से लैसे बड़ी भीड़ उनकी तरफ बढ़ी जिसे देखते ही मान अली घर की ओर भागे जिन्हें पकड़ने की कोशिश उन्हें समझाने आए लोगों ने की, जिसमें बूढ़े होने के चलते मान अली के चाचा 65 वर्षीय इस्लाम उनके कब्जे में आ गए जिन्होंने उन्हें गड़ासे से काट डाला.

मान अली ने जांच दल को बताया कि हमलावरों में शामिल विनोद पुत्र मंगा, संजीव पुत्र प्रहलाद और अरविंद डॉक्टर पुत्र रामफल ने मुस्तकीम शेख की पत्नी तस्मीम के साथ बलात्कार किया.

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