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Reading: सिलसिलेवार तरीके से गुजरात दोहरा रहे हैं अखिलेश
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BeyondHeadlines > India > सिलसिलेवार तरीके से गुजरात दोहरा रहे हैं अखिलेश
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सिलसिलेवार तरीके से गुजरात दोहरा रहे हैं अखिलेश

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 8, 2013
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8 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : पिछली 27 तारीख से ही मुजफ्फरनगर में जिस तरह से सांप्रदायिक ताकतें सपा के प्रशासनिक संरक्षण में सांप्रदायिक व सामंती तत्वों को बढ़ावा दिया, उसके नतीजे में 10 से अधिक बेगुनाहों को जान से हाथ धोना पड़ा. यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित षडयंत्र का परिणाम है और यह षडयंत्र लुक छिप के नहीं बल्कि पंचायतें लगाकर खुलेआम एक समुदाय विशेष के खिलाफ आगे गोलबंदी की गई और उसके बाद संगठित हमला… यह बातें आज रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने अनिश्चित कालीन धरने के 110वें दिन कहा.

rihai manch Indefinite dharna completes 110 Daysउन्होंने मुजफ्फरनगर जिले के प्रशासनिक अमले से लेकर यूपी के एडीजी लॉ एण्ड आर्डर अरुण कुमार तक की इन दंगों में खुली भूमिका के चलते तत्तकाल प्रभाव से बर्खास्त करते हुए दंगे की सीबीआई जांच की मांग करते हुए कहा कि जिस तरीके से सैकड़ों दंगे कराने वाली सपा सरकार इंसान की कीमत मुआवजों से लगा रही है वो उससे बाज आए क्योंकि जिसका बेटा, जिसका पती मरा होगा, जिसके बच्चे अनाथ हुए हैं उनके आसुओं को पैसों से नहीं तोला जा सकता.

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि मुलायम सिंह का सांप्रदायिक ताकतों को मज़बूत करने का खेल बहुत पुराना है और पिता के नक्से क़दम पर अखिलेश यादव भी चल रहे हैं. आज जिस तरह पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही अखिलेश यादव ने प्रदेश को दंगों की आग में झोंक दिया. ठीक इसी तरह मुलायम ने भी सन् 1990-91 में यूपी को दंगाइयों के हवाले कर दिया था.

उन्होंने कहा कि आज भी उस मंजर याद करके दिल दहल जाता है कि एक साथ प्रदेश के 45 जिलों में कर्फ्यू लगा था. ठीक आज जिस तरह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मोदी और उसके गुर्गे अमित शाह के लिए प्रदेश में 100 से ज्यादा सांप्रदायिक दंगे करवा कर ज़मीन तैयार कर रहे हैं. यही काम उनके पिता मुलायम ने भी 1990-91 में लाल कृष्ण आडवानी के लिए की थी. पर मुलायम को यह समझ लेना चाहिए कि जिस सांप्रदायिक राजनीति ने आडवानी को जीवन पर्यन्त वेटिंग में रख दिया उस राजनीति से वो दिल्ली का रास्ता नहीं तय कर सकते. दंगे झेलते-झेलते जनता परिपक्व हो गई और और वो देख रही है कि किस तरीके से सांप्रदायिकता के नाम पर 2014 के चुनावों की तैयारी हो रही है.

मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि आज उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था ही उस सांप्रदायिक अरुण कुमार के हाथों में है जिसकी करतूतें मालेगांव मामले में बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों के जीवन को बर्बाद करने के मामले में जगजाहिर है. उन्होंने कहा कि सन् 2001 में कानपुर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर रहते हुए अरुण कुमार के निर्देश पर 13 अल्पसंख्यक पुलिस की गोली से मारे गए तथा मारे गए लोगों के मां-बाप से इस बात का शपथ पत्र भी ले लिया था कि अब वे यह कहीं नहीं कहेंगे कि उनका पुलिसिया उत्पीड़न हुआ है, इसी शर्त पर उन्हें 2 लाख की सरकारी मदद दी गयी थी.

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कानून और व्यवस्था लागू करने वाले अफसरों पर कोई नियंत्रण नहीं है. दंगों के शिकार परिवारों के प्रति मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आंसू केवल घडि़याली हैं. अगर अखिलेश यादव इस दंगे पर संजीदा हैं तो एडीजी कानून व्यवस्था अरुण कुमार को  तत्काल बर्खास्त करें.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और हरे राम मिश्र ने कहा कि मुजफ्फर नगर में बहू बेटी बचाओ अभियान के नाम पर सामंती सांप्रदायिक ताक़तें ध्रुवीकरण का गंदा खूनी खेल खेल रही थी और सरकार को सब कुछ मालूम होते हुए भी जिस तरह से इनके खिलाफ कोई क़दम नहीं उठाया गया. उससे यह बात साफ है कि सरकार इन दंगों में ही अपना फायदा देख रही थी.

उन्होंने कहा कि जिस प्रायोजित तरीके से अफवाहें फैलाई गयी और पुलिस द्वारा दंगाइयों को माहौल को विषाक्त करने का पूरा मौका दिया गया उससे यह साफ है कि दंगे सरकार की मंशा के मुताबिक ही हुए हैं. आज जिस तरह से फैजाबाद से लेकर मुजफ्फर नगर तक दलितों व पिछडों को अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है वह अखिलेश सरकार की सांप्रदायिकता का नया प्रयोग है. उन्होंने कहा कि सुल्तानपुर का सांप्रदायिक तनाव इस बात की पुष्टि करता है कि सपा सरकार प्रदेश में अपने जातिगत चुनावी समीकरण को तेजी से मज़बूत करने में जुटी हुई है.

सामाजिक कार्यकता गुफरान सिद्दीकी और पत्रकार शिवदास ने कहा कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह के सांप्रदायिक करतूतों की फोटो कापी करते नज़र आ रहे हैं. जिस तरीके से बहू-बेटी बचाओ अभियान के नाम पर सांप्रदायिक तत्वों को मुजफ्फर नगर में बढ़ावा दिया गया ठीक इसी तरह पिछली मुलायम सरकार ने गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को हिंदू चेतना रैलियों के नाम पर सांप्रदायिकता फैलाने की खुली छूट दे रखी थी. जिसका खामियाजा मऊ, पडरौना, कुशीनगर, गोरखपुर समेत पूर्वांचल के कई शहरों में भीषण सांप्रदायिक दंगों के रुप में जनता को भुगतना पड़ा.

मऊ में तो कहीं जिंदा काटकर जलाया गया तो कहीं मां-बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश देते हुए टिप्पड़ी की थी कि यह घटना गुजरात की जाहिरा शेख से मिलती जुलती है. आज मुजफ्फर नगर में भी यही किस्सा दोहराया गया और 13 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.

पिछड़ा समाज महासभा के एहसानुल हक़ मलिक और भागीदारी आंदोलन के पीसी कुरील और भारतीय एकता पार्टी के सैय्यद मोइद अहमद ने कहा कि सपा सरकार के डेढ़ वर्षों के शासनकाल में जिस तरह से दंगे दर दंगे उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे हैं और सरकार जिस तरह से इन दंगों को रोक पाने में लगातार विफल साबित हो रही है. इस बात की ओर इशारा है कि सपा सरकार प्रदेश की सांप्रदायिक ताक़तों के आगे न केवल नतमस्तक हो चुकी है बल्कि इन दंगों की आड़ में हो रहे धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण को अपने चुनावी लाभ के बतौर देख रही है.

इन दंगों ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश की कानून और व्यवस्था चलाने वाले पुलिस अफसरों पर से सरकार का नियंत्रण एक दम खत्म हो गया है और कानून व्यवस्था के मामले में सरकार पूरी तरह से सांप्रदायिक जेहनियत के पुलिस अधिकारियों के रहमो करम पर आश्रित हो चुकी है. मुजफ्फर नगर मे जो भी हो रहा है उसकी पृष्ठभूमि अचानक नहीं बनी, लिहाजा इतने बड़े पैमाने पर हुए इस जन संघार को प्रायोजित करने में किन किन की भूमिका है, इसकी सीबीआई जांच कराई जाए.

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