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दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाई को प्रभावित कर रही है सरकार

BeyondHeadlines News Desk

शामली/मुजफ्फरनगर : सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित शामली तथा मुज़फ्फरनगर में कैंप कर रहे आवामी काउंसिल फॉर डेमोक्रेसी एण्ड पीस के महासचिव असद हयात एवं रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक हिंसा के सरगनाओं को बचाने का आरोप सपा सरकार पर लगाया है. उन्होंने कहा कि सरकार पूरे मामले की सीबीआई जांच न कराकर दंगाइयों और प्रशासन को साक्ष्यों को मिटाने का समय दे रही है.

आवामी काउंसिल फॉर डेमोक्रेसी एण्ड पीस के महासचिव असद हयात ने कहा कि भाजपा नेता हुकुम सिंह, गठवाला खाप के मुखिया हरिकिशन मलिक, भारतीय किसान यूनियन के नेता द्वय नरेश टिकैत और राकेश टिकैत समेत कई जाट और हिंदुत्ववादी नेता जिन पर अलग-अलग विभिन्न सभाओं में भड़काऊ भाषण देने का मुक़दमा दर्ज है, खुलेआम मीडिया में बयान दे रहे हैं कि सात सितम्बर की महापंचायत समेत पांच सितम्बर और 29 व 31 अगस्त को हुई पंचायतों में उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया. जबकि मीडिया माध्यमों में उनकी तस्वीरों और भाषणों का जिक्र देखा जा सकता है.

muzaffarnagar communal riotsउन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि इतनी बड़ी पंचायत जिसमें डेढ़ लाख से ज्यादा लोग खुलेआम हथियारों के साथ शामिल हुए हो और जो धारा-144 लगी होने के बावजूद हुई हो, उसकी वीडियो फिल्म सरकार के पास न हो. उन्होंने कहा कि इसी तरह 5 सितंबर को धारा-144 लगी होने के बावजूद लिसाढ़ में हुई जाट महापंचायत में भी गठवाला खाप के मुखिया समेत तमाम सांप्रदायिक नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिये जिसका वीडियो सरकार के पास ज़रूर होगा, बावजूद इसके मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलने वालों के खिलाफ कोई विधिक कार्यवाई सरकार नहीं कर रही है. इसके उलट उन्हीं नेताओं के यहां जाकर शासन प्रशासन के लोग उन्हें गिरफ्तार न करने का वादा कर आ रहे हैं.

उन्होंने पूरे मामले में मुज़फ्फरनगर के डीएम रहे सुरेन्द्र सिंह की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने अपने तबादले के बाद थोक में अपने सजातीय जाटों के हथियारों के लाइसेंस बैक डेट में जारी किये, जिससे साबित होता हे कि वो मुसलमानों के खिलाफ हुए इस जनसंहार में सहभागी की भूमिका में थे, जिसकी जांच होनी चाहिए.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने कहा कि सरकार पूरे मामले की सीबीआई जांच न कराकर सांप्रदायिक हिंसा के इस चक्र को और लंबा खींचना चाहती है, जिसका प्रमाण आधिकारिक रूप से स्थिति के सामान्य होने के बावजूद पिछले बीस दिनों से लगातार छिटपुट रूप से हो रही हत्याओं की घटनाएं हैं. जिन्हें प्रशासन सांप्रदायिक हिंसा के दौरान हुई घटना भी नहीं मान रहा है. राजीव यादव ने कहा कि सात सितंबर की महा पंचायत जिसका नाम तो आयोजकों द्वारा ’बहू बेटी बचाओ’ बताया गया था लेकिन जिसमें नारे ’बहन बचाओ-बहू बनाओ’, ’मुसलमानों का एक स्थान पाकिस्तान या कब्रिस्तान’, ‘तुमने दो को मारा है हम 100 कटुओं को मारेंगे’ लगाए गए, से एक दिन पहले 6 सितंबर को प्रदेश के डीजीपी और हुकुम सिंह के करीबी रिश्तेदार देवराज नागर का मुजफ्फरनगर जाना और अनुमति के बिना प्रस्तावित महापंचायत को रोकने की कोशिश करने के बजाय उनके द्वारा यह कहना कि महापंचायत में शामिल होने वालों को न रोका जाय, इस पूरे जनसंहार में उनकी आपराधिक भूमिका की पुष्टि करता है. लेकिन बावजूद इसके सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की. जिससे साबित होता है कि प्रदेश सरकार की मंशा किसी भी कीमत पर इस जनसंहार के दोषियों को बचाने की है.

उन्होंने कहा कि जांच दल द्वारा पिछले दिनों जारी कुटबा-कुटबी गांव, जहां से आतंकवाद के झूठे आरोपों में बेगुनाह मुस्लिम युवकों को फंसाने के लिए बदनाम मुम्बई एटीएस के चीफ केपी रघुवंशी आते हैं, के दंगाईयों की मोबाईल बातचीत में किसी ‘अंकल’ को फोन कर पीएसी को गांव में देर से आने के लिए तैयार करने की बात की गयी है, उससे साबित होता है कि उच्च प्रशासनिक स्तर के अधिकारियों की भूमिका इसमें आपराधिक रही है.

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि सपा सरकार ने तय कर रखा है कि पुलिस प्रशासन के आला ओहदों पर सांप्रदायिक रिकार्ड रखने वाले अधिकारियों को ही बैठाएगी. इसीलिए कभी वह 1992 में कानपुर के मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक हिंसा के जिम्मेदार एसी शर्मा जिनकी दंगों में भूमिका की जांच के लिए हाई कोर्ट के तत्कालीन जज वाईएस माथुर के नेतृत्व में जांच आयोग का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट को सरकार ने आज तक जारी नहीं किया, को डीजीपी बनाया तो कभी मार्च 2002 में कानपुर में 13 मुसलमानों की पुलिस फायरिंग में हत्या के दौरान एसएसपी रहे अरुण कुमार झा को एडीजी लॉ एण्ड आर्डर बना दिया.

राजीव यादव ने कहा कि सपा मुखिया मुलायम सिंह और उनके कुनबे के कई नेता मुजफ्फरनगर आकर जाटों और मुसलमानों के बीच फैसला पंचायतें कराने का आह्वान कर चुके हैं. जिसका उद्देश्य मुस्लिम विरोधी हमलावरों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया को रोकना है. सरकार के तरफ से यह कृत्य निष्पक्ष विवेचना को प्रभावित कर रही है. और पीडित मुसलमानों से जबरन दंगाइयों को क्लीन चिट देने वाले एफिडेविट लिए जा रहे हैं.

वहीं लखनऊ से जारी बयान में रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब और आजमगढ़ रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने बनारस रेलवे स्टेशन पर देवबंद के छात्र और झारखंड निवासी वसीम शाहिद के पुलिसिया उत्पीड़न और बिना किसी सुबूत के आतंकवादी की तरह बर्ताव को प्रदेश पुलिस की मुस्लिम विरोधी मानसिकता का एक और उदाहरण करार देते हुए सिगरा थाना इंचार्ज श्याम बहादुर यादव समेत देवबंद के छात्र को गिरफ्तार करने और पूछताछ करने वाले पुलिस और इंटेलिजेंस अधिकारकियों के निलंबन की मांग की है.

रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि भाजपा से अपने गुप्त समझौते के तहत 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले पूरे सूबे में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ध्रुवीकरण कराने के लिए एक तरफ तो सरकार मुजफ्फरनगर के अमन को जलाने वाले भाजपा नेताओं को मुकदमा दर्ज होने के बावजूद गिरफ्तार तक नहीं कर रही है और ना ही आतंकवाद के नाम पर बंद नौजवानों को बेगुनाह बताने वाली निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्यवायी कर रही, वहीं सिर्फ दाढ़ी-टोपी की वजह से बेगुनाह मुस्लिम युवकों का दुबारा उत्पीड़न शुरू करवा दिया है.

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