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देश के हर नागरिक तक पहुँचना चाहिए यह सच…

Himanshu Kumar

मुज़फ्फर नगर में एक कवाल गाँव है. ये वो गाँव है, जहां से मुज़फ्फर नगर दंगा शुरू हुआ था. आपको अखबारों और टीवी पर बताया गया था कि कवाल में एक मुसलमान लड़के शाहनवाज़ ने एक हिंदू लड़की के साथ छेड़खानी करी, जिसके बाद उसके भाई मुसलमान लड़के को समझाने गए तो हिंदू लड़कों की हत्या कर दी गयी.

लेकिन सच्ची बात कुछ और ही है. दरअसल, शाहनवाज़ 24 साल का एक खूबसूरत नौजवान था. शाहनावाज़ कुल आठ भाई थे. ये सारे भाई चेन्नई के सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन के पास पेरियामेट में रह कर लेडीज़ सूटों की फेरी लगाते थे. सारे भाई कई महीने बाद अपने गाँव आये थे.

File Photo: Shahnawaz

File Photo: Shahnawaz

अपनी हत्या के एक दिन पहले यानी 26 अगस्त को शाहनवाज़ ने अपने सातों भाइयों को मुज़फ्फर नगर से चेन्नई जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया और खुद एक दो दिन के बाद चेन्नई आने के लिए कहा.

27 अगस्त की दोपहर करीब बारह बजे शाहनवाज़ किसी काम से बाज़ार की तरफ गया. वहाँ उसकी मोटर साईकिल की टक्कर गौरव की साईकिल से हो गयी. दोनों में कहा सुनी हुई. शाह्नावाज़़ अपने घर आ गया.

करीब दो बजे शाहनवाज़ नमाज़ पढ़ने मस्जिद जाने के लिए निकला. सड़क पर गौरव तीन मोटर साइकिलों पर अपने पिता और मामाओं और मामा के बेटे सचिन के साथ खड़ा था.

इन लोगों ने शाहनवाज़ पर गुप्ती चाकू और पंच से हमला कर दिया. शाहनवाज़ सड़क पर चिल्लाते हुए गिर गया.

हत्यारे दो मोटर साइकिलों पर नगली गाँव की तरफ भाग खडे हुए. लेकिन सचिन और गौरव मलिकपुर की तरफ भागे. भीड़ ने सचिन और गौरव को पकड़ लिया और पीट पीट कर मार डाला. भीड़ को यह नहीं पता था कि हमलावर हिंदू थे या मुसलमान… लेकिन गाँव में घुस कर गाँव के लड़के को मारने पर क्रोधित होकर भीड़ ने कातिलों को मार डाला.

यह घटना दोपहर करीब ढाई बजे की है. कुछ ही देर में एसपी मंजिल सैनी और कलेक्टर वहाँ पहुँच गए. एस पी मंजिल सैनी ने जमा भीड़ के सामने कहा कि दो घंटे का समय देती हूँ. इन मुसलमानों को सबक़ सिखा दो.

गाँव के पूर्व प्रधान विक्रम सैनी की अगुआई में पुलिस की मौजूदगी में मुसलमानों की दुकानों के शटर तोड़ डाले गए. फज़ल, मुन्ना, अफज़ल और अन्य लोगों की दुकानें लूट ली गयी. सरफराज़ की कार जला दी गयी. और लोगों को घरों में घुस कर पीटा गया.

इन हमलावरों का नेता विक्रम सैनी जो कवाल का पूर्व प्रधान है अब जेल में है इस पर रासुका लगा दिया गया है.

एसपी मंजिल सैनी का ट्रांसफर भी इसी वजह से किया गया था. क्योंकि उसने अपनी मौजूदगी में मुसलमानों पर हमले करवाये थे. जबकि भाजपा ने झूठा प्रचार किया कि मुसलमानों को गिरफ्तार करने के कारण एस पी और कलेक्टर को आज़म खान ने हटवा दिया था.

पुलिस ने आनन-फानन में थोक में मुसलमानों को हवालात में ठूंस दिया. लेकिन शाहनवाज़ के एक भी हत्यारे को नहीं पकड़ा.

साढ़े चार बजे गौरव के पिता ने एफआईआर करवाई उसमे किसी लड़की के साथ छेड़खानी का कोई ज़िक्र नहीं था. उसमें भी साईकिल और मोटर साईकिल की टक्कर के कारण झगडे की बात ही कही गयी.

दैनिक भास्कर और एन डी टी वी को अपने इंटरव्यू में गौरव की बहन ने स्वीकार भी किया कि उसे कभी शाहनवाज़ ने परेशान नहीं किया था. वह किसी शाहनवाज़ को नहीं जानती. उसने शाहनवाज़ को कभी देखा तक नहीं.

Kawaal paper cutting

लेकिन भाजपा नेताओं ने ज़बरदस्ती प्रचार किया कि यह झगड़ा गौरव की बहन के साथ छेड़खानी के कारण हुआ.

शाहनवाज़ के दो भाइयों का नाम भी एफआईआर में लिखवा दिया गया. जबकि सच यह है कि ये सातों भाई चेन्नई जाने वाली देहरादून एक्सप्रेस में बैठे हुए थे. यह ट्रेन हर सोमवार को मुज़फ्फर नगर से चलती है और 26 अगस्त को सोमवार ही था. मेरे पास इन सातों भाइयों के ट्रेन की टिकिट मौजूद है.

इन सातों भाइयों को रस्ते में खबर मिली कि गाँव में आपके भाई शाहनवाज़ को जाटों ने मार दिया है. ये भाई बल्लारशाह स्टेशन पर उतरे और वापिस आने वाली ट्रेन में बैठ गए. मेरे पास इनकी वापिसी के भी सातों टिकिट मौजूद हैं.

अगले दिन सचिन और गौरव का अंतिम संस्कार करने के बाद पीएसी की मौजूदगी में कवाल गाँव की मुस्लिम बस्ती पर जाटों ने कहर बरपा किया. घरों के दरवाजे तोड़ डाले गए. सामान लूट लिया. मस्जिद का सारा सामान, पंखे इन्वर्टर, लूट कर ले गए. पथराव किया… पीएसी ने मुसलमानों की तरफ पूरे समय बंदूक ताने रखीं ताकि वे अपने सामान की रक्षा न कर सकें.

गौरव के पिता ने एफआईआर में जिन मुसलमानों के नाम लिखवाए उन्हें बेक़सूर होते हुए भी डर के मारे घर वालों ने पुलिस को सौंप दिया.

जांच अधिकारी सम्पूर्ण तिवारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह सच है कि पहले शाहनवाज़ की हत्या करी गयी और फिर भीड़ ने सचिन और गौरव को मार डाला.

शाहनवाज़ की हत्या की जो एफआईआर हुई उस पर पुलिस ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं करी.  जैसे की शहनावाज़ की हत्या ही ना हुई हो.

जबकि सच तो यह है कि इन हत्यारों ने निर्दोष शाहनवाज़ को गाँव में आकर हमला कर के मारा. और उस दौरान भीड़ के हाथ पड कर इनमें से दो हत्यारे मारे गए. लेकिन आज तक शाहनवाज़ के हत्यारे खुले आम मंचों पर सम्मानित किये जा रहे हैं.

शाहनवाज़ के पिता मुलायम सिंह यादव से भी मिल कर आये लेकिन उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं करी. क्या इस देश में अलग अलग समुदाय के लिए अलग अलग कानून हम स्वीकार कर सकते हैं?

याद रखिये! अगर आप देश के एक भी नागरिक के साथ भेदभाव स्वीकार करते हैं तो फिर आप सभी के लिए भेदभाव को एक नीति के रूप में स्वीकार कर रहे हैं.

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