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BeyondHeadlines > India > दंगों पर आज़म और सपा में हो रही है नूरा कुश्ती
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दंगों पर आज़म और सपा में हो रही है नूरा कुश्ती

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 12, 2013 2 Views
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच धरना 114वें दिन रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने सपा की कार्यकारिणी बैठक में दंगों के चलते नाराज़ बताये जा रहे आज़म खान के न शामिल होने और समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा उन्हें निकालने की मांग करने को समाजवादी पार्टी और आज़म के बीच एक सुनियोजित नूराकुश्ती बताया है, जिसका एजेंडा एक साथ सांप्रदायिक हिन्दू वोटों और दंगे के चलते नाराज मुस्लिम वोटों को साधने की कोशिश है.

इस पूरे नाटक में आज़म को निकालने की मांग करके दंगों में अपनी प्रशासनिक और शासनिक अक्षमता पर उठ रहे सवालों पर अंकुश लगाने की कोशिश है तो वहीं आज़म खान की नाराज़गी को प्रचारित करके यह साबित करने की कोशिश है कि आज़म ही मुसलमानों के एकमात्र नेता हैं, जिनके बाद में सामान्य हो जाने से मुसलमान सपा द्वारा मुजफ्फरनगर दंगों में निभाई गयी सांप्रदायिक भूमिका को भूल जायेंगे और फिर सबकुछ सपा के पक्ष में मैनेज हो जायेगा.

Rihai Manch  Indefinite dharna completes 114 Daysरिहाई मंच का मानना है कि अगर आज़म खान सचमुच सपा के शासन काल में हो रहे दंगों से नाराज़ होते तो कोसी कलां से लेकर बरेली, अस्थान, फैजाबाद समेत 100 से अधिक हुए दंगों पर सपा सरकार को क्लीन चिट नहीं देते कि इन दंगों में विपक्षी पार्टियों की भूमिका है. वे यह नहीं कहते कि कोसी कलां दंगे, जिसमें कि 4 लोग मारे गये और जिनमें कलुवा और भूरा नाम के जुडवां भाइयों को गुजरात की तर्ज पर जिंदा जला दिया गया उस दंगे की सीबीआई जांच कराने की ज़रूरत नहीं है. और न वे पीलीभीत में खुलेआम मुसलमानों के हाथ काट देने की धमकी देने वाले वरुण गांधी पर से सपा सरकार और खास कर खादी मंत्री रियाज अहमद व पीलीभीत के आला पुलिस अधिकारियों के गठजोड़ से वरुण गांधी पर से मुक़दमा हटवाने और उनके खिलाफ खड़े हुए गवाहों से बयान बदलवाने पर, या अस्थान में प्रवीण तोगडिया की मौजूदगी में मुसलमानों के घर जलाये जाने के बावजूद भी सपा सरकार द्वारा तोगडि़या पर एफआईआर नहीं दर्ज करने पर भी आपराधिक चुप्पी नही साधते.

उन्होंने कहा कि सपा मुलायम और आज़म खान को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि जनता उनकी इस नूरा कुश्ती को नहीं समझ रही है.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने कहा कि यह बेहद शर्मनाक घटना है कि मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों की भीषण आग में जल रहा हो, भाजपा जिसने सपा के सहयोग से इस दंगे को अंजाम दिया उसके विधायक माहौल को और खराब करने के लिए मुजफ्फरनगर कूच करने का आह्वान करते हों, लेकिन सत्ता के नशे में चूर मुलायम और उनका सपाई कुनबा 2014 में मुलायम को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति बगल के ही जिले आगरा में बैठकर बना रहा हो. जिससे साबित होता है कि मुजफ्फर नगर को जलाने के पीछे सपा और भाजपा का सांप्रदायिक गठजोड़ काम कर रहा था जिसमें दोनों पार्टियों ने अपनी-अपनी भूमिका पहले से तय कर ली थी.

धरने को संबोधित करते हुए भारतीय एकता पार्टी के सैय्यद मोईद अहमद तथा मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारूकी ने कहा कि मुजफ्फर नगर दंगों को भड़काने के आरोपी सरधना के विधायक ठाकुर संगीत सिंह सोम का टीवी चैनलों पर सपा के अबू आसिम आज़मी और अन्य के साथ खुलेआम बहस में शामिल हो रहे हैं जबकि उन्हें फ़रार बताया जा रहा है. जबकि सन् 2009 में सपा के लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी और इस समय भाजपा के विधायक संगीत सिंह सोम टीवी चैनलों पर लगातार यह कह रहे हैं कि वे फ़रार नहीं हैं तथा अपने घर में ही हैं और जिले के डीएम और एसपी से लगातार बात कर रहे हैं यह साबित करता है कि सपा सरकार जिसके हाथ मुजफ्फर नगर और आस-पास हुए दंगों में बेगुनाहों के खून से रंगे हैं उसने 2014 के चुनावों के लिए भाजपा के साथ मिलकर इंसानों का कत्लेआम करवाया.

आमिर महफूज ने कहा कि सपा हर उस दंगाई और हत्यारों का साथ देकर पूरे प्रदेश में एक अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है. तकरीबन 4 माह हो रहे हैं मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या को, पर नामजद पुलिस के आईपीएस रैंक के बड़े अधिकारियों समेत आईबी अधिकारियों को अब तक नहीं गिरफ्तार किया गया और ऐसे आपराधिक सांप्रदायिक अधिकारियों के हौसले लगातार बढ़ा रही है, जिन्होंने इससे पहले प्रदेश में हुए सांप्रदायिक दंगों में अपनी आपराधिक भूमिका निभाई थी.

इसके प्रत्यक्ष उदाहरण एडीजी लॉ एण्ड आर्डर अरुण कुमार हैं, जिनकी देखरेख में मुजफ्फर नगर में दंगाइयों ने कत्लेआम मचाया. वे इसी तरह 2001 में भी सांप्रदायिक दंगों में कत्लेआम मचा चुके हैं. जिसमें कानपुर में 13 मुसलमानों को पुलिस ने गोलियों से छलनी कर दिया था.

धरने को संबोधित करते हुए पत्रकार हरे राम मिश्र ने कहा कि आज जिस तरह से यूपी दंगों की आग में जल रहा है ऐसे में ज़रूरी है कि एक सार्थक प्रतिरोध किया जाय. इन दंगों में सपा सरकार की संलिप्तता के खिलाफ रिहाई मंच 15 सितंबर को शाम 6 बजे एक मशाल जुलूस का आयोजन कर रहा है.

उन्होंने कहा कि सपा सरकार की सांप्रदायिक नीति के खिलाफ जन सैलाब सड़कों पर होगा तथा खालिद के न्याय के सवाल पर भी लफ्फाजी कर रही सरकार को चेताया जायेगा कि वह अगर सत्र में निमेष आयोग की रिपोर्ट पर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट सदन में नहीं रखती है तो उसे अपने वजूद के खत्म हो जाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.

इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता गुफरान सिद्दीकी ने कहा कि मुलायम सिंह का यह कहना कि मुजफ्फर नगर दंगे के दोषियों को सजा मिलेगी, लफ्फाजी के अलावा कुछ नहीं है. उन्हें यह कहने से पहले अपनी पिछली सरकार में पूर्वांचल में हुए दंगों के इतिहास को देखना चाहिए जहां इतने साल बीत जाने के बाद भी आज तक पीडि़त परिवार न्याय के लिए तरस रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मुलायम ने ही सिंघल के साथ गुप्त समझौता किया था. जब वे खुद इस शाजिश में शामिल थे, तो फिर न्याय का सवाल ही कहां पैदा होता है. उनकी यह लफ्फाजी पीडि़तों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसी है.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने बताया कि यूपी में हो रहे दंगों के खिलाफ, आरडी निमेष अयोग की रिपोर्ट को लागू करने, शहीद मौलाना खालिद मुजाहिद समेत आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को इंसाफ दिलाने के लिए 15 सितंबर से रिहाई मशाल मार्च से शुरु होने वाले घेरा डालो-डेरा डालो आंदोलन को प्रभावित करने के लिए लखनऊ में पुलिस लगातार रिहाई मंच के पोस्टरों को फाड़ रही है.

घेरा डालो-डेरा डालो आंदोलन के पोस्टरों को फाड़ने में खुफिया विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं. उन्होंने बताया कि कल माडल हाउस में खुफिया विभाग के व्यक्ति ने पोस्टर लगाने से मना किया और बाद में अमीनाबाद की पुलिस ने मौलवीगंज में पोस्टर लगाते हुए रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं को पोस्टर लगाने से मना किया. मना करने का कारण पूछा गया तो उसने कहा कि इसमें लिखा है कि सपा सरकार वादा निभाओ आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करो और यूपी में हो रहे सांप्रदायिक दंगों की सीबीआई जांच कराओ, यह आपत्तिजनक है.

रिहाई मंच के जिम्मेदारों द्वारा इस पर कहा गया कि यह कहीं से भी आपत्तिजनक नहीं है. पूछताछ करने वाले पुलिस आलोक ने अपने आप को अमीनाबाद थाने का बताया और उसने पूछा कि कहां-कहां पोस्टर लगाया गया है और उसने पोस्टर लगाने वालों का नाम पता धमकाने के अंदाज में लिखा. बाद में अमीनाबाद में रात की ड्यूटी पर तैनात पुलिस कांस्टेबल गौरव सिंह ने पोस्टर लगाने से मना किया. बाद में जब पहले से लगे पोस्टरों की जांच की गई मालूम चला कि माडल हाउस इलाके में जहां खुफिया के अधिकारी ने रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं से पूछताछ की थी वहां के पोस्टरों को पुलिस ने फाड़ दिया.

स्थानीय लोगों ने बताया कि आप के पोस्टर लगाने के बाद एक पुलिस की जीप आई जिसमें 7-8 पुलिस वाले आए और आप लोगों को पूछा और पोस्टर फाड़ दिया.

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