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जनता के मनोबल से ज्यादा साम्प्रदायिक आईबी का मनोबल बढ़ाने में लगी है सरकार

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 1, 2013
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8 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि जिस तरीके से पिछले दिनों आज़मगढ़ के असदुल्ला अख्तर की गिरफ्तारी भारत-नेपाल सीमा के मोतिहारी से दिखाई गई, वहीं इस गिरफ्तारी को लेकर नेपाल की मीडिया में आया कि इन्हें नेपाल से गिरफ्तार किया गया है.

जहां तक इस पूरे मसले को बारीकी से देखा जाय और जिस तरीके से पिछले दिनों चाहे वो लियाकत अली शाह का मामला हो या फिर टुंडा का इन सभी को भी नेपाल सीमा से गिरफ्तार करने का दावा किया गया था, दरअसल नेपाल एक कमजोर देश है जो भारत के खिलाफ बोलने से झिझकता है और भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी को वहां से पहले से अपने पास रखे लोगों की गिरफ्तारी दिखाने में ज्यादा सहूलियत हासिल रहती है.

Rihai Manch indefinite dharna completes 103 day जहां तक सवाल बोधगया में हुए धमाकों का है तो हर शख्स इस बात को जानता है कि जिस दिन आईबी प्रमुख आसिफ इब्राहिम ने इशरत जहां केस से आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार का नाम हटाने के लिए कहा और ऐसा न करने पर मनोबल गिरने की दुहाई दी और उसके बाद बोधगया में धमाके हो गए तो इससे साफ हो गया था कि आईबी ने अपने सांप्रदायिक मनोबल को बचाने के लिए इस धमाके को कराया.

ऐसे में जिस तरीके से इस घटना में इंडियन मुजाहिदीन का नाम लिया गया और ठीक उसके बाद यासीन भटकल की गिरफ्तारी की गई, उस यासीन की जिसके आईबी के द्वारा प्लांटेड होने पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं तो ऐसे में यह साफ हो जाता है कि आईबी ही आईएम की संचालक है.

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि आईबी के अधिकारियों को संविधान कोई विशेष छूट नहीं देता जिससे कि वे अपराध करके भी बचे रहें. इशरत समेत कई मामलों में जिस तरह सरकार आईबी अधिकारियों को बचाने में लगी है उससे लगता है कि यह विभाग कानून से उपर है. इससे पूरी दुनिया में भारत की न्याय व्यवस्था की बदनामी हो रही है.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि हम खास तौर पर आज़मगढ़ के उन परिवारों से कहना चाहेंगे जिनके बच्चे लंबे समय से गायब हैं, उन्हें हैबियस कार्पस करना चाहिए क्योंकि सिर्फ आज़मगढ़ ही नहीं दरभंगा, समस्तीपुर, भटकल समेत विभिन्न जगहों के लड़कों को आईबी ने फंसाकर सिर्फ देश में ही नहीं दूसरे देशों सउदी, दुबई तक में रखा है और उन्हें समय पड़ने पर पकड़ने का दावा करती है.

असदुल्ला अख्तर की गिरफ्तारी और उनके परिवार द्वारा इतने साल बीत जाने के बाद भी हैबियस कार्पस न करके आईबी के सांप्रदायिक मनोबल को बढ़ने का मौका दिया गया. आईबी की निशानदेही पर पकड़ने का दावा करना जबकि वो उन्हीं के शिकंजे में था से साम्प्रदायिक आईबी के हौसले बढ़ते हैं और बेगुनाहों की रिहाई की मुहीम पर सांप्रदायिक लोगों को बोलने का मौका मिलता है.

उन्होंने दरभंगा के फसीह महमूद जिनको सउदी अरब से पिछले साल मई में गिरफ्तार किया गया था और उनकी पत्नी निकहत परवीन द्वारा हैबियस कार्पस करने के बाद अंन्ततः पांच महीने बाद फसीह को भारत लाने की लड़ाई का उदाहरण देते हुए कहा कि निकहत द्वारा फसीह को लेकर किया गया हैबियस कार्पस ने सिर्फ खुफिया विभाग की आपराधिक भूमिका का ही पर्दाफाश नहीं किया बल्कि इस बात को भी स्थापित किया कि किस तरीके से मुस्लिम युवकों को उठाकर महीनों महीनों रखा जाता है.

आज तक भारत सरकार फसीह महमूद के मुद्दे पर मुंह चुराती है. ऐसे दौर में जब जनता के मनोबल को गिराया जा रहा है तो सिर्फ आज़मगढ़ ही नहीं दरभंगा, भटकल समेत जहां के भी लड़के गायब किए गए है उन परिवारों को हैबियस कार्पस करना चाहिए.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने बताया कि जिस तरीके से आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर न्यायपालिका तक का रवैया आज़मगढ़ के शहजाद प्रकरण में सामने आया कि बिना सबूतों के उसे आजीवन कारावास की सजा दे दी गयी ऐसे में हम बाटला हाउस की पांचवीं बरसी पर विधानसभा जहां रिहाई मंच का अनिश्चित कालीन धरना चल रहा है वहां पर सम्मेलन करेंगे.

आज जब यह साफ हो गया है कि चाहे इस देश की सर्वोच्च संस्था संसद पर आतंकी हमले की बात हो या फिर 26/11 मुंबई हमला इनमे सरकारों की भूमिका रही है और यह बात सरकार के गृह मंत्रालय के अधिकारियों का ही कहना है तो आखिर इतने बड़े लोकतंत्र में इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि वो आतंकवादी घटनाओं की पुर्नर्विवेचना कराए.

इन सभी बातों के साथ ही इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ प्रकरण में जिस तरीके से पिछले दिनों शिंदे समेत पूरा गृह मंत्रालय आईबी के राजेन्द्र कुमार को बचाने की कोशिश कर पूरी न्याय की प्रक्रिया को बाधित किया ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी इस देश में एक नए तरह से फासीवाद का उभार कर रही है, जहां खुफिया एजेंसियों पूरे लोकतांत्रिक ढांचे का टेकओवर कर रही हैं. क्योंकि इशरत जहां के कत्ल में शामिल आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार वही शख्श है जो बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ में साजिद और आतिफ की हत्या में शामिल रहा है.

रिहाई आंदोलन पिछले पांच सालों से लगातार बाटला हाउस की बरसी पर संजरपुर आज़मगढ़ जहां के साजिद व आतिफ थे समेत पिछले साल चौथी बरसी पर लगातार आतंकवाद की इस राजनीति के खिलाफ और वो जिन्हें इंसाफ की जगह पुलिस की गोलियां से छलनी किया गया, उनकी याद में अपना प्रतिरोध दर्ज कराता रहा है. इसी कड़ी में इस साल 19 सितंबर को लखनऊ विधानसभा पर एक बड़ा सम्मेलन करेगा.

मुस्लिम मजलिस के नेता मोहम्मद शकील और जैद अहमद फारूकी ने कहा कि विधान सभा सत्र के दौरान निमेष कमीशन रिपोर्ट रिपोर्ट, आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों की रिहाई और दंगों पर खामोशी अख्तियार करने वाले सपा विधायकों और मुस्लिम मंत्रीयों का घेराव कर उन्हें जनता के सामने बेनकाब किया जाएगा.

यूपी की कचहरियों में 2007 में हुए धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की मांग को लेकर रिहाई मंच का धरना रविवार को 103वें दिन भी जारी रहा. धरने का संचालन राजीव यादव ने किया.

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