नियमगिरी : वेदांत के ज़ुल्म की दास्तान… (पार्ट-2)

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Saurabh Verma for BeyondHeadlines

नियमगिरी : वेदांत के ज़ुल्म की दास्तान… (पार्ट-1)

बारिश के मौसम में ग्राम सभा के बहाने मुझे नियमगिरि जाने का मौका मिला, जहाँ बॉक्साइट के लाल पहाड़ों, नीले रंग के आसमान के बीच चारों ओर फैले जंगलों का मनोरम नज़ारा हमेशा के लिए मेरी नज़रों में कैद हो गया.

लगातार होती बारिश की बूंदे जब चारों ओर फैली वनस्पतियों और पेड़ों के ज़रिये होती हुई वहाँ की लाल मिट्टी में समाती थी, तो उस वातावरण में सांस लेने पर महसूस होता कि इंसान जीने के लिए साँस भी लेता है. शहर के प्रदूषण और हज़ारों बीमारियों से कोसो दूर नियमगिरि के पहाड़ों को बीच से काटता हुआ झरने का पानी पत्थरों की मार खाकर और भी शुद्ध होता हुआ अपनी तेज़ रफ़्तार में बहा जा रहा था.

एक साथी से मालूम हुआ कि नियमगिरि से वंसधारा (210 कि.मी.) और नागावाली (200 कि.मी.) नाम की दो बड़ी नदियां आंध्र-प्रदेश होते हुए दो राज्यों की ज़रूरतों को पूरा कर बंगाल की खाड़ी में जा समाती है. यहां से  35  झरने भी निकलते हैं, जो डोंगरिया कोंध की ज़रूरतों को पूरा कर नीचे बसे गांवो तक जाते हैं.

हज़ारों वनस्पतियों और विशालकाय पेड़ों से भरे ये जंगली पहाड़ जितने खुबसूरत हैं. उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है कि यहां कई बीमारियों की प्रतिरोधक जड़ी-बूटिया और बहुमूल्य वनस्पतियां भारी मात्रा में उपस्थित हैं. उसके आलावा यहां फल सब्जी और कंद-मूल का असंख्य भंडार है. जैसे अनानास, नींबू, केला, संतरा, कटहल, हल्दी, अदरक, कोसला, कांगू, कटी, कांदू, अलसी, महुआ के फूल, कुसुम, नीम और भी न जाने क्या-क्या? पेड़ और फल-फूल के अलावा यहां बाघ, तेंदुआ, सांभर, हिरण, हाथी, सांप, जंगली सुअर और कई तरह के पशु-पक्षी मौजूद हैं. इसके साथ-साथ नियमगिरि के हर गांव में मुर्गी, बिल्ली, बकरी, कुत्ते, गाय, भैंस जैसे जानवरों का पशुपालन इनके जीवन का एक हिस्सा है.

डोंगरिया कोंध की इस आबादी में पुरुष और महिलाओं का पहनावा बहुत सुन्दर है. महिलाएं अपने लम्बे बालों को असंख्य चिमटियों से संभाले उन्हें रंग-बिरंगे फूलों से सजाये और उनमें चाकू फंसाकर चहरे पर एक मध्यम मुस्कान लिए हमेशा दिखाई देती हैं, तो दूसरी तरफ पुरुष भी कई तरह के श्रंगार के साथ हाथ में हमेशा एक कुल्हाड़ी लिए नियमगिरि की सुरक्षा करते पूरी पर्वतमाला में कहीं भी दिखाई दे सकते हैं.

डोंगरिया लोग जंगल के नियम और कानूनों के हिसाब से चलते हैं एवं प्रकति के नियमों को ध्यान में रख कर हर काम करते हैं. जैसे हर डोंगरिया व्यक्ति खेती करने के लिए 3 पहाड़ों की नियमित ज़मीन को चुनता है. पहले 3 वर्ष वह एक पहाड़ पर खेती करता है, उसके बाद दुसरे और अंत में तीसरे पर, इस तरह वह 6 वर्ष तक हर एक पहाड़ को अपनी उर्वक शक्ति बढ़ाने के लिए खाली छोड़ देता है.

इस 30 कि.मी. लम्बी पर्वत श्रंखला में हर कोई नियम से चलता है. इसी कारण इस जगह को नियमगिरि और यहां का देवता नियमराजा को माना जाता है. जो असल में और कोई नहीं बल्कि प्रकृति ही है. डोंगरिया कोंध उन सभी पहाड़ों पर अपने नियमराजा का आवास मानते हैं, जो नियमगिरि पर्वत श्रंखला में आते हैं. ये लोग अपनी नई पीढ़ी को भी प्राकृतिक नियमों से चलना, सही जड़ी-बूटियों की पहचान करना सिखाते हैं. साथ ही महिलाओं को जीवनसाथी चुनने और कंधे से कंधा मिलाकर चलने की पूर्ण आज़ादी देते हैं.

डोंगरिया, डोम, कुटिया कोंध के साथ नियमगिरि के चारो तरफ़ फैले मुनिगुडा, लांजीगढ़, भीष्म कटक जैसे छोटे-छोटे शहरों की कुल आबादी को अगर जोड़ा जाये तो दो लाख के आस-पास बैठती है. ये पूरी आबादी नियमगिरि से मिलने वाले फल, कंद-मूल और वनस्पतियों पर पूर्ण रूप से निर्भर है.

लेकिन इन पहाड़ों और प्रकृति की सुन्दरता को निहारते हुए जीना जितना खुशनुमा है, उतना ही मुश्किल भरा भी. पिछले 1.5 दशक से देश और विदेश की कई बड़ी-बड़ी खनन कम्पनियां बॉक्साइट के इन पहाड़ों का खनन करने की हर संभव कोशिश कर रही हैं. बिड़ला और नाल्को तो यहां पिछले एक दशक के पहले से मौजूद हैं. लंदन मूल के अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांत ने 2002 में यहां का रुख किया. ओडिशा सरकार ने यहां उसका हर क़दम पर साथ दिया. ए. राजा के पर्यावरण और वन मंत्रालय में कार्यकाल के दौरान वेदांत ने ओड़िशा सरकार के साथ मिलकर नियमगिरि में खनन करने और लान्जिगढ़ में प्लांट लगाने को लेकर एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर किये.

(नियमगिरी के लोगों की संघर्ष और वेदांत के ज़ुल्म की कहानी आगे भी जारी रहेगी…) 

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