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शाहिद आज़मी की शहादत लोकतांत्रिक आंदोलनों को मज़बूत करेगी

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 11, 2014 1 View
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8 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम युवकों का मुकदमा लड़ने के कारण मुम्बई में खुफिया एजेंसियों और साम्प्रदायिक शक्तियों के गठजोड़ द्वारा चार साल पहले कत्ल कर दिए गए शाहिद आजमी की चौथी शहादत दिवस पर रिहाई मंच द्वारा ‘साम्प्रदायिक हिंसा और आतंकवाद का हौव्वा संदर्भ-गुजरात के बाद अब मुजफ्फरनगर’ विषय पर सम्मेलन आयोजित किया गया.

यूपी प्रेस क्लब में आयोजित सम्मेलन में बोलते हुये हिंदी साहित्य के आलोचक और राजनीतिक विश्लेषक विरेन्द्र यादव ने कहा कि मुज़फ्फरनगर के दंगे आजादी के दौरान हुए दंगों से भी वीभत्स थे. उस वक्त भी दंगों की आग गांवों के भीतर तक नहीं पहुंची थी. लेकिन आज हम सांप्रदाकिता का सबसे भीषण खूनी खेल मुजफ्फरनगर में देख रहे हैं.

नई आर्थिक नीतियों ने देश में असमानता के अनुपात को बड़ी तेजी आगे बढ़ाया है. इस देश में उन सवालों पर बहस न होने पाये इसके लिए आतंकवाद का हौव्वा खड़ा किया गया है. जो देश में जम्हूरियत चाहते हैं वे राज्य के निशाने पर आ जाते हैं. शाहिद आजमी को इसीलिए मार दिया गया. पिछड़ो और अल्पसंख्यकों के सवाल पर सरकारें बनती हैं, लेकिन हम मुजफ्फरनगर में उनका हश्र और सरकार का चरित्र देख रहे हैं.

भाकपा (माले) के सेंट्रल कमेटी के सदस्य मो. सलीम ने कहा कि अंबेडकर नगर में हिंदू युवा वाहिनी के नेता के हत्यारोपी को डीजीपी रिजवान अहमद द्वारा सीधे दुरदांत इनामी आंतकवादी घोषित कर देना निहायत निंदनीय है. जबकि उन्हीं के पुलिस अधिक्षक अम्बेडकर नगर और आईजी कानून व्यवस्था उसके किसी आंतकी कनेक्शन से इंकार कर चुके हैं. मुलायम सरकार जो काम नागर और शर्मा जैसे आरएसएस मानसिकता वाले डीजीपी से नहीं करवा पाई उसे रिजवान अहमद कर रहे हैं. सिर्फ 59 दिनों के यूपी के डीजीपी सेवानिवृत्ति के बाद प्रशासनिक लाभ के लिए पूरे मुस्लिम समाज पर आतंकवाद की तोहमत लगा रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मोदी हिटलर के तर्ज पर सत्ता में आने की कोशिश कर रहे हैं. मोदी सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं देश के दलितों, आदिवासियों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा हैं. उन्होंने कहा कि गुजरात में आतंकवाद के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियों और फर्जी मुठभेड़ों का खेल कारपोरेट पूंजी की लूट व शोषण के खिलाफ कोई जनांदोलन और मजदूर आंदलोलन न खड़ा हो इसका खेल है. यूपी, झारखंड और बिहार हिंदी भाषी क्षेत्रों के 76 नौजवान जो हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों से आते हैं, बकाया मजदूरी मांगने के चलते आतंकी होने के आरोप में मोदी के गुजरात में जेलों में सड़ रहे हैं.

प्रगतिशील लेखक संघ के शकील सिद्दीकी ने कहा कि शाहिद आजमी को बहुत कम उम्र में आतंकवाद के फर्जी आरोप में फंसा दिया गया था. लेकिन जेल से बेगुनाह साबित होने के बाद उन्होंने अपने जैसे ही फंसाए गए निर्दोष युवकों के इंसाफ की लड़ाई लड़ते हुए ही अपनी शहादत दे दी. बेगुनाह मुस्लिम युवकों के इंसाफ का सवाल अभी बना हुआ है. इसलिए आने वाली पीढ़ियां शाहिद से प्रेरणा लेती रहेंगी.

उन्होंने कहा कि सपा सरकार अपने को मुस्लिमों की हितैशी कहती है लेकिन इस सरकार में आतंकवाद के नाम पर कैद एक भी बेगुनाह नहीं छूटा जिसका वादा उन्होंने चुनाव में किया था और उल्टे सौ से ज्यादा साम्प्रदायिक दंगे करा कर सरकार ने संघ परिवार के एजेंण्डे को ही बढ़ाया है.

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की नेता मधु गर्ग ने मुजफ्फरनगर के अपने दौरे का हवाला देते हुये कहा कि हिंदुत्वादी संगठनों ने बहु-बेटी की इज्जत के नाम पर सैकड़ों मुसलमानों को मार दिया. लेकिन हकीकत यह है कि इस इलाके में ही सबसे ज्यादा लड़कियों की भ्रूण हत्याएं होती हैं और खाप पंचायतें अपने ही बच्चे-बच्चियों को गोत्र के नाम पर मार देती हैं. उन्होंने कहा कि दंगें में बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. लेकिन मुलायम के समाजवाद में आज भी बलात्कारी आजाद घूम रहे हैं.

इप्टा के महासचिव और वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश ने कहा कि आज कारपोरेट जगत मोदी का मतलब विकास ठीक उसी तरह बता रहा है जैसे उसने ठंडा मतलब कोका कोला बना दिया है. उन्होंने कहा कि यही कारपोरेट पूंजीवाद साम्प्रदायिकता को आज समाज के सामान्य विवेक के बतौर विकसित करने की कोशिश कर रहा है. जो इस देश को तबाही की तरफ ले जाएगा. मोदी उसी कारपोरेट पूंजीवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देश को तबाही की तरफ ले जाएगा.

सामाजिक कार्यकर्ता रामकृष्ण ने कहा कि रिहाई मंच ने दंगों और कथित आतंकवाद के पीछे छुपी कारपोरेट पूंजी और खुफिया एजेंसियों की भूमिका को उजागर करने का जो अभियान चलाया है, उसने इस मुद्दे को राजनीतिक बहस का मुख्य मुद्दा बना दिया है. इसकी आड़ में गरीब और शोषित तबके के लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन की पोल खोलते हुये ये साबित किया है कि इन मुद्दों के शिकार सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि गरीब, आदिवासी और दलित भी हैं. इस लड़ाई में शाहिद जैसे हमारे नौजवानों की शहादत इस देश के लोकतांत्रिक आंदोलनों को नई उर्जा देगी.

रिहाई मंच आजमगढ़ के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि जिस तरह गुजरात दंगों के बाद आतंकवाद का हौवा खड़ा किया गया वही काम अब मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद सपा सरकार में हो रहा है. पर मुलायम को यह जान लेना चाहिए कि जिस तरह से गुजरात का नाम लेते ही सांप्रदायिक हिंसा की तस्वीरों सामने आने लगती हैं ठीक उसी तरह अब यूपी का नाम आते ही कोसी कलां में जिंदा जलाए गए जुडंवा भाई कलुवा भूरा तो कभी फैजाबाद और मुजफ्फरनगर की तस्वीरों आती हैं. सिर्फ आतंक के हौव्वे को फैलाकर अगर सपा सोच रही है कि मुसलमानों को डरा कर वह वोट ले लेगी तो यह उसकी भूल है.

डीजीपी रिजवान अहमद ने जिस गैरजिम्मेदार तरीके से 27 जिलों को आतंकवाद प्रभावित कहा है, ऐसे में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बताना चाहिए कि इसका आधार क्या है और क्या वो इससे सहमत हैं. क्योंकि अपने चुनावी घोषणा पत्र में सपा ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का वादा किया था.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने कहा कि शाहिद आजमी की चौथी शहदात पर हमें संकल्प लेना होगा कि इस लड़ाई को शहादत तक लड़ा जाए और देश में इंसाफ का राज कायम हो.

इस कार्यक्रम का संचालन रिहाई मंच के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल आजमी ने किया. सम्मेलन में वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह, कचहरी बम धमाकों के आरोप में फर्जी तरीके से गिरफ्तार तारिक कासमी के चचा हाफिज फैयाज आजमी, आतंकवाद के फर्जी आरोप में कैद सीतापुर के शकील के भाई इसहाक, लक्ष्मण प्रसाद, अवसाफ, शाह आलम, आदियोग, फहीम सिद्दीकी, जैद अहमद फारुकी, फरीद खान, डा. अली अहमद कासमी, जमीर अहमद खान, शिब्ली बेग, कमर सीतापुरी, रेहान, विष्णु यादव, गुफरान, इरफान, हरेराम मिश्र, शाहनवाज आलम और राजीव यादव आदि शामिल थे.

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