BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : जिस तरह मुजफ्फरनगर और उसके आस पास के इलाकों में पिछले 15 दिनों से सांप्रदायिक हिंसा और तनाव जारी है, उससे साफ हो जाता है कि राज्य मशीनरी की इन दंगों को रोकने में कोई दिलजस्पी नहीं थी और उसने स्थिति को इस हद तक भयावह होने दिया कि उसमें 30 लोग मारे गये. इन हत्याओं के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रदेश सरकार जिम्मेदार है, जिसने पिछले दिनों भाजपा के साथ मिलकर 84 कोसी परिक्रमा के बहाने दंगा फैलाने की कोशिशों को जनता द्वारा नकार दिये जाने के बाद भाजपा के साथ मिलकर बदले की भावना के तहत जनता को दंगों की आग में झोंका है. जिससे समझा जा सकता है कि आरएसएस के हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर अमल करने के लिए यह सरकार किस हद तक बेताब हो गयी है.
उपरोक्त बातें रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने रिहाई मंच के अनिश्चितकालीन धरने के 111 वें दिन सभा को संबोधित करते हुए सोमवार को कहीं.
मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जिस तरह मुजफ्फरनगर की घटनाओं के बाद शासन और प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने की बात कर रहे हैं उससे साबित हो जाता है कि अव्वल तो उनके बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूरी तरह से अक्षम साबित हो गये हैं और दूसरे यह कि स्थिति को अपने नियंत्रण में लेकर उन्होंने साफ कर दिया है कि लोकतंत्र में उनकी कोई आस्था नहीं है और दंगे जैसे संकट को वे अपना पारिवारिक संकट मान रहे हैं. जबकि शासन और प्रशासन को तलब करने और उसे अपने नियंत्रण में लेने का कोई संवैधानिक अधिकार उन्हें नहीं है क्योंकि वे सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता और एक सांसद हैं. शासन प्रशासन संभालने की उनकी कोई संवैधानिक हैसियत नहीं है.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से गांवों तक दंगा फैला है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. इससे समझा जा सकता है कि सपा सरकार की राज्य मशीनरी ने किस तरह से मुजफ्फरनगर को सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला बना दिया है.
धरने को संबोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों ने मुलायम की 20 साल की छिपी हुई सांप्रदायिक राजनीति को अवाम के बीच नंगा कर दिया है. जब भी मुलायम की सरकार रही उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सूबे को दंगे की आग में झोंक कर भाजपा को मज़बूत किया और प्रदेश के मुसलमानों को भाजपा का भय दिखा कर वोट लेते रहे. यही उन्होंने अपनी पहली हुकूमत 1989 के दरम्यान भी किया था और अपने बेटे की डेढ़ साल की इस हुकूमत में भी यही कर रहे हैं.
उन्होंने सपा मुखिया से पूछा कि वरुण गांधी पर से मुक़दमा हटाकर, अस्थान कांड में तोगडि़या पर मुक़दमा न दर्ज करके, फर्रुखाबाद में विश्व हिन्दू परिषद और संघ परिवार के सांप्रदायिक आतंकवादियों पर से मुक़दमें वापस लेकर, कानपुर में 1992 में हुए सांप्रदायिक दंगों के खलनायक तत्कालीन एसएसपी एसी शर्मा जिनकी आपराधिक भूमिका की जांच के लिए माथुर कमीशन का गठन किया गया था उस पर कार्रवायी करने के बजाय उसे सूबे के पुलिस का मुखिया बनाने और पिछले चुनाव में राजनाथ के खिलाफ उम्मीदवार न खड़ा करने के बावजूद वे किस मुंह से अपने को सेक्यूलर बताते हैं.
मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि अगर सपा सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ने के प्रति सचमुच प्रतिबद्ध है तो उसे 89 से लेकर अब तक की अपनी सरकारों में हुए सभी दंगों पर श्वेत पत्र लाना चाहिए.
धरने को संबोधित करते हुए आज़मगढ़ रिहाई मंच के नेता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई और कानून व्यवस्था के मसले पर घिरी सरकार ने मानसून सत्र के दौरान जनता को गुमराह करने के लिए भाजपा के साथ मिलकर मुजफ्फरनगर को दंगों की आग में झोंका है.
उन्होंने कहा कि इन दंगों में जिस तरह पिछड़ी और दलित जातियां मुसलमानों के खिलाफ हमलावर हुई हैं, उससे मुलायम की तथाकथित सामाजिक न्याय की राजनीति का असली चेहरा बेनकाब हो गया है. उन्होंने कहा कि रिहाई मंच 16 सितंबर से शुरू होने वाले डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन में सपा की सांप्रदायिक राजनीति को बेनकाब कर देगा.
धरने को संबोधित करते हुए मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारूकी और भारतीय एकता पार्टी के सैय्यद मोईद अहमद ने कहा कि जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगे को फैलाने के लिए अफवाह नुमा फर्जी खबरें सांप्रदायिक शीर्षकों के साथ मीडिया द्वारा छापी जा रही हैं उस पर प्रेस परिषद को तत्काल कार्यवाई करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि दंगों की सपाई राजनीति के खिलाफ रिहाई मंच 11 सितंबर को शहर के बुद्धिजीवियों के बीच रणनीति बनायेगा और अवाम को जागरूक करेगा.
उन्होंने कहा कि राज्यपाल आज केन्द्र सरकार को दंगों को नियंत्रित कर पाने में विफल होने के लिए प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए पत्र लिख रहे हैं जबकि रिहाई मंच ने राज्यपाल को ज्ञापन देकर कोसी कलां, फैजाबाद, बरेली, अस्थान में हुए दंगों के दौरान ही प्रदेश सरकार को तलब करने की मांग की थी. अगर राज्यपाल महोदय उस समय चेत गये होते तो सपा सरकार द्वारा प्रायोजित इस नरसंहार को रोका जा सकता था.
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने अपने खनन माफिया को बचाने के लिए दुर्गा शक्ति नागपाल को तो तुरंत साम्प्रदायिक बताते हुये निलम्बित कर दिया था लेकिन मुजफ्फरनगर के दोषियों पुलिस अधिकारियों पर पंद्रह दिन बाद भी सरकार कोई क़दम उठाने में आखिर क्यों हिचकिचा रही है. उसे बताना चाहिए कि क्या दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवायी नहीं करने का भी समझौता आरआरएस और भाजपा के साथ हुआ है.
इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता इसहाक नदवी ने कहा कि अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम के अधूरे साम्प्रदायिक सपनों को पूरा करने का प्रयास किया है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने और जेलों में आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने के बजाए बेगुनाहों को पकड़ने और उनको कत्ल करने का काम शुरू कर दिया है. जबसे यह सरकार बनी है कोई ऐसा हफ्ता नहीं गुजरा है जिसमें कहीं न कहीं साम्प्रदायिक हिंसा न हुयी हो, मुजफ्फनगर भी उसी की एक कड़ी है. साम्प्रदायिक तत्वों को खुली छूट देकर और पीडि़तों को मुआवजे और सुरक्षा का झूठा झांसा दे कर यह सरकार एक तीर से दो शिकार करना चाहती है. जो अब नहीं होगा क्योंकि जनता सपा के असली चेहरे को पहचान चुकी है.