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बुर्के के पीछे का सच…

Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

सियासत में कब क्या हो जाए, यह किसी को पता नहीं होता. अब आप ही देखिए न…  बुर्का इन दिनों चर्चे में है. हालांकि इससे पहले भी कई बार चर्चे में रही है. कई बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में इसका इस्तेमाल किया गया है. इस बुर्के ने न जाने कितने हुक्मरानों की कुर्सियां तक हिला दी हैं. अब देर से ही सही, हमारे देश भारत में भी मुस्लिम औरतों द्वारा इस्तेमाल किए जाना वाले इस बुर्का पर जमकर सियायत होने लगी है. आलम यह है कि बुर्के की तुलना मीडिया ने बम से करना शुरू कर दिया है. और इस पर बजाब्ता ‘बुर्का बम’ नामक स्पेशल प्रोग्राम भी चलाए जा रहे हैं.

truth behind the burqaखैर, सियासत में मैं बहुत कच्ची हूं. सियासत की अधिकतर बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ती. लेकिन इस बुर्के ने मुझे हमेशा से परेशान किया है. मैं आपको बताती चलूं कि जामिया नगर के बटला  हाउस से मेरा जुड़ाव सालों पुराना रहा है. छोटी-छोटी चीजों के लिए बटला हाउस आना-जाना तो लगा ही रहता है. सड़क के दोनों किनारे बुर्के में औरतों को बच्चों के साथ अल्लाह के नाम पर मांगते हजारों बार देखा है. बातें इतनी बड़ी-बड़ी कि जैसे ही हम उन्हें पैसे दे देंगे, वैसे ही अल्लाह हम पर मेहरबान हो जाएगा. हमारे सारे गुनाह माफ कर देगा. लेकिन दूसरे ही पल ख्याल आता है कि अगर इन्होंने अच्छे से इस्लाम को समझा होता तो शायद यह दूसरों के सामने हाथ ही नहीं फैलाते. इसी उधेड़बुन में कितनी बार दिल में आया कि जाकर पूछूँ किकितना जानती हैं आप अल्लाह को? लेकिन हमेशा दिल में आये इन ख्यालों को झटक दिया करती थी… लेकिन एक दिन जो अपनी आंखों से जो देखा, उसने मेरे दिमाग़ की सारी नशें हिला कर रख दी. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि ऐसा भी हो सकता है.

रमज़ान के महीने में ज़ोहर (दोपहर) के नमाज़ के बाद बस यूं ही बालकनी में खड़ी थी. नीचे देखा तो थोड़ी दूर पर एक मारुती खड़ी थी, जहाँ एक लड़की और दो मर्द खड़े होकर बातें कर रहे थें. कुछ ही पल गुज़रे होंगे कि उस लड़की ने बुर्का यानी नकाब पहना और एक बैसाखी लेकर गली में आ गई. फिर अल्लाह के नाम पर ज़कात-खैरात मांगना शुरू कर दिया. मेरी आंखें फटी की फटी रह गई. मैं  बालकनी में हैरान खड़ी उस लड़की को उस वक़्त तक देखती रही, जब तक वो मेरे आँखों से ओझल नहीं हो गई. मैंने यह बात अपने रूम-मेट को भी बताया, लेकिन उसने यह कहते हुए मेरी बातों को टाल दिया कि दिल्ली में यह सब होता रहता है.

कुछ ही दिनों बाद एक दिन अपने दोस्तों के साथ जाकिर नगर से गुज़र रही थी. तभी एक बुर्का हुई पहनी औरत हम लोगों से अल्लाह के नाम पर मांगने लगी. कहने लगी कि दो दिनों से भूखी हूं. और फिर अल्लाह का नाम लेकर कई सारी बातें कही. मुझे उसकी बातें बड़ी अजीब लग रही थी. अचानक इसी बीच बालकनी से देखा वो मंजर याद आ गया. मैंने तुरंत उसका नाम पूछा. उसने अपना नाम ‘नग़मा’ बताया और आगे यह भी बताया कि वो अमरोहा की रहने वाली है. लेकिन जैसे ही मैंने उसके बारे में कुछ और जानना चाहा तो वो कतराने लगी. जवाब देने से इंकार किया. तभी मैंने उसके हाथों को ज़ोर से पकड़ लिया और झूठी धमकी दी कि सच-सच बताओ, नहीं तो पुलिस के हवाले कर दुंगी. (मेरे दोस्तों को मेरी यह हरकत समझ नहीं आ रही थी. मैं इतना टेंशन क्यूं ले रही हूं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मेरा साथ दिया. उन्होंने भी उसे चारों तरफ से घेर लिया. और मेरी रूम-मेट पूरी तरह से मेरे सपोर्ट में आ गई.) हमारी इन बातों व हरकतों से वो डर गई. और फिर जो कुछ उसके मुंह से निकला, वो हैरान कर देने वाली बातें थी. वो खुद कहने लगी कि वो दुबारा इस इलाके में अब नहीं आएगी. बात-बात में उसने बताया कि वो एक गैर-मुस्लिम व बहुत ही गरीब परिवार से है. यहां वो अपने पति के साथ ओखला रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहती है. इस इलाके में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, इसलिए यहां मांगने आती है. वैसे भी दूसरे इलाके में कोई भीख देता नहीं है. फिर मैंने पूछा कि तुम बुर्का लगाकर भीख क्यूँ मांगती हो? वो बड़े ही दुखी लहजे में बताया कि ऐसा करने से लोग उसे मुसलमान समझतें हैं, और पैसे ज़्यादा मिलते हैं.

कुछ ही दिनों बाद एक और बुर्का पहने महिला भिखारी से मिली.  वो एक छोटे से बच्ची को गोद में लिए जामिया के पास भीख मांग रही थी. उसे देखकर गुस्सा तो बहुत आया लेकिन अपने गुस्से को दबाते  हुए उसका नाम पूछा. उसने अपना नाम रुख़्साना बताया.  फिर हमने उससे पूछा कि क्या तुम्हें पहला क़लमा याद है? तो वो खामोश रही. मैंने पैसे का लालच देते हुए कहा कि सच-सच बताओं कि तुम्हारा नाम क्या है? अगर सच-सच बता दोगी तो मैं तुम्हें पैसे दुंगी, नहीं तो अभी सामने वाले गार्ड को बुलाकर उसके हवाले कर दुंगी. वैसे भी इस कैम्पस में भीख मांगना सख्ती से मना है.  तब कुछ देर बाद वो रोते हुए बताई कि वो झारखण्ड की रहने वाली आदिवासी महिला है. वहां की ज़िन्दगी से परेशान होकर रोजी-रोटी के लिए दिल्ली आई है, लेकिन कोई काम न मिलने पर वो और उसका पति भीख मांगने का काम करते हैं. उसका असली नाम मालती देवी है.

जिन सवालों का जवाब मैं तलाश कर रही थी, वो मुझे इन कुछ घटनाओं से मिल गये थे. हमेशा से सोचती आई थी कि हमारी मुस्लिम कौम में मांगने वाले ज्यादा क्यूँ हैं? लेकिन अब सोचती हूँ लोग कितना गलत कहते है. समझ नहीं आता. इसे क्या कहूँ? एक सोची समझी साजिश या कुछ और? पर एक बात तो तय हो गया कि अल्लाह के नाम पर मांगने वाला हर भिखारी मुसलमान नहीं होता…

अब आप ही सोचिए ना… अभिनेत्री नीतू चंद्रा की जब गाड़ी खराब हो गई और ऑटो रिक्शा में सफर करना पड़ा तब उन्होंने बुर्के का सहारा लिया. और सिर्फ नीतू चंद्रा ही क्यों? बॉलीवुड की कई हस्तियों को कई बार अपने प्रशंसकों से बचने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहने भी देखा गया है. इसके अलावा मुम्बई के तमाम हुक्का पार्लरों में बड़े घर की बेटियों को हमने खुद बुर्के में आते देखा है. हुक्का पार्लरों में दाखिल होते ही सब कुछ गायब हो जाता है. बचता है तो सिर्फ आस-पास के छोटे चाय व पान की दुकानों पर एक बहस… कि आजकल मुस्लिम लड़कियां कितनी बिगड़ गई हैं…

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