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बेगुनाहों की रिहाई के वादे से पलट रही है सपा सरकार

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि विधानसभा के चल रहे शीतकालीन सत्र में समाजवादी पार्टी की सरकार निमेष आयोग की रिपोर्ट पर एक्शन टेकन रिपोर्ट लाकर मौलाना खालिद की हत्या में शामिल एसटीएफ और आईबी के हत्यारे पुलिस अधिकारियों को तत्काल गिरफ्तार करते हुए मरहूम मौलाना खालिद को न्याय दे. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि सपा सरकार प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं से आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करने के अपने वादे से पीछे हट गयी है और यही वजह है कि सरकार अब इस मुद्दे का नाम लेना भी पसंद नहीं करती.

उन्होंने दोहराया कि आगामी लोकसभा चुनाव में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों के सवाल को रिहाई मंच आम जनता के बीच लेकर जायेगा और मुस्लिम हितों तथा सेक्यूलर होने का दावा करने वाली सपा समेत देश की सभी सियासी पार्टियों से यह सवाल किया जायेगा कि आखिर उन बेगुनाहों के सवाल पर जिनकी जवानी जेलों में ही खत्म हो गयी, उन्होंने क्या किया.

वे शनिवार को शहर के चौक इलाके में निमेष आयोग की रिपोर्ट पर अमल करवाने तथा आतंकवाद के आरोप में प्रदेश की जेलों में बंद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की रिहाई के लिए आम जनता के बीच समर्थन जुटाने के लिए चल रहे रिहाई मंच के हस्ताक्षर अभियान में बोल रहे थे.

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार आतंकवाद जैसे बेहद संवेदनशील मामले पर प्रदेश की आवाम को लगातार धोखा देने में जुटी है. अगर ऐसा नहीं होता तो फिर यह सवाल ज़रूर किया जाता कि निमेष आयोग की रिपोर्ट आने के बाद खालिद और तारिक़ को आरडीएक्स के साथ गिरफ्तार करने का दावा करने वाली एटीएस और एसटीएफ की टीम जो कि अब इस फर्जी बरामदगी को लेकर बेनकाब हो चुकी है, ने प्रदेश में कितनी फर्जी बरामदगियां की हैं और उन मामलों में चल रहे मुक़दमों की क्या स्थिति है.

उन्होंने मांग की कि इस टीम ने जितनी भी विस्फोटक बरामदगियां की हैं और जिन पर इसी आधार पर मुक़दमें चल रहे हैं, उन सभी मुक़दमों को तुरंत रोक कर एक न्यायिक आयोग का गठन करके इन बरामदगियों की सच्चाई सरकार को जनता के सामने रखना चाहिए. लेकिन सरकार के रवैये से ऐसा लग रहा है कि वह ईमानदारी के साथ इस मुद्दे पर संजीदा नहीं है.

उन्होंने कहा कि चाहे वह खालिद की हत्या के गुनाहगारों को पकड़ने का सवाल हो या फिर कचहरी बम कांड में फर्जी तरीके से पुलिस द्वारा फंसाये गये आज़मगढ़ के तारिक़ कासमी का सवाल हो, विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान भी इस मामले पर सरकार की चुप्पी से उसकी असलियत उजागर हो जाती है.

उन्होंने कहा कि शीतकालीन सत्र के दौरान ही आगामी दस दिसंबर को रिहाई मंच की ओर से शहर के झूले लाल पार्क में निमेष आयोग की रिपोर्ट पर तत्काल एक्शन टेकन रिपोर्ट लाने की मांग को लेकर विशाल धरने का आयोजन किया जायेगा, जिसमें शहर की सेक्यूलर आवाम बड़ी संख्या में हिस्सा लेगी.

मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद कानूनी मदद के लिए मुज़फ्फरनगर, शामली व बागपत इलाके में कैंप किए सामाजिक संगठन आवामी काउंसिल फॉर पीस एण्ड डेमोक्रेसी के महासचिव असद हयात ने कहा कि मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त परिवारों को राहत कैंपों में सरकार की ओर से किसी तरह की सुविधा नहीं मिल पा रही है. कड़कड़ाती ठंड में हो रही नौनिहालों तथा बुजुर्गों की मौंते इस बात की गवाह हैं कि सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त परिवारों के पास न तो जाड़े से बचने के लिए पर्याप्त कपड़े हैं और न ही बुजुर्गों, बच्चों को ठंड के बाद प्रभावी उपचार ही मिल पा रहा है.

उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार जबरन राहत कैंप खत्म कर रही है तो वहीं दूसरी ओर लोगों को खाने के भी लाले पड़ गये हैं. सरकार की ओर से दी जा रही सहायता का हाल यह है कि जिस कैंप में 800 परिवार रह रहे है वहां केवल 100 पाउच दूध आता है. उसी दूध में चाय भी बन जाय और नन्हे बच्चों के लिए पीने को भी हो जाय, यह कैसे संभव हो सकता है. इस प्रकार सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा पीडि़तों को जबरिया कैंपों से निकालकर सांप्रदायिक ताक़तों और कड़कड़ाती ठंड के हवाले कऱ दिया है.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि शनिवार को सरकार की गलत नीतियों से आजिज परिवारों ने जिस तरह से कांधला राहत कैंप में भारी संख्या में प्रदर्शन किया है उससे यह साबित हो जाता है कि सरकार हिंसा पीडि़तों के पुर्नवास के लिए ईमानदार नहीं है. मुआवजा वितरण में जिस तरह का भेदभाव किया जा रहा वह यह साबित करता है कि सरकार किसी तरह से इस मामले से अपना पीछा छुड़ाना चाह रही है.

उन्होंने कहा कि खाप नेता हरिकिशन मलिक, नरेश टिकैत, राकेश टिकैत और नंगला मंदौड़ में हुई पंचायत के मास्टरमाइंड जाट नेताओं के इशारे पर सरकारी पटवारियों द्वारा मुआवजा के बदले सुलह करवाने और ऐसा न करने पर मुआवजे की लिस्ट से नाम काट देने की धमकी दी जा रही है, से यह साबित हो गया है कि सरकार खुद भी सामंती तथा सांप्रदायिक जाट नेताओं को बचाने में लगी हुई है.

उन्होंने कहा कि जब कांधला राहत शिविर में रह रहे हिंसा पीडि़तों ने प्रभारी एसडीएम से उनके तहसील कार्यालय में जाकर शिकायत की तो तहसीलदार ने उन्हें पुलिस बुलाकर तहसील से ही निकलवा दिया, जिससे साबित होता है कि मुज़फ्फरनगर हिंसा पीडि़तों के साथ यह अन्याय एक उच्च स्तरीय राजनीति के तहत किया जा रहा है.

लखनऊ के तरकारी मंडी में शनिवार को आयोजित हस्ताक्षर अभियान में अतीक राइनी, हाफिज मोहम्मद, हैदर किदवई, सैय्यद बाबर नक़वी, आफताब अहमद खान, अयाज़ अहमद सिद्दीकी, आफताब खान चैहान, फैजान मुसन्ना, सैय्यद जियाउल हसन, फिरदौस राइनी समेत अनेक स्थानीय लोग मौजूद थे.

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