BeyondHeadlines News Desk
झाँसी: सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम(अफस्पा) के विरोध में इरोम शर्मिला का संघर्ष के 13 वर्ष पूरे होने के अवसर पर इरोम शर्मिला को मुक्त करने और अफस्पा को हटाने की मांग को लेकर सेव शर्मिला सॉलिडेरिटी कैंपेन, स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया (एस.आई.ओ), वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया व अन्य छात्र नेताओं ने ज़िला अधिकारी तनवीर ज़फर अली को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन प्रस्तुत कर इरोम शर्मिला के संघर्ष में अपनी एकजुटता का प्रतीक दिया.
मणिपुर की इरोम शर्मिला पूर्वोत्तर राज्य और जम्मू-कश्मीर में लगे अफस्पा के विरोध में 13 साल से भूख हड़ताल पर हैं और उनके इस अहिंसात्मक विरोध के लिए उन पर आत्महत्या के प्रयास के मामले दिल्ली और मणिपुर में दर्ज हैं और वो इस समय इम्फाल के जे.एल.एन. अस्पताल में नज़रबंद हैं, उन्हें अपने परिवार और और अन्य लोगों से मिलने कि अुनमति नहीं है.
‘सेव शर्मिला सॉलिडेरिटी कैंपेन’ के संयोजक काशिफ़ अहमद फ़राज़ ने कहा “अफस्पा एक जनविरोधी कानून साबित हो चुका है, इस कानून की आड़ में कई निर्दोषों को फ़र्जी मुड़भेड़ में मारकर आतंकी साबित किया गया और संघटित तरीके से महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया गया. इस अधिनियम के तहत सेना और सुरक्षा बलों को विशेष शक्तियां प्राप्त हैं और केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के अनुमोदन कि बिना उनपर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है. अफ़सोस की बात है कि सशत्र बलों के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज होने के बाद भी अब तक एक भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं हुई और न ही केंद्र सरकार ने कार्यवाही की अनुमति दी.”
एस.आई.ओ के झाँसी अध्यक्ष मो. अनीस ने कहा “सशत्र बलों द्वारा कुनान पोशपोरा का सामूहिक बलात्कार से लेकर हाल ही में हुए रामबान का जनसंहार, अफस्पा की बर्बरता ज़ाहिर कर चुका है. लोकतांत्रिक देश में अफस्पा जैसे कानून की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.”
वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के युवा नेता मोहम्मद अतीक़ ने कहा, “बड़े शर्म की बात है कि पूर्वोत्तर राज्यों और कश्मीर में निर्दोषों की जान लेने वालों और बलात्कार करने वाले कोई दुश्मन देश के नागरिक नहीं बल्कि हमारे देश के सशत्र बल हैं जिन पर हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी थी और वही हमारे भक्षक बन गये. दोषियों पर कार्यवाही करने के बजाये इस अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली महिला इरोम शर्मिला को 13 वर्षों से नज़रबंद करके रखा गया है. एक लोकतान्त्रिक देश के लिए इससे बढ़कर कोई अफ़सोस की बात नहीं हो सकती.”