BeyondHeadlines News Desk
मुज़फ्फर नगर/शामली: रिहाई मंच ने मुज़फ्फरनगर-शामली के सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त क्षेत्रों के आला पुलिस अधिकारियों के सरकारी और निजी मोबाइल फोनों के कॉल डिटेल्स को जांच के दायरे में लाने की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि हिंसा पीडि़त मुसलमानों से दंगाई और पुलिस अधिकारी मिलकर जबरन उनसे एफिडेविट ले रहे हैं कि गांव में उनके साथ कोई हिंसा नहीं हुई है.
दंगाइयों और शासन-प्रशासन का यह गठजोड़ बलात्कार और हत्या की घटनाओं को भी दबाने की कोशिश कर रहा है और विवेचना की प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है. इसी उद्देश्य से जांच में सांप्रदायिक रुझान रखने वाले और निमेष कमीशन द्वारा निर्दोष बताए गए खालिद मुजाहिद की पुलिस कस्टडी में हुयी हत्या के बाद विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हिंदुत्वादियों द्वारा हुये हमले के दौरान हमलावरों का साथ देने वाले आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार झा को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन सेल में रखा गया है.
रिहाई मंच ने आरोप लगाया कि प्रदेश और केन्द्र सरकार के जिम्मेदार दंगाइयों के पक्ष में खुलेआम बयान देकर जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. लिहाजा पूरे मामले की जांच तत्काल सीबीआई को सौंपी जाय.
सांप्रदायिक दंगा पीडि़त इलाकों में पिछले 25 दिनों से कैंप कर रहे आवामी काउंसिल फॉर डेमोक्रेसी एण्ड पीस के महासचिव असद हयात और रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने जारी बयान में आरोप लगाया कि गांव डूंगर थाना फुगाना के मेहरदीन पुत्र रफीक की हत्या आठ सितंबर को दंगाइयों द्वारा कर दी गयी और उसे बिना पोस्टमार्टम के ज़मीन में गाड़ दिया गया. इस मामले में रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव द्वारा 29 सितंबर 2013 को फुगाना थाना में अपराध संख्या 439 दर्ज करवाया गया जिसमें शव को निकालकर पोस्टमार्टम करने की मांग की गयी थी. लेकिन बावजूद इसके और आला अधिकारियों को इस संबंध में पत्र लिखने के, शव को अब तक नहीं निकाला गया.
इसी तरह रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम की तहरीर पर बागपत के थाना बिनौली के गांव अंछाड़ में आमिर खान की हत्या और उसे बिना पोस्टमार्टम के पुलिस और दंगाइयों द्वारा दफनाने के मामले में दर्ज एफआईआर में भी अब तक शव का पोस्टमार्टम नहीं किया गया है. जिससे साबित होता है कि प्रशासन दंगाइयों के साथ मिलकर पूरे मामले पर पर्दा डालना चाहता है. सबसे शर्मनाक यह है कि यह सब तब हो रहा है जब राष्ट्रीय मानवाधिकार और अल्पसंख्यक आयोग की टीम कई बार यहां दौरे कर चुकी है.
राजीव यादव और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल (170) के पेटीशनर असद हयात ने कहा कि जिस तरह इन दंगाइयों के मास्टर माइंड और कई अपराधों के आरोपी गठवाला खाप के मुखिया हरिकिशन मलिक से मिलकर शिवपाल यादव और केन्द्रीय नागरिक एवं उड्डयन मंत्री व रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह ने उन्हें आश्वासन देते हुए फोटो खिंचवाया और बयान दिया कि किसी ‘निर्दोष’ को नहीं पकड़ा जायेगा, उससे साबित होता है कि प्रदेश और केन्द्र सरकार दोनों के ही नुमाइंदे दाषियों को बचाने और कानूनी प्रक्रिया को बाधित करने में लगे हैं जिससे इस जघन्यतम जनसंहार के आरोपियों के हौसले बुलंद हैं. और वे प्रशासन की मदद से पीडि़तों से जबरन थाने में बुलाकर एफिडेविट ले रहे हैं कि उनके साथ कोई ज्यादती नहीं की गयी है. उन्होंने जांच को तत्काल सीबीआई को सौंपने की मांग की.
असद हयात और राजीव यादव ने जारी बयान में कहा कि इसी तरह बलात्कार की घटनाओं को भी सरकार और प्रशासन दबाने में जुटा है जिसका प्रमाण फुगाना थाने में दर्ज बलात्कार की छह घटनाओं में से अब तक सिर्फ तीन पीडि़तों का मेडिकल कराना है. नेताओं ने आरोप लगाया कि आरोपी सामूहिक बलात्कार पीडि़ता के परिजनों को पुलिस के मार्फत लगातार दबाव डाल रहे हैं कि वे अपना मुक़दमा वापस ले लें और इसी के तहत पीडि़ताओं का मेडि़कल नहीं करवाया जा रहा है. और बलात्कारी खुलेआम घूम रहे हैं. मसलन फुगाना गांव जो थाने से मुश्किल से दो किलो मीटर दूर है के सामूहिक बलात्कार के आरोपी ग्राम प्रधान थाम सिंह, जोगिन्दर, सुनील, रमेश कुमार, राम कुमार और विजेन्दर खुलेआम घूम रहे हैं और मीडिया से भी मिल रहे हैं. लेकिन पुलिस उन्हें अब तक नहीं पकड़ पायी है, जो पुलिस के पक्षपाती रवैये को दिखाता हैं.
इसके अलावा ऐसे परिवारों के पुरुष परिजनों के खिलाफ बलात्कार के आरोपी पुलिस और प्रशासन की मदद से झूठे मुक़दमें भी दर्ज करा रहे हैं. जिसके चलते बलात्कार पीडि़त परिवारों में दहशत है और उनकी इस स्थिति को देखकर सामूहिक बलात्कार की अन्य पीडि़त महिलाएं भी रिपोर्ट दर्ज करवाने का साहस नहीं कर पा रही हैं.
असद हयात और राजीव यादव ने मांग की है कि बड़े पैमाने पर सामने आ रही सामूहिक बलात्कार की इन घटनाओं में मुक़दमा दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम कैंपों में शिविर लगाकर एफआईआर दर्ज करे. उन्होंने कहा कि रिहाई मंच के रिकार्ड में ऐसे कई बलात्कार पीडि़ताओं के बयान दर्ज हैं, जो निष्पक्ष और बेखौफ माहौल मिलने पर अपने इंसाफ की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.
उन्होंने कहा कि सामूहिक बलात्कार पीडि़त महिलाओं को ऐसा माहौल न उपलब्ध कराकर भारतीय लोकतंत्र अपने गरीब और अल्पसंख्यक विरोधी चरित्र को उजागर करने के साथ ही बलात्कार के मसले पर अपने दोहरे रवैये को उजागर कर रहा है. जो यहां से सौ किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो सामूहिम बलात्कार की घटना पर उद्वेलित होता है लेकिन साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान सामूहिक बलात्कार की शिकार मुस्लिम महिलाओं को बेसहारा राहत शिविरों में छोड़ कर बलात्कारियों को बचाने में अपनी सारी उर्जा लगा देता है.
वहीं, लखनऊ से जारी बयान में रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने आरोप लगाया कि सपा सरकार सांप्रदायिक हिंसा के शिकार मुसलमानों को न्याय दिलाने के बजाय जांचों को प्रभावित करने के लिए ही निमेष कमीशन की रिपोर्ट में तारिक़ कासमी और पुलिस कस्टडी में कत्ल कर दिये गये खालिद मुजाहिद को फंसाने के आरोपी बताये गये मनोज कुमार झा को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम में रखा है.
उन्होंने कहा कि जिन अधिकारियों को जेल के पीछे होना चाहिए उन्हें दंगों की जांच करने के लिए भेजकर और मुसलमानों के इस जनसंहार में नेतृत्वकारी भूमिका में रहे भाजपा के ठाकुर नेताओं के नज़दीकी रघुराज प्रताप सिंह को दुबारा मंत्री बनाकर सपा किस तरह की सांप्रदायिक राजनीति करना चाहती है, इसे समझा जा सकता है.
