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नेता जी के बंगलों में चल रहे हैं अवैध समारोह स्थल

Alok Kumar for BeyondHeadlines

बिहार के बहुप्रचारित सुशासन में सरकारी-सरंचनाओं का दुरुपयोग शासन की सहभागिता से धड़ल्ले से जारी है. एक तरफ तो राजधानी पटना में हेरिटेज इमारतों को ढाह कर नई इमारतें खड़ी की जा रही हैं, जगह-ज़मीन की कमी का  रोना रोया जा रहा है तो दूसरी तरफ सरकारी-बंगलों में “अवैध समारोह -स्थलों” का “सत्ता- प्रायोजित” गोरखधंधा बदस्तूर जारी है. ऐसा नहीं है कि इस में केवल सत्ता-पक्ष के ही लोग शामिल हैं बल्कि इसमें विपक्षी दलों की भी अच्छी खासी भागीदारी है.

हाल ही में हमने अपने मित्र व युवा पत्रकार अमित सिन्हा जी (जो कुव्यवस्था को उजागर करने में सदैव तत्पर रहते हैं) के साथ  इस अवैध कारोबार का जायजा लिया. इस रिपोर्ट को कवर करने के दौरान हमने ये पाया कि ऐसे अधिकांश  समारोह-स्थल वी.वी.आई.पी. और सुरक्षा के दृष्टिकोण से अति-संवेदनशील इलाकों में ही स्थित हैं. हैरान करने वाली बात तो ये है कि ऐसे ज्यादातर समारोह भवन मुख्यमंत्री आवास और राज-भवन से कुछ फर्लांग की दूरी पर ही हैं.

ऐसा ही एक समारोह-स्थल (11 स्ट्रैंड रोड में) तो पटना के वरीय आरक्षी अधीक्षक के आवास के ठीक सामने चल रहा है. कुछ समारोह भवन तो हवाई-अड्डे से सिर्फ चंद मीटर की दूरी पर है. एक समारोह भवन तो बिल्कुल हवाई-अड्डे की चाहरदीवारी से सटा हुआ है (पोलो रोड पर स्थित भारतीय जनता पार्टी के विधायक अवनीश कुमार सिंह के आधिकारिक बंगले में बना समारोह भवन), कुछ समारोह भवन और चिड़िया घर में फासला  सिर्फ एक सड़क  का है.

विमानन और वन्य-जीव अधिनियमों की ऐसी अवहेलना शायद सिर्फ सुशासन में ही सम्भव है. अनेक समारोह भवनों के पंडालों को खड़ा करने में पेड़ों की भी अंधा-धुंध कटाई हुई है. हमने ऐसे ही एक समारोह भवन के संचालक से जब ये पूछा कि क्या पेड़ों की कटाई के लिए वन विभाग से आवश्यक अनुमति ली गई थी? तो उनका जवाब था “पेड़ कटना कौन सी बड़ी बात है, पटना में और भी जगह तो पेड़ काटे जा रहे हैं.” हमने जब उन्हें ये बताया कि क्या आपको पता है कि बिना वन-विभाग की इजाज़त के पेड़ काटना क़ानूनन जुर्म है तो उन्होंने बिना पलक झपकाए कहा “जब सैय्यां भये कोतवाल तो डर काहे का…”

हैरान करने वाली बात ये है कि शादी-ब्याह के आयोजनों पर इन समारोह भवनों के बाहर सड़कों पर और परिसर के भीतर जमकर आसमानी आतिशबाजी की जाती है, बावजूद इसके कि ये इलाका फ्लाइंग-जोन में आता है और हवाई-अड्डे से काफी नज़दीक होने के कारण इन इलाकों में हवाई जहाज़ भी काफी कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं.

ये निःसंदेह अत्यन्त ही गम्भीर मामला है, जिसकी अनदेखी जान-बूझ कर की जा रही है. आतिशबाजी के कारण पक्षी भी सदैव उड़ते रहते हैं जो विमानों के लिए खतरे की घंटी  हैं. चिड़िया-घर के जानवरों के लिए भी आतिशबाजी का शोर कहीं से लाजिमी नहीं है. इन समारोह भवनों में रात दस बजे तक की पाबंदी के बावजूद डी.जे., ऑर्केस्ट्रा वगैरह रात भर बेरोक-टोक चलते रहते हैं.

पटना बम-धमाकों का दंश झेल चुका है और सुरक्षा की दृष्टि से इस अतिसंवेदनशील इलाके में आतिशबाजी, डी.जे., ऑर्केस्ट्रा की शोर और भीड़-भाड़ की आड़ में किसी भी आतंकी कारवाई को बखूबी अंजाम दिया सकता है.

विधान-परिषद के पूल में आने वाले बंगले (11 स्ट्रैंड रोड) में बने एक भव्य समारोह-भवन के संचालक दिनेश कुमार सिंह से हमने जब छदयम्-ग्राहक के रूप में बातें की तो जो बातें हमारी जानकारी में आयीं वो हतप्रभ करने वाली थीं. उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी के मुताबिक़ ऐसे 16 सरकारी बंगलों में ये कारोबार वर्षों से जारी है और इन 16 बंगलों के अलावा और भी विधायकों और मंत्रियों के बंगले हैं, जिनमें “सीजन” में ऐसे समारोह भवन बना दिए जाते हैं. उसमें मानव संसाधन मंत्री पी.के.शाही का बंगला भी शामिल है.

बातचीत के क्रम में उन्होंने ने बताया कि ऐसे सारे समारोह भवनों का संचालन तो टेंट-पंडाल के कारोबारी ही करे रहे हैं, लेकिन “सरपरस्त”  इन बंगलों को आधिकारिक तौर पर जिस “माननीय” को आवंटित किया गया है वो ही हैं. जब हमने उनसे बुकिंग-रेट के बारे में पूछा तो उन्होंने ने बताया कि आमतौर पर किराया 1 लाख 75 हजार से 2 लाख रूपया है, जिसमें केवल पंडाल, कुर्सी और सामान्य ज़रूरत भर बिजली की सज्जा शामिल है. अतिरिक्त सजावट जैसे फूल वगैरह के लिए अतिरिक्त पैसा देना होता है.

हमने उनसे  जब ये पूछा कि बुकिंग आप करते हैं या कोई और तो उनका जवाब था “साहेब के यहां से लिस्ट पहले ही आ जाती है और उसके बाद जो डेट (तिथि) खाली रहती है उसकी बुकिंग हमलोग करते हैं.” इतने सवाल-जवाब से थोड़ा असहज होते हुए दिनेश ने हमसे पूछ ही लिया “क्या आप प्रेस से हैं ?”

अब  हमारे पास भी बताने के सिवाय कोई चारा नहीं था. हमने भी बेधड़क सवाल दागा “इतना कुछ तो आप बता ही चुके हैं तो ये भी बता ही दीजिए कि मुनाफे का बंटवारा कैसे होता है?” दिनेश थोड़ा सकपकाए और झिझकते हुए कहा “ये अंदर की बात है, इसे रहने दीजिए. मैं व्यापारी आदमी हूं मुझे फंसवाईएगा क्या?

दिनेश जी से ये भी पता चला कि ऐसे समारोह भवनों के संचालकों को “साहबों” की “सेवा” भी सालों भर मुफ्त करनी पड़ती है. मतलब हम  समझ चुके थे कि “साहबों” के व्यक्तिगत आयोजनों में “कार सेवा” की बात कर रहे हैं वो. दिनेश ने आगे बताया कि “हमारा भी एक फ़ायदा अलग से हो जाता है, हमें अपने कारोबार और कर्मचारी के लिए अलग से गोदाम या रहने की जगह लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और ऊपर से सुरक्षा भी.”

इन समारोह स्थलों पर हमने जिस तरह से बिजली का दुरुपयोग होते देखा तो हमें “आम” और “खास” का भेद  भली भांति समझ में आ गया. एक तरफ तो सरकार बिजली की कमी का रोना रो रही है. बिजली दरों में निरंतर बढ़ोतरी कर रही है. और दूसरी तरफ इस अवैध धंधे को सरकारी खर्चे पर निर्बाध बिजली मिल रही है.

इतना सब  जानना ही हमारे लिए  काफी था और हम चल पड़े एक नए मुद्दे की तलाश में दिनेश को अकड़ के साथ गुनगुनाता छोड़कर “सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा…”

(लेखक पटना में खोजी पत्रकार हैं.)

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