BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : रिहाई मंच ने मेरठ स्थित स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वलिद्यालय में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों पर गत दिनों भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान, पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने के आरोप में दर्ज मुक़दमें को उत्तर प्रदेश पुलिस के सांप्रदायिक और कश्मीर विरोधी मानसिकता का उदाहरण क़रार दिया है. मंच ने मुक़दमा दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों के निलंबन की मांग की है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति मंजूर अहमद का बयान सामने आ जाने के बाद कि उन्होंने पुलिस में इस संदर्भ में कोई शिकायत ही दर्ज नहीं कराई थी तब, यह साबित हो जाता है कि कश्मीरी मुसलमानों के प्रति सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के तहत पुलिस ने उनके ऊपर यह मुक़दमा दर्ज किया था. यही वजह है कि बाद में उन्हें देशद्रोह के इस मुक़दमें को हटाना पड़ गया.
अधिवक्ता व रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस कश्मीरी मुसलमानों के प्रति किस हद तक सांप्रदायिक द्वेष रखती है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान या दुनिया के किसी भी मुल्क के पक्ष में नारे लगाना देशद्रोह के दायरे में नहीं आता, लेकिन अपने सांप्रदायिक जेहनियत और युवकों का करियर बिगाड़ने के उतावलेपन में उन्होंने इस तरह का आरोप मढ़ दिया जो कहीं तकनीकी आधार पर नहीं टिक सकता.
उन्होंने कहा कि इससे पहले भी आज़मगढ़ के जमीयत-उल-फलाह मदरसे में पढ़ने वाले दो कश्मीरी छात्रों वसीम बट्ट और सज्जाद बट्ट को अखिलेश सरकार ने ही अलीगढ़ स्टेशन से आतंकी बताकर ट्रेन से उतार लिया था. यह साबित करता है कि कश्मीरी मुसलमानों को लेकर अखिलेश सरकार का रवैया पिछली बसपा सरकार से अलग नहीं है. जिनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश पुलिस ने नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर मुख्यमंत्री मायावती को मारने की साजिश रचने के नाम पर चिनहट में 23 दिसंबर 2008 को दो गरीब कश्मीरी शाल विक्रेताओं को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था.