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खालिद की बीमारी से हुई मौत बताने वाली रिपोर्ट सफेद झूठ

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : अनिश्चित कालीम धरने के 120वें दिन और आमरण अन्शन का तीसरे दिन रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा सरकार ने खालिद मुजाहिद के हत्यारे पुलिस और आईबी अधिकारियों को बचाने की सोची समझी साजिश के तहत मानसून सत्र में निमेष कमीशन की रिर्पोट को पहले तो सदन में बिना कार्रवायी रिपोर्ट के रखा और उसके बाद अपनी सरकार द्वारा गठित दो सदस्यीय जांच आयोग की रिपोर्ट जिसने जैसी की सम्भावना थी खालिद की मौत का कारण बीमारी बताया है, को सरकार को सौंपवा कर खालिद के इंसाफ के सवाल पर जनता को गुमराह करने की कोशिश की है.

Rihai Manch Indefinite dharna completes 4 monthsउन्होंने कहा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आने से पहले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस तरह खालिद की हत्या को बीमारी से हुई मौत बता दिया था, उसके बाद ही यह स्पष्ट हो गया था कि इस जांच आयोग को सरकार को क्लीनचिट देने के लिए ही बनाया गया है. जिसके लिए उसने साजिशन एक मुस्लिम एडीजी जावेद अख्तर को आयोग में रखा ताकि मुसलमानों को गुमराह किया जा सके. इसीलिए जांच आयोग को खालिद के चेहरे पर लगे खून के निशान, उसके नाखूनों और होंट के नीले पड़ जाने, जांघ पर गहरे घाव के निशान और गर्दन के पीछे की टूटी हुयी हड्डी नज़र नहीं आयी, जिसे कोई अंधा भी देख सकता है.

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि खालिद की हत्या की जांच रिपोर्ट द्वारा यह कहना कि खालिद की तबीयत पहले से खराब थी, सफेद झूठ है क्योंकि खालिद से वे खुद 18 मई को शाम साढ़े तीन बजे फैजाबद अदालत में मिल चुके थे और वह बिल्कुल स्वस्थ थे. उन्होंने कहा कि यही बात लखनऊ जेल के जेलर ने भी मीडिया को बतायी थी कि खालिद को कोई बीमारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि खालिद के हत्यारों को बचाने की सपा सरकार की इन कोशिशों को जनता समझ चुकी है. इसलिए सरकार खालिद की हत्या में नामजद किये गए पुलिस और आईबी अधिकारियों को तत्काल गिरफ्तार कर जेल भेजे और निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल करे.

धरने और आमरण अनशन को सम्बोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट न लाकर सपा सरकार ने खालिद की हत्या के बाद मुसलमानों से किये गये वादे को तोड़ दिया है. जिसका खामियाजा उसे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा.

उन्होंने कहा कि रिहाई मंच आज़मगढ़ के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी और प्रवक्ता राजीव यादव पिछले तीन दिन से आमरण अन्शन पर बैठे हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से एक बार भी किसी डॉक्टर का न आना साबित करता है कि सरकार संवेदनहीन हो गयी है जिसे बने रहने का काई नैतिक अधिकार नहीं है.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि कल 19 सितम्बर को बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ की पांचवी बरसी के मौके पर रिहाई मंच धरना स्थल पर सम्मेलन करके सपा सरकार से पूछेगा कि चुनाव से पहले संजरपुर, आज़मगढ़ जाकर इसे फर्जी मुठभेड़ बताने वाली सपा ने सत्ता में आने के बाद खालिद मुजाहिद जैसे निर्दोषों की हत्या क्यों करवाई, और आज भी आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह जिन्हें छोड़ने का वादा सपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में किया था जेलों में क्यों सड़ रहे हैं.

धरने को संबोधित करते हुए कम्यूनिस्ट पार्टी (माले) नेता ओम प्रकाश सिंह और ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में दंगा कराने के लिए सपा और भाजपा में किस तरह गुप्त समझौता हो गया है कि इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि मुजफ्फर नगर में दंगे फैलाने के आरोपी भाजपा नेता ठाकुर संगीत सिंह सोम और हुकुम सिंह जिन्हें जेल में होना चाहिए वो विधानसभा सत्र में सदन के अंदर मौजूद हैं. माले नेताओं ने खुफिया एजेंसियों की इस रिपोर्ट पर कि अगर मुजफ्फर नगर के दंगाई विधायक पकड़े जाएंगे तो सांप्रदायिक दंगे और भड़क जायेंगे खुफिया एजेंसियों के हिन्दुत्ववादी मानसिकता का एक और उदाहरण बताया.

उन्होंने कहा कि खुफिया एजेंसियां ऐसी सांप्रदायिक रिपोर्ट के जरिये हिन्दुत्ववादी फासीवादी राजनीति के हितों को मदद पहुंचाती हैं और कानून के राज को कमजोर करने की कोशिश करती हैं. उन्होने कहा कि आईबी का यह सांप्रदायिक रवैया उस समय और उजागर हो जाता है जब मुजफ्फर नगर में  दंगा फैलाने वाले नेताओं के छिपे होने के ठिकानों का पता नहीं लगा पाती, लेकिन आतंकवाद के नाम पर किसी निर्दोष मुसलमान को फंसाने की कहानी गढ़ने के लिए वह उसके अफगानिस्तान और फिलिस्तीन में प्रशिक्षण की बात तुरंत बता देती है.

उन्होंने कहा कि दंगाइयों को खुली छूट देने वाली सपा सरकार इंसाफ दिलाने के बजाय दंगा पीडि़तों को पेंशन देने की बात कहकर भविष्य में और भी दंगे कराने की योजना बना रही है. सरकार की रणनीति है कि मुस्लिम विरोधी हिंसा में मुसलमान मारे जाते रहें, विस्थापित होकर कैंपों में जिंदगी गुजारें और सरकार पेंशन के नाम पर चंद नोट बांटकर मुसलमानों के वोट पाती रहेगी. उन्होंने कहा कि सपा सरकार की यह पेंशन नीति यूपी को गुजरात बनाने की कोशिश है जिसे जनता स्वीकार नहीं करेगी. उन्होंने कहा कि सपा और भाजपा के इस सांप्रदायिक गठजोड़ को बेनकाब करके ही प्रदेश को बचाया जा सकता है.

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश कल्यान ज्योतिसेन गुप्ता और न्यायमूर्ति केसी भानु की पीठ द्वारा दिए गए फैसले को फासिस्ट रूझान वाला और लोकतंत्र विरोधी बताया जिसमें उसने राज्य सरकार द्वारा आतंकवाद के मामलों में बंद बेकसूर मुस्लिम नौजवानों को रिहाई के बाद सरकार द्वारा दिए गए मुआवजे पर आपत्ति की है. रिहाई मंच के प्रवक्ता ने कहा कि अदालतें बेगुनाह मुस्लिम युवकों को आतंकी बताकर पकड़ने वाल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ तो कोई सख्त क़दम नहीं उठातीं, यहां तक कि बिना ठोस सबूतों के बहुसंख्यक समाज के साम्प्रदायिक हिस्से की संतुष्टि के लिए किसी को भी फांसी पर लटका देती हैं, लेकिन जब कोई मुस्लिम युवक निर्दोष होने के बावजूद सालों बाद जेल से छूटता है और लम्बे संघर्ष के बाद अपने साथ हुए नाइंसाफी के बदले सरकार से मुआवजा लेने में कामयाब होता है, तो उससे भी अदालतों को परेशानी होती है.

उन्होंने कहा कि अदालतों का यह साम्प्रदायिक रवैया लोकतंत्र और इंसाफ के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है, जिसपर तत्काल रोक लगनी चाहिए.

मुस्लिम मजलिस के नेता शाहआलम शेरवानी, जैद अहमद फारूकी, भारतीय एकता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद मो. अहमद और सामाजिक कार्यकर्ता रफीक सुल्तान खान ने जनता से अपील की कि बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ की पांचवी बरसी पर आयोजित सम्मेलन में ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंच कर आतंकवाद की राजनीति के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें.

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