महिला आरक्षण बिल के लिए जंतर मंतर पर प्रदर्शन

Beyond Headlines
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Salman Khan for BeyondHeadlines

नई दिल्ली : चुनाव का मौसम करीब आते ही महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण के मांग की मुहिम फिर से तेज़ हो गई है. इसी मुहिम के तहत आज जंतर मंतर पर महिलाओं ने प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी महिलाओं की मुख्य मांग जल्द से जल्द महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पारित कराना था.

प्रदर्शन के लिए आई महिलाओं में सबके अपने अलग-अलग अनुभव थे… अलग-अलग समस्याएं थी… और इन तमाम समस्याओं का एकमात्र हल महिला आरक्षण बिल के पारित होने में है. मेवात कारवा से आई अकबरी ने कहा कि जब भी मैं दिल्ली आती हूं तो मुझे 16 दिसम्बर की याद आ जाती है, जिससे मेरे पूरे जिस्म में एक सिहरन सी छा जाती है और मैं अन्दर ही अन्दर सहम जाती हूं.

PROTEST FOR WOMEN RESRVATION BILLआगे अकबरी ने पूरे जोश के साथ बताया कि अब महिलाओं को आगे आने की ज़रूरत है. मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में दखल देने की ज़रूरत है. तभी जाकर हम आगे सुरक्षित रह सकेंगे, नहीं तो यह पुरूषवादी मानसिकता वाली सरकार हमें जीने नहीं देगी. इसलिए समय की मांग है कि देश में महिलाओं के राजनीतिक अधिकार की यह लड़ाई को अब तेज़ किया जाए.

ए.आई.एस.एफ.की मेम्बर राहिला ने बातचीत में बताया कि पंचायतों व स्थानीय निकायों के साथ-साथ देश की राजनीति में महिलाओं के लिये अनिवार्य आरक्षण होना चाहिए. तभी जाकर सच में भारत निर्माण हो सकेगा. अगर महिलाएं सुरक्षित रहेंगी तो देश भी सुरक्षित रहेगा.

शक्ती महिला संगठन से शक्ती शर्मा ने बताया कि आज संसद में महिलाओं का प्रनितिधित्व सामाजिक न्याय और राजनीतिक व्यवस्था की वैधता के लिये महत्वपूर्ण है. मौजूदा प्रमाण बताते हैं कि एक वर्ग के रूप में महिलाओं को कम दर्जा दिया गया है और संभव तरीकों से उन्हें राजनीति से दूर रखा गया है.

पी.सी.आई. की मेम्बर सोभा का कहना कि मैं एक महिला होने के नाते इस देश में बढ़ते साम्प्रदायिक माहौल से परेशान हूं. साथ ही वो दिसम्बर में हुए उस दर्दनाक हादसे को भी नहीं भूल पाई हैं. वो बताती हैं कि सरकार के लाख वादे व दावे के बाद आज भी बलात्कार हो रहे हैं, उन पर कोई भी रुकावट नहीं है. अब हमें अपनी हिफाजत खुद करने की ज़रूरत है. ऐसे में ज़रूरी हो गया है कि भारत मे महिला सुरक्षा विधेयक तुरंत लोकसभा से पास करवाया जाये.

इस सिलसिले में हमने जामिया के तरन्नुम सिद्दीकी से जब बात की तो उन्होंने बताया कि महिलाओं के हक़ की लड़ाई का इतिहास काफी पुराना है. गांधीजी के प्रयासों से पहली बार देश की महिलाएं घर की देहरी को लांघकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए सड़क पर उतरी थीं. अब यह काफी पुरानी बात हो चुकी है. लोकसभा व राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के आंकड़ें यह साफ दर्शाते हैं कि राजनीति में उन्हें बराबरी का हक़ नहीं मिला हुआ है. जो चंद महिलाएं देश के राजनीतिक शीर्ष पर हैं भी तो इसके पीछे कहीं न कहीं उनके परिवार के रसूख का हाथ है. पिछले 16 वर्षों से महिला आरक्षण बिल के संसद में ही अटके होने से साफ जाहिर होता है कि देश का एक प्रभावशाली वर्ग महिलाओं को राजनीति में बराबरी का हक देने में तमाम बाधाएं पैदा कर रहा है.

स्पष्ट रहे कि पिछले 16 वर्षों से केंद्र की सत्ता में काबिज कई सरकारों ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 आरक्षण देने संबंधी महिला आरक्षण बिल पास कराने का प्रयत्न किया, लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी थी. इस दिशा में केंद्र सरकार को मार्च 2010 में उस समय एक बड़ी सफलता मिली जब इस प्रावधान के लिए लाए गये 108वें संविधान संशोधन विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी मिल चुकी है.

हालांकि लोकसभा व राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाले इस बिल को पहले भी तीन बार संसद के पटल पर रखा जा चुका है, किंतु तीनों बार यह विधेयक भारी शोर-शराबे के चलते पूरी तरह से निष्प्रभावी हो गया. अब देखना यह है कि महिलाओं के इस संघर्ष का अगले लोकसभा सत्र में क्या हश्र होता है…

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