Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे रोमाचंक चुनावी मुक़ाबला बनारस में हैं. अतिचर्चित, बेहद प्रतीक्षित और राजनीति को नई दिशा देने वाले इस चुनावी मुक़ाबले का असर अभी बनारस पर नहीं हुआ है. अब भी बनारस के घाटों पर टोपी लगाए मुसलमान मछलिओं को आटे के गोले फेंकते दिखते हैं. पास ही साधु अपनी पूजा-अर्चना में लीन…
उल्लास में नहाते बच्चों का धर्म उनकी शक़्ल से पता नहीं चलता. मंदिर के घंटों की आवाज़ में अजान के बोल मिले हुए से सुनाई देते हैं. गदौलिया चौराहे की सड़कों से निकलती पतली गलियों पर चाय की दुकानों पर सभी धर्मों के लोग बैठे हुए दिख जाते हैं.
दिल को सुक़ून और रूह को ताज़गी देने वाले ये नज़ारे शायद बीती बात हो जाएं. क्योंकि गंगा-जमुनी तहज़ीब वाले बनारस पर अब साज़िशों के साएं मंडरा रहे हैं. धर्म की आड़ में आने वाली इन साज़िशों का मूल चरित्र अधर्म है और उद्देश्य पूर्णतः राजनीतिक…
हमेशा उल्लास में डूबा रहने वाला बनारस चुनावी मौसम में आशंकित भी है. यह आशंका खालिस चुनावी है. बनारस का ध्रवीकरण कर वोटों को धर्म के आधार पर बांटने की ज़बरदस्त कोशिशें की जा रही हैं. अभी तक इन कोशिशों के निशान या नतीजे सतह पर नज़र नहीं आ रहे हैं, लेकिन लोगों का मन टटोलने पर आशंकाएं ज़रूर मिल जाती हैं.
आशंकाएं इस बात की है कि ध्रुवीकरण के इस तलवार को धार देने के खातिर बनारस में चुनावी अशांति फैलाई जा सकती है. यह अशांति दो गुटों के टकराव से लेकर दंगे तक की शक़्ल में सामने आ सकती है.
प्रशासन एहतियात बरत रहा है और शहर में रैपिड एक्शन फोर्स की बड़े पैमाने पर तैनाती कर दी गई है. बनारस में चुनाव 12 मई को है. नॉमिनेशन 17 से 24 अप्रैल के बीच है. इसके बावजूद बड़े पैमाने पर फोर्स का पहले से ही तैनात हो जाना इन आशंकाओं को और मज़बूती दे रहा है.
शहर के गली-नुक्कड़ों में भी यह चर्चाएं आम होने लगी है. सुत्र बताते हैं कि खुफिया एजेंसियों ने इस बाबत प्रशासन को आगाह भी कर दिया है. ये बात दीगर है कि अशांति और दंगे की सूरत में धार्मिक आधार पर वोट की फसल काटने वाली ताक़तों को फायदा पहुंचेगा.
इतना ही नहीं, सुत्र यह भी बताते हैं कि इस बार भी केजरीवाल को विरोध का सामना करना पड़ सकता है. माहौल को बिगाड़ने की कोशिश के खातिर उन पर हमला भी करवाया जा सकता है. हमें इस शहर में कई ऐसे लोग मिले जो सर पर टोपी तो आम आदमी का पहने हुए हैं, लेकिन उनके दिलों में नमो ही राज कर रहे हैं.
बनारस की लड़ाई का एक अहम खिलाड़ी बन चुके अरविन्द केजरीवाल से जुड़े सुत्र इन आशंकाओं की पुष्टि करते हैं. अनके मुताबिक उनके नेता को निशाना बनाने की कोशिश की जा सकती है. मक़सद माहौल बिगाड़ना होगा.
इन हालातों में बनारस की लड़ाई बेहद संवेदनशील मोड़ पर पहुंच चुकी है. दुआ की जानी चाहिए कि वोट के खातिर धर्म की फसल काटने वाली ताक़तें अपनी इन नापाक कोशिशों से बाज़ आएंगे और धर्म की इस नगरी का धर्म क़ायम रहेगा.