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मुस्लिम वोटरों के पास है बनारस के जीत की चाबी

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बनारस की चुनावी लड़ाई मुस्लिम वोटों के चक्रव्यूह पर आकर टिक गई है. सभी दलों में होड़ मची हुई है कि इस चक्रव्यूह को कौन भेद पाता है. अरविन्द केजरीवाल, अजय राय, कैलाश चौरसिया और यहां तक कि नरेन्द्र मोदी का खेमा भी मुस्लिम वोटरों में पैठ बनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है.

बनारस के स्थानीय लोग बताते हैं कि इस सीट पर लोकसभा की जंग पहले भी दिलचस्प थी और अब मुख्तार अंसारी के चुनाव न लड़ने के ऐलान के बाद और भी दिलचस्प हो गई है. इस बार सबकी नज़र यहां के मुसलमान वोटरों पर है. सभी दल मुस्लिम वोटरों को लुभाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं. वहीं सेक्यूलर जमाअतों को भी बस इसी बात की फिक्र है कि किसी तरह से इस बार मुस्लिम वोट्स बंटने नहीं चाहिए. शायद यही कारण है कि मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल ने साझा प्रत्याशी की अपील की है, वहीं इस बात की भी घोषणा किया है कि जो मोदी को हराएगा, कौमी एकता दल उसे ही अपना समर्थन देगा.

कौमी एकता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अतहर जमाल लारी बताते हैं कि सारे राजनीतिक दलों के नेता उनसे सम्पर्क साध रहे हैं. वो हंसते हुए बताते हैं कि कुछ लोग तो मीडिया में यह कह रहे हैं कि हमें मुख्तार का समर्थन नहीं चाहिए, लेकिन दिल में यह हसरत पाले हुए हैं कि कौमी एकता दल का समर्थन किसी तरह से बस उन्हें मिल जाए. लारी का कहना है कि कौमी एकता दल सिर्फ उसी उम्मीदवार को अपना समर्थन देगी जो मोदी को हराने की ताक़त रखता है. नॉमिनेशन का प्रोसेस मुकम्मल होने के बाद हम 24 या 25 को अपने समर्थन का ऐलान करेंगे.

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हालांकि कुछ मुस्लिम संगठनों का इस बार आम आदमी पार्टी की ओर भी झुकाव है. यहां के मोमिन कांफ्रेस ने तो बजाब्ता केजरीवाल को अपने समर्थन का ऐलान भी कर चुकी है. और ऐसा माना जा रहा है कि कौमी एकता दल उन्हें ही समर्थन करेगा.

स्थानीय अखबारों ने तो यहां तक लिख दिया है कि मुख्तार अंसारी ने भाई अफज़ाल अंसारी दिल्ली में केजरीवाल से मुलाकात भी कर चुके हैं. पर आम आदमी पार्टी के संजय सिंह व मनीष सिसोदिया ने वाराणसी ने एक मीटिंग के दौरान इस खबर का खंडन करते हुए स्पष्ट तौर पर कह डाला कि हमारी ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई है और न ही आगे ऐसा कोई हमारा इरादा है. हम मुख्तार का समर्थन नहीं लेंगे. वहीं लारी से हमारी मुलाकात के बाद हमें इस बात का अहसास हो गया कि आम आदमी पार्टी को मुख्तार अंसारी का समर्थन मिलना काफी मुश्किल है.

लेकिन केजरीवाल को पूरी उम्मीद है कि मुसलमानों का समर्थन उन्हें ही मिलेगा. उन्हें लुभाने के लिए ही अपनी यात्रा के पहले ही दिन पहली मुलाक़ात बनारस के शहर काज़ी से की. यहां तक कि अपनी टोपी पर से झाड़ू का निशान हटाकर उर्दू में अपनी पार्टी का नाम लिखना मुनासिब समझा, ताकि मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में किया जा सके.

उधर कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय का दावा है कि मुस्लिम वोटर्स उनके साथ हैं. उन्होंने तो मीडिया को यह बयान भी दे डाला कि केजरीवाल मुगालते में न रहे, क्योंकि अल्पसंख्यक समाज का वोट कांग्रेस को ही मिलेगा, क्योंकि वही मोदी के खिलाफ मज़बूती से लड़ रही है.

सपा प्रत्याशी की भी नज़र अब सिर्फ मुस्लिम वोटरों पर ही है. कैलाश चौरसिया बिना मुख्तार अंसारी का नाम लिए कहते हैं कि किसी के चुनाव नहीं लड़ने से मतों का विभाजन रूकेगा. वह हमें समर्थन देता है तो उसके आभारी रहेंगे.

मोदी का खेमा भी मुस्लिम वोटों पर नज़र गड़ाए बैठा है. उनका भी मानना है कि मुसलमान इस बार बनारस में मोदी को वोट दे सकता है. चर्चा तो यहां तक है कि मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए मोदी अपना प्रस्तावक किसी मुस्लिम जुलाहे को बना सकते हैं. यही नहीं, मोदी को समर्थन दे चुकी भारतीय अवाम पार्टी का दावा है कि उनकी पार्टी में तकरीबन 35 हज़ार मुस्लिम महिला कार्यकर्ता हैं. जो इस बार मोदी जी को ही वोट डालेंगी. वहीं मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा भी काफी सक्रिय नज़र आ रहा है.

स्पष्ट रहे कि काशी के इस नगरी में 3 लाख से अधिक मुस्लिम वोटर्स हैं. जबकि यहां कुल वोटरों की संख्या 16 लाख 30 हजार के आसपास है. जिसमें पटेल बिरादरी के 2 लाख 75 हजार वोटर हैं. मुस्लिम वोटर तीन लाख 25 हज़ार, ब्राह्मण वोट दो लाख, भूमिहार एक लाख 35 हजार, हरिजन और पिछड़ा वर्ग दो लाख 70 हजार हैं.

वाराणसी में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कैलाश चौरसिया हैं. बीएसपी ने विजय प्रकाश जायसवाल को अपना उम्मीदवार बनाया है. मुस्लिम धर्मगुरु एसपी और बीएसपी कैंडिडेट्स को समर्थन लायक नहीं मान रहे हैं. बीएसपी प्रत्याशी को जहां वे लाइटवेट मान रहे हैं, वहीं मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद एसपी से उनकी नाराजगी बढ़ी है.

जबकि स्थानीय लोग कांग्रेस के अजय राय को एक मज़बूत प्रत्याशी के रूप में देखते हैं. उनका मानना है कि उनके साथ डेढ़ लाख भूमिहार वोट है ही, साथ ही उच्च जाति के वोट भी उन्हें ही मिलेंगे, ऐसे में मुसलमान भी उन्हें अपना समर्थन दे दें तो जीत पक्की हो सकती है. लेकिन मुसलमानों का उनके साथ इतना आसान भी नहीं है. वे तीन बार यहां से भाजपा के विधायक रह चुके हैं और 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. और उस बार भी उन्होंने मुख्तार असांरी को हराने के खातिर अंदरूनी तौर पर भाजपा के जोशी का समर्थन कर दिया था, जिसकी वजह से मुख्तार अंसारी मामूली अंतर से चुनाव हार गए.

हालांकि वाराणसी में ऐसा पहली बार हो रहा है कि एक अन्य पिछड़ा जाति का व्यक्ति यहां से लोकसभा के लिए भाजपा का प्रत्याशी है. इससे पहले भाजापा ने हमेशा उच्च जाति के उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा है.

इन सब बातों के बीच वाराणसी के लोग इस बार पूरे मज़े लेने के मूड में हैं. उनका कहना है कि चलो कम से कम बनारस इसी बहाने चर्चे में तो है. कम से कम यहां के गरीबों के रोज़गार का कुछ तो भला होगा. और वैसे भी बनारस के मुसलमानों की माली हालत बहुत बेहतर नहीं है और सच्चाई यह भी है कि शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वो काफी पिछड़े हुए हैं. बुनकरों के हालात तो और भी खराब हैं. विकास का दावा करने वाली भाजपा के सांसदों ने तो यहां के मुस्लिम इलाकों की हालत और भी बदतर बना दी है.

राजनैतिक दल हर चुनाव में उनसे बेशुमार वायदे करते हैं और आखिरकार उनको ठगा हुआ छोड़कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनेताओं के हाथ की कठपुतली बन चुके मुस्लिम वोट इस बार किस ओर जाता है और इतना तो तय है कि मुसलमान जिस उम्मीदवार को भी अपना एक तरफा वोट देगी उसकी जीत तकरीबन तय है.

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