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BeyondHeadlines > India > सुप्रीम कोर्ट से अखिलेश सरकार की झूठ…
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सुप्रीम कोर्ट से अखिलेश सरकार की झूठ…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published December 10, 2013
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12 Min Read
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मुजफ्फर नगर-शामली में 27 हजार से ज्यादा पीडि़त राहत कैंपों में, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को अखिलेश सरकार ने बताया सिर्फ एक हजार

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच ने आज लक्ष्मण झूला पार्क में इंसाफ दो धरना देकर सूबे की सरकार को आगाह किया कि अगर शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में मौलाना खालिद मुजाहिद के इंसाफ से जुड़ी निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों को जेल, आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई और मुज़फ्फरनगर समेत पूरे प्रदेश में हुए सांप्रदायिक हिंसा की वारदातों की सीबीआई जांच नहीं करवाई गई तो जनता के व्यापक मुद्दों के साथ पूरे प्रदेश में वादा खिलाफ अखिलेश सरकार के खिलाफ मुहीम चलाई जाएगी.

धरने के माध्यम से भेजे गए ज्ञापन में मुज़फ्फरनगर के पीडि़तों को जिस तरह से मुआवजे के नाम पर उनके घर गांव से बेदखल करने का विरोध करते हुए इस विभाजनकारी नीति को तत्तकाल वापस लेने की मांग की गई.

धरने का संबोधित करते हुए रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद ने कहा कि पिछले हफ्ते भर से ज्यादा समय से हमने पूरे लखनऊ में मरहूम मौलाना खालिद के इंसाफ के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाए और सूबे की सरकार को जान लेना चाहिए कि आज खालिद इस दुनिया में नहीं है पर वो आज सिर्फ मुस्लिम ही नहीं इस प्रदेश व देश के तमाम बेगुनाहों की आवाज बन गया है.

उन्होंने कहा कि आने वाला कल 12 दिसंबर है, 6 साल पहले इसी दिन तारिक़ कासमी को आज़मगढ़ और 16 दिसंबर को खालिद मुजाहिद को जौनपुर से उठाकर मायावती सरकार में 22 दिसंबर को बाराबंकी से झूठी गिरफ्तारी का दावा उस वक्त के तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी बृजलाल, मनोज कुमार झा ने करके यूपी के मुस्लिमों पर आतंकी का ठप्पा लगाने की कोशिश की थी. मौजूदा सपा सरकार ने न सिर्फ वादा खिलाफी की बल्कि उसने मरहूम मौलाना खालिद की हत्या के नामजद अभियुक्त मनोज कुमार झा जैसे लोगों को मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा की जांच का जिम्मा सौंपकर मुसलमानों पर आतंकी का ठप्पा लगाने वाली आईबी और एटीएस को संदेश दिया है कि वो अवाम के खिलाफ और उनके साथ है. ऐसे में हम आज इस इंसाफ दो मुहीम की शुरुआत कर साफ कर देना चाहते हैं कि जिस तरीके से हमने 121 दिन विधानसभा पर धरना देकर सरकार को मजबूर किया और उसने निमेष कमीशन को स्वीकार किया और सार्वजनिक किया उसी तरह जब तक इन सभी सवालों पर इंसाफ नहीं मिलता तब तक हम प्रदेश व्यापी मुहीम चलाएंगे.

धरने को सम्बोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान, अली अहमद कासमी, सामाजिक कार्यकर्ता रिशा सैय्यद, अम्बेडकर कांग्रेस के फरीद खान और भारतीय एकता पार्टी के सैय्यद मोईद अहमद ने कहा कि मौलाना खालिद की हत्या में नामजद पुलिस, एटीएस और आईबी के अफसर जिस तरह से खुलेआम घूम रहे हैं वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, क्योंकि ये अधिकारी कभी भी किसी भीड़भाड़ वाले इलाके में विस्फोट कराकर बेगुनाह जनता की जान ले सकते हैं और खालिद-तारिक जैसे बेगुनाह मुस्लिम युवकों को इसमें फंसा कर पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि रामपुर सीआरपीएफ कैंप में हुए कथित आतंकी हमले की सीबीआई जांच सरकार को तुरंत करवानी चाहिए ताकि आवाम इस कांड की असलियत जान सके और इस कांड में पकड़े गये बेगुनाह जेलों से रिहा हो सकें.

मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद कानूनी मदद के लिए मुज़फ्फरनगर, शामली व बागपत इलाके में कैंप किए सामाजिक संगठन आवामी काउंसिल के महासचिव असद हयात ने दिल्ली से जारी बयान में कहा कि यूपी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में अपनी दसवीं स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए एक बार फिर झूठ बोला है कि मुज़फ्फरनगर और शामली में सिर्फ एक हजार मुसलमान ही राहत शिविरों में रह गए हैं, जबकि आज ही हमारी जनहित याचिका के याचिकादाता सईद हसन ने ऐसे 27 हजार सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त लोगों के जो कैंपो में रह रहे हैं कि लिस्ट नाम व पता सहित सुप्रीम कोर्ट को सौंपा है. इससे साबित होता है कि सरकार झूठ दर झूठ बोलकर सिर्फ मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त मुसलमानों को ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की इंसाफ पसन्द अवाम को धोखा दे रही है.

वहीं वरिष्ठ रंगकर्मी व इप्टा के नेता राकेश ने कहा कि आज विकास के नागरिक एजेंडे को भी पूंजीवाद ने साम्प्रदायिक बना दिया है. इसलिए विकास के नाम पर राजनीति करने वालों को साम्प्रदायिकता और आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह फंसाए जा रहे मुस्लिम युवकों के सवाल पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी. उन्होंने कहा कि आज जनता को उसके वास्तविक मुद्दों से भटकाने के लिए पूंजीवाद ने कई तरह के फर्जी एजेंडे थोप दिए हैं जिससे लड़कर ही देश की एकता और सम्प्रभुता को बचाया जा सकता है.

धरने को संबोधित करते हुए मुस्लिम मजलिस के नेता शाह आलम शेरवानी और जैद फारूकी और वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी आदियोग ने कहा कि मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पीडि़तों से मुआवजे के नाम पर जो हलफनामा सपा सरकार द्वारा लिया जा रहा है, वह पीडि़तों के साथ सीधा अन्याय है और किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है.

उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जारी किये गये आदेश में मुआवजे के बदले अपने गांव की ज़मीन में न बसने की शर्त लगाकर सरकार ने यह साफ कर दिया है कि वह हिंसा पीडि़तों को न्याय देने के अपने दायित्व से भाग रही है.  उन्होंने मांग की सरकार सभी हिंसा पीडि़तों को तुरंत समुचित मुआवजा देते हुए अपने मूल संपत्ति से हट जाने की शर्त सपा सरकार वापस ले.

निमेष कमीशन रिपोर्ट में बेगुनाह बताए गए आज़मगढ़ के तारिक़ कासमी के चचा हाफिज फैयाज़ आज़मी ने कहा कि कल हमारे बेटे की गिरफ्तारी को 6 साल हो जाएंगे और खालिद अगर जीवित रहते तो 16 दिसंबर को उनके भी 6 साल हो जाते. हमारे जज्बातों से खेलने वाली सपा सरकार से हम पूछना चाहते हैं कि सिर्फ पांच सालों की सरकारी चासनी चाटने के लिए हमारे बेगुनाह बच्चों की जिन्दगी क्यों तबाह कर रही है. बेगुनाहों की इंसाफ की जंग को अल्लाह ज़रुर कामयाब करेगा, क्योंकि वो मज़लूमों का हमदर्द है और गुनहगारों को दुश्मन. अखिलेश यादव से हम पूछना चाहते हैं कि जिन बेगुनाह नौजवानों को छोड़ने के वादे के साथ वो सरकार में आए क्या कभी उनसे मिलने का उन्होंने कभी सोचा भी है कि वो कैसे रह रहे हैं.

इस अवसर पर आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बशीर हसन की पत्नी जो सीतापुर से आयीं थी ने कहा कि उनके पति बशीर हसन को दो साल पहले आतंकवाद के नाम पर फंसा दिया गया, आज वो पिछले दो साल से दिल्ली की जेल में बंद हैं. एक साल तक तो उनके खिलाफ कोई चार्जशीट ही नहीं आया और अब चार्जशीट भी आया है तो पन्द्रह-पन्द्रह तारीखों से जज साहब ही नहीं आते हैं. जिससे साबित होता है कि पुलिस के पास मेरे पति के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं है और उन्हें सिर्फ परेशान करने के लिए रखा गया है.

उन्होंने कहा कि इस मसले पर उनके परिवार के लोग अखिलेश यादव के दफ्तर पर भी गए जहां हमें उस वक्त अबू आसिम आज़मी और राजेन्द्र चौधरी ने वादा किया था कि वो हमारे मसले को देखेंगे पर आज तक उन लोगों ने क्या देखा यह हमें मालूम नहीं. बस दिख यही रहा है कि बिना सबूत के मेरे पति को जेल में बंद रखा गया है.

आईएनएल के पीसी कुरील, पिछड़ा महासभा के एहसानुल हक़ मलिक, शिवनारायण कुशवाहा ने कहा कि आज जब निमेष कमीशन ने साफ कर दिया है कि बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों के पास से मनोज कुमार झा जैसे एसटीएफ के लोग फर्जी तरके से विस्फोटक पदार्थ व असलहा आदि दिखाकर फंसाते हैं तो वहीं अमिताभ यश जैसे पुलिस अधिकारी मुस्लिम बच्चों के मुंह में पेशाब, शराब आदि जबरन पिलाकर आईबी द्वारा की गई आतंकी घटनाओं का फर्जी कबूलनामा बनवाते हैं तो ऐसे में प्रदेश में जितने भी युवक चाहे वो रामपुर मामले में शरीफ, जंगबहादुर, कौशर, गुलाब, सबाउद्दीन, फहीम अंसारी हों या फिर लखनऊ के फरहान शुएब, जियाउद्दीन हों या फिर जिस बिजनौर के याकूब, नासिर, नौशाद, फरहान, शाद, पश्चिम बंगाल के जलालुद्दीन, अजीजुर्ररहमा, नैनी सेन्ट्रल जेल मे बंद डा. इरफान समेत अनके युवा हैं जिनको फर्जी तरीके से गिरफ्तार किया गया और बहुतों के पास से फर्जी बरामदगी दिखाई गई है. ऐसे में अगर प्रदेश की अखिलेश सरकार आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों के सवाल पर चिंतित है तो उसे तत्तकाल इन सभी बरामदगी वाले मुक़दमों की जांच करवानी चाहिए.

इस अवसर पर इलाहाबाद से आए सामाजिक न्याय मंच के अध्यक्ष अधिवक्ता राघवेन्द्र प्रताप सिंह, हरे राम मिश्र, मलिक मोहम्मद अफजल, ए एच लारी, वसीम हैदर, मुस्लिम यूथ ब्रदर के सैयद मोहम्मद वसी ने कहा कि सपा सरकार आतंकवाद के नाम पर उत्पीडि़त बेगुनाह मुस्लिम समाज को इंसाफ देने के अपने वादे से न केवल पीछे हट गयी है बल्कि इसी सरकार के शासनकाल में उत्तर प्रदेश से ही आईबी और एटीएस ने आतंकवाद के नाम पर सीतापुर निवासी बशीर हसन और शकील को लखनऊ से तथा कश्मीर के सज्जाद बट, वसीम बट को अलीगढ़ रेलवे स्टेशन से आतंकवादी बता कर फर्जी तरीके से पकड़कर जेलों में सड़ाया जा रहा है.

उन्होंने सरकार के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार अपने वादे से मुकर चुकी है और आज तक एक भी बेगुनाह नौजवान जेल से रिहा नहीं हुआ. अखिलेश ही नहीं मुलायम सिंह यादव की पिछली सरकार में आतंकवाद के नाम पर लखनऊ से पकड़े गए शुएब, याकूब, इलाहाबाद से वलीउल्ला और नैनी सेन्ट्रल जेल में डा. इरफान जैसे अनेक युवा हैं जिन्हें आज तक इंसाफ नहीं मिल पाया. ‘इंसाफ दो’ मुहिम के तहत इन सबके इंसाफ के सवाल पर व्यापक तौर पर लड़ा जाएगा.

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