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BeyondHeadlines > India > उर्वरक की कालाबाजारी से त्रस्त हैं उत्तर बिहार के किसान
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उर्वरक की कालाबाजारी से त्रस्त हैं उत्तर बिहार के किसान

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 25, 2014
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9 Min Read
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Rajeev Kumar Jha for BeyondHeadlines

मोतिहारी (बिहार) : मानसून की बेरुखी से धान की खेती में नुक़सान झेलने के बाद उत्तर बिहार के किसान अब उर्वरक की कालाबाजारी से परेशान हैं. गेहूं की खेती में पैदावार की बढ़ोतरी कर किसान पिछले नुक़सान की भारपाई करना चाहते हैं. लेकिन उत्तर बिहार के जिलों के सुदूर इलाकों शिवहर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चम्पारण, मुज़फ्फरपुर आदि जिलों के पिछड़े इलाकों के किसान उर्वरक के अभाव एवं उसकी सामान्य से अधिक कीमत पर उपलब्धता से परेशान है. किसानों की सर्वाधिक चिंता डीएपी और यूरिया की कालाबाजारी को लेकर है, जिसका उपयोग वे सबसे अधिक करते हैं.

एएफआई से प्राप्त आंकड़ें बताते हैं कि देश में यूरिया की ज़रूरतों का 80 फीसद हिस्सा घरेलू उत्पादक यूनिटें पूरी करती हैं. सिर्फ 20 फीसद आयात से पूरा होता है. आयातित के मुकाबले घरेलू यूरिया काफी सस्ती पड़ती है. मगर मौजूदा नीति के चलते यूरिया का उत्पादन घट सकता है. इससे आयात बढे़गा. रुपये की कीमत गिरने की वजह से आयातित यूरिया के और महंगा होने की आशंका है.

फर्टिलाइजर एसोसिएशन आफ इंडिया (एफएआइ) के मुताबिक एक अप्रैल, 2013 तक यूरिया उत्पादक इकाइयों का 31 हजार करोड़ रुपये से अधिक बकाया हो गया था. इसका भुगतान अभी तक नहीं हो पाया है. खास बात यह है कि आयातित यूरिया की सब्सिडी का पूरा भुगतान हो चुका है. खाद्य सुरक्षा के लिए पर्याप्त खाद्यान्न की जरूरतों के मद्देनजर यूरिया की कमी भारी पड़ सकती है. केंद्र से सब्सिडी की राशि का भुगतान नहीं होने से घरेलू यूरिया उत्पादक इकाइयां लगातार घाटे की ओर बढ़ रही हैं. यूरिया उत्पादक इकाइयों को दी जाने वाली सब्सिडी का भुगतान नहीं होने से उद्योग की वित्तीय स्थितियां खराब है.

अपने क्षेत्र में अचानक से यूरिया और डीएपी के बदले हुए भाव से मायूस शिवहर जिले के कुशहर गाँव के एक किसान गुड्डू (45) कहते हैं- खाद के थोक विक्रेता का दूकान अक्सरहां बंद हीं रहता है. सहकारी समितियों के अधिकारियों से संपर्क कर पाना भी मुश्किल होता है. यदि उनसे मुलाक़ात हो भी जाती है तो खाद की अधिक कीमत वसूली पर वे बात को टाल जाते हैं. ऐसे में जाहिर है हम खुदरा विक्रेता से ही खाद खरीदते हैं. यहाँ खाद का मूल्य किसान को जांच परख कर लिया जाता है. मतलब यह कि जो जितना में पट जाए. अमूमन डीएपी पर प्रति बोरा पचास से साठ रुपये और डीएपी पर 40 से 50 रूपये हमें अधिक देने पड़ते हैं. अब एक दिन की बात तो है नहीं. फिर सरकार जब किसानों के लिए इतनी सहूलियत देती है तब हम 50 रुपये ही ज्यादा क्यूँ दें?

पूर्वी चंपारण जिले के ढाका प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों छोटन (28), भोला (32), कालू(22), भिखर राम (60) आदि को इस बात का गुस्सा है कि प्रखंड कृषि पदाधिकारी नियमित रूप से खाद कालाबाजारियों को पकड़ने के लिए मुहिम क्यूँ नहीं चलाते?

थोड़ा गर्म तेवर में मोतिहारी प्रखंड के गाँव के किसान बूटाई सहनी कहते हैं- किसानों के हित के लिए विभागों की कमी नहीं है. न ही योजनाओं की कमी है. जिला मुख्यालय में किसानों के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के बारे में बड़े-बड़े बोर्ड लगाए गएं हैं. लेकिन सरकार या कृषि पदाधिकारियों को यह भी पता होना चाहिए कि कितने किसान जिला मुख्यालय जा कर इन बोर्ड्स को पढेंगे. हमारे गाँव के किसी भी किसान को यह पता नहीं हैं कि अगर खाद सामान्य से ज्यादा कीमत पर बिक रही है तो इसकी जानकारी हम कहां दें. किसी पदाधिकारी का संपर्क नंबर हम किसानों को पता नहीं है. स्थानीय सहकारी समिति को तो लोग जानते तक नहीं.

ग्रामीण इलाकों के किसानों की सबसे बड़ी समस्या उनके पास स्थानीय पदाधिकारियों के संपर्क नंबर का न होना है. खाद की कालाबाजारी की सूचना रहने पर भी वो इसकी शिकायत सम्बंधित पदाधिकारियों से नहीं कर पाते.

रक्सौल अनुमंडल के एक किसान विजय (48) कहते हैं- पिछले सप्ताह मोतिहारी कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार वाजपेयी द्वारा किये गए गहन जांच और छापेमारी में रक्सौल अनुमंडल के कई खाद के कालाबाजारी करने वाले दुकानदार पकडे गए. यह मुहीम लगातार चलानी चाहिए. यदि हरेक प्रखंड के कृषि पदाधिकारी कालाबाजारियों पर गहन नजर रखे तो किसानों के सामने न तो खाद की किल्लत की समस्या होगी और न हीं अधिक कीमत पर मिलने की.

क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ

कृषि वैज्ञानिक सुनील श्रीवास्तव कहते हैं- खेतों के लिए उर्वरकों की मांग कम होने वाली नहीं है. नाईट्रोजन युक्त, फास्फेट युक्त और पोटाश उर्वरक–  ये तीनों पौधों के लिए आवश्यक हैं. चूंकि कृषि फसलें मिट्टी के खनिज तत्वों तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, गंधक, पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, एवं लौह तत्वों को तीव्रता से ग्रहण करती है. अतएव मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है. फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व की त्वरित पूर्ति हेतु इसका तत्काल कोई विकल्प नहीं हैं. लेकिन किसानों को इनका अधिक प्रयोग करने से बचना चाहिए. उर्वरक का प्रयोग करें लेकिन उसपर अत्यधिक निर्भर होना अहितकर है. भारत में और बिहार में भी उर्वरक का स्टॉक पर्याप्त है. अतः किसी तरह की परेशानी होने पर किसानों को निकटस्थ कृषि केंद्र जा कर सम्पर्क करना चाहिए.

कहते हैं अर्थशास्त्र विशेषज्ञ-

मुंशी सिंह महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के एच.ओ.डी. तथा आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ शोभाकांत चौधरी कहते है- भारत में 30 मिलियन टन उर्वरक की वार्षिक खपत है. साल में यूरिया का केवल 22 मिलियन टन का उत्पादन होता है, इसलिए 8 मिलियन टन का आयात करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. पिछले वित्त वर्ष में इफको ने 45.10 लाख टन का उत्पादन किया था.

गौरतलब पहलू यह है कि यूरिया को वर्तमान में आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत कवर किया जाता है और इसकी कीमतों को उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के तहत नियंत्रित किया जाता है. यूरिया एक ओपन गुड्स लायसेंस (ओजीएल) वस्तु होना चाहिए और उर्वरक कंपनियों को लंबे समय के जटिल अनावश्यक प्रक्रिया के माध्यम के बिना आयात करने की अनुमति दी जानी चाहिए. यह किसानों के लिए काफी हितकर होगा.

क्या बोलते हैं पदाधिकारी  

*खाद के कालाबाजारियों की खैर नहीं है. जिला स्तर पर गहन छापेमारी की जा रही है. रक्सौल अनुमंडल में कालाबाजारियों को पकड़ा भी गया है. उनके दूकान सीज कर दिए गए हैं. किसान उर्वरक की कमी या अधिक दाम लिए जाने की सूचना प्रखंड कृषि पदाधिकारी को दें. यदि त्वरित कार्रवाई नहीं होती है तो हमें 9431818741 नंबर कॉल करें. शीघ्र कार्रवाई होगी.  -सुधीर कुमार वाजपेयी, डीएओ, मोतिहारी

*किसानों को सही दाम पर और पर्याप्त मात्र में उर्वरक का आवंटन हो इसके लिए विभाग क्रियाशील है. खाद की कालाबाजारी करने वालों या आर्टिफिशियल कमी करने वालों की सख्त खबर ली जायेगी. किसान किसी तरह की समस्या होने पर हमें 9431818741 पर कॉल करें.  -रामविनोद शर्मा, डीएओ, शिवहर

*कुछेक किसानों की शिकायतें आयीं थी. तुरंत संज्ञान लिया गया है. प्रखंड के खाद विक्रेताओं को सख्त हिदायत दी गई है कि किसानों हर हाल में सरकारी रेट पर खाद मुहैय्या कराएं. किसी किसान को इसमें परेशानी होती है तो वह हमारे दूरभाष संख्या 9470813791 पर संपर्क कर सकता है.   -लक्ष्मी कान्त सिंह, बीएओ, ढाका प्रखंड,पूर्वी चम्पारण

*जिले में खाद के पर्याप्त स्टॉक हैं. खाद दुकानदारों पर विभाग की पैनी नज़र है. किसान समूह भी उनकी मदद के लिए बनाए गए हैं. उन समूहों से जिला कार्यालय हमेशा मोनिटरिंग करता है. फिर भी किसान किसी तरह की समस्या पर हमें 9431818731 पर फोन कर सकते हैं.   -सनत कुमार, डीएओ, बिहार शरीफ

(लेखक ग्रामीण पत्रकार हैं, जिनसे cinerajeev@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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