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BeyondHeadlines > Lead > Kejriwal – The Roadies
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Kejriwal – The Roadies

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 21, 2014 1 View
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6 Min Read
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Amit Sinha for BeyondHeadlines

बार-बार यह प्रश्न सामने आ रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ जो मोर्चा खोला है वह कितना जायज है? क्या यह शोभनीय है कि एक मुख्यमंत्री खुद ही अनशन पर बैठ जाये? सवाल हर दूसरा दल खड़ा कर रहा है पर यह सुझाव कहीं से नहीं आ रहे कि केंद्र के अधीन रहने वाली दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के हवाले कैसे किया जाये? संवैधानिक नियमावली का हवाला हर कोई दे रहा है. परंतु इस प्रशासनिक गुत्थी को सुलझाने के लिए आगे कोई नहीं बढना चाहता. दूसरी ओर केंद्र में रही कांग्रेस स्वाभवतः यह क़तई नहीं चाहती कि दिल्ली की प्रशासनिक लगाम उसके हाथ से निकल जाये.

परंतु अरविंद पर आरोपों की झड़ी लगाने वाले तमाम दल क्या यह चाहेंगे कि उन राज्यों में जहां उनकी सरकारें हैं, वहाँ की राज्य पुलिस खुद उनके अधीन न हो? क़तई नहीं…

यह चर्चा दरअसल केजरीवाल के अनशन और उसे अराजक कह दिये जाने भर का नहीं है. यह चर्चा उस ‘अराजक’ और ‘कानूनी मकड़जाल’ का है जिसके अंतर्गत दिल्ली को पूर्ण राज्य का अधिकार नहीं दिया जा रहा है. दिल्ली राज्य पर पहला शासन भाजपा ने ही किया था, फिर कांग्रेस ने और अब केजरीवाल की बारी है. निश्चित है, काल के साथ कुछ भी स्थाई नहीं है. केजरीवाल भी हमेशा के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे यह निश्चित है. परंतु दिल्ली की हर सरकार और मुख्यमंत्री की यह सरदर्दी है कि दिल्ली पुलिस उनके नियंत्रण में नहीं है. इस पीड़ा को दिल्ली की मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज ने भी दुहराया था और शीला दीक्षित ने भी… और अब केजरीवाल दुहरा रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि केजरीवाल ने इस पुरे मुद्दे को आंदोलन का रंग देकर राष्ट्रीय बहस बना दिया है.

दिल्ली की वह बेचैनी हम सब भी महसूस कर सकते हैं. बस ईमानदारी से अपने दिल से पूछना होगा कि हम सब अपने स्थानीय थानों में जाने भर से कितना घबराते हैं? मीडिया के क्राईम रिपोर्टर तक थानों में सब कुछ मिला जुला कर चलने की बात करते हैं. डॉक्टर, डॉक्टरेट, इंजीनीयर, वरिष्ठ नागरिकों और बड़े से बड़े गैर प्रशासनिक अफसरों से किसी भी थाने का एक अदना कांस्टेबल भी कितनी बुरी तरह व्यवहार करता है, इसका हम सब को बेहतर अहसास है. फिर कैसे हो ऐसी व्यवस्था का विरोध और फिर क्या तरीका हो विरोध का?

निश्चित ही यह एक वैचारिक मतभेद का मामला हो सकता है. लेकिन लोकतंत्र में आंदोलन ही अहिंसक विरोध का सबसे बेहतरीन माध्यम है. फिर सरकार या व्यवस्था के लिए जो ‘कम्फर्टेबल’, हो वह विरोध ही क्या? वह तो विरोध नहीं, दिखावा है. फिर क्यों वक्त और जगह का निर्धारण वह पक्ष करे जिसके खिलाफ आंदोलन है? बल्कि आंदोलन के लिए उसी वक्त और जगह का चुनाव होना चाहिए जो सरकार के लिए सर्वाधिक चुनौती पेश करे, जो रहनुमाओं के लिए सर्वाधिक अनकंफर्टेबल हो.

दिल्ली पुलिस के खिलाफ केजरीवाल के आंदोलन की भर्तस्ना से कम-से-कम भाजपा को कुछ लाभ नहीं होने जा रहा है. केजरीवाल हमेशा कुछ करते रहेंगे और मीडिया उनके पीछ भागती रहेगी. चंद महीने पहले तक मीडिया मोदी की हर छींक के पीछे कैमरे के साथ दौड़ रही थी परंतु केजरीवाल ने इस दृश्य को बदल दिया. इस बदलते परिदृश्य में मोदी मिशन +272 के लिए एक वेबसाईट बना लेना सबकुछ नहीं है. हाँ इधर भाजपा की युवा ब्रिगेड बीजेएमवाई (BJMY) ने दिल्ली में कुछ हलचल ज़रूर की है जिसकी सुगबुकाहट आनलाईन पोर्टल्स पर दिखी है. इसी तर्ज पर उन सभी प्रदेशों में ग्रास-रूट लेवल पर काम करना ज़रूरी है, जहाँ भाजपा के लिए प्रबल संभावनाएं है. चूँकि लोकसभा चुनावों के लिए वक्त कम है इसलिए मीडिया की करवट एकबार फिर भाजपा की ओर हो यह उसकी जीत के लिए आवश्यक है.

पंचतारा होटलों की आभिजात्य संस्कृति की जगह आम आदमी पार्टी ने सड़क की संस्कृति स्थापित कर दी है यह मानना ही होगा. वातानुकूलित कमरों में बैठ कर राजनीतिक आंकड़ों का जोड़-तोड़ करने वाले कांग्रेस पुत्र भी खुद को धरतीपुत्र साबित करने में पसीना बहा रहे है. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी भी सड़क से फुटपाथ की चाय दुकान से चलते हुए यहाँ तक पहुँचे हैं. इसलिए सड़क की महिमा इस गणतंत्र में सर्वोपरि है. जनता सड़क पर हुई आंदोलनों से खुद को जोड़ पाती है. इसीलिए जनता ने विचारधारा और घोषणाओं से इतर yes-no और do-die पर यकींन करने लगी है. राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत हुई है. लंबे अंतराल के बाद राजनीति रोड़ पर दिख रही है और उसमें मिशन की भावना का समावेश हो रहा है. नरेंद्र मोदी को 7, रेस कोर्स रोड तक पहुँचाने मे झिझक नहीं तो फिर इस मिशन को रोड (सड़क) से ही शुरू करने में झिझक कैसी?

[author image=”https://plus.google.com/109502582565737158178/photos/photo/5941098308279473858″ ]Amit Sinha is a bilingual investigative journalist who was working with The Indian Express till 2010. He is working independently now, writing for many prints and portals.He can be contacted at facebook.com/indianxpress or mail him to amitkumarsinha@sify.com[/author]

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