BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : रिहाई मंच ने समाजवादी पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए जारी अपने घोषणा पत्र में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को रिहा करने के वादे को मुस्लिम समाज को एक बार फिर छलने की कोशिश बताया है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि विधानसभा चुनाव में भी सपा ने वादा किया था कि आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाह छोड़ दिए जाएंगे, लेकिन एक भी बेगुनाह नहीं छूटा. उल्टे, सीतापुर के मोहम्मद शकील समेत अलग-अलग हिस्सों से सात-आठ नौजवानों को पकड़ा गया, खालिद मुजाहिद जिन्हें आर.डी. निमेष कमीशन रिपार्ट ने बेगुनाह बता दिया था, को आईबी और एटीस ने मिलकर कत्ल कर दिया. जिसके दोषियों पर नामित मुक़दमा होने के बावजूद अखिलेश सरकार की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करना तो दूर, उनसे पूछ-ताछ तक नहीं किया.
उन्होंने कहा कि अगर सपा सरकार इस वादे के प्रति ईमानदार रहती तो कचहरी विस्फोटों के आरोप में पकड़े गए तारिक़ और खालिद की गिरफ्तारी को संदिग्ध बताने वाली निमेष कमीशन की रिपोर्ट, जिसे आरडी निमेष ने अखिलेश सरकार को 30 अगस्त 2011 को ही सौंप दिया गया था, को जारी करने के लिए खालिद मुजाहिद की हत्या का इंतजार नहीं करती और उसे सदन में रखने की मांग को लेकर सूबे की इंसाफ पसंद आवाम को लगातार 121 दिन तक विधानसभा के सामने धरना नहीं देना पड़ता.
उन्होंने कहा कि इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ कांड, निमेष कमीशन की रिपोर्ट और हाल के दिनों में बिजनौर निवासी मोहम्मद नासिर के सात साल बाद बेगुनाह साबित होकर जेल से छूटने जैसी घटनाओं में खुफिया विभाग की सांप्रदायिक और आपराधिक भूमिका उजागर हो गई है. इसलिए यह ज़रूरी हो गया है कि आईबी को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाए ताकि देश में आतंकवाद की घटनाओं पर अंकुश लग सके और उसके वास्तविक दोषी पकड़े जा सकें.
उन्होंने कहा कि आईबी को संसद के प्रति जवाबदेह बनाने के सवाल पर अपने को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली पार्टियों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी. क्योंकि, धर्मनिपेक्षता और आईबी को बिना जवाबदेही के असीमित शक्ति दे दिया जाना एक साथ नहीं चल सकता.
रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि निमेष कमीशन की रिपोर्ट ने तारिक-खालिद को आतंकवाद के आरोप में फंसाने वाले जिन पुलिस अधिकारियों को चिन्हित किया है, उनके ऊपर कार्रवाई करने के बजाए, उनमें से एक मनोज कुमार झा को सपा सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए बनी ’स्पेशल इन्वेटिगेशन सेल’ (एसआईसी) का प्रमुख बना दिया, तो वहीं तारिक़ खालिद के अलावा दर्जनों बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को आतंकवाद के आरोप में फंसाने के मुख्य षड़यंत्रकर्ता तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल को नागरिक सुरक्षा का डीजी बना दिया. जिससे साफ हो जाता है कि सपा सरकार की जवाबदेही सूबे के इंसाफ पसंद आवाम के प्रति नहीं बल्कि बेगुनाह मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर फंसाने वाली खुफिया एजेंसियों और एटीएस के सांप्रदायिक और आपराधिक प्रवृत्ति के अधिकारियों के प्रति है.
उन्होंने आरोप लगाया कि दो साल की सपा हुकूमत में खुफिया एजेंसियों के सांप्रदायिक अधिकारियों के हौसले इस कदर बुलंद हो गए हैं कि उन्होंने जहां एक ओर खालिद की हत्या की तो वहीं, लखनऊ जेल में बंद ऐसे आरोपियों के ऊपर कई बार जानलेवा हमला करवाया जिसपर जेल मंत्री राजेन्द्र चौधरी से शिकायत के बावजूद कोई कार्यवाई नहीं हुई. तो वहीं, इस हुकूमत में दिल्ली स्पेशल सेल और दूसरे राज्यों की एजेंसियों ने भी उत्तर प्रदेश में घुसकर बिना राज्य के संघीय ढांचे की औपचारिकताओं को पूरा किए कई मुस्लिम नौजवानों को आतंकवाद के झूठे मामलों में पकड़कर लेकर चली गयी, जो बिना प्रदेश सरकार के मिली भगत के नहीं हो सकता था.
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने कहा कि सपा ने अपने घोषणा-पत्र में 2002 के दंगा पीडि़तों को न्याय देने की बात की है, जिससे उसका घोषणापत्र कोई गंभीर राजनैतिक दस्तावेज़ लगने के बजाय चुटकुलों की पुस्तिका लगने लगी है, क्योंकि मुजफ्फरनगर, शामली समेत 100 से ज्यादा दंगे कराने, अस्थान प्रतापगढ़ के दंगाइयों को जो रघुराज प्रताप सिंह के समर्थक हैं, बचाने, सपा सरकार में मंत्री रियाज अहमद द्वारा पीलीभीत से सांसद और मुसलमानों का हाथ काटने की सार्वजनिक तौर पर धमकी देने वाले भाजपा नेता वरुण गांधी के खिलाफ गवाही देने वालों को धमकाने की घटना के सार्वजनिक हो जाने के बाद भी अगर मुलायम सिंह गुजरात 2002 के दंगा पीडि़तों को इंसाफ देने की बात करते हैं तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जा सकता. खासकर सुप्रीम कोर्ट के इस टिप्पणी के बाद कि सरकार दंगे रोकने में विफल रही.
उन्होंने कहा कि गुजरात जनसंहार के पीडि़तों को इंसाफ देने की बात करने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बताना चाहिए कि उन्होंने गुजरात पुलिस के सेवा निवृत्त वरिष्ठ अधिकारी आर बी श्रीकुमार द्वारा इन दोनों नेताओं को लिखे पत्रों का जवाब आज तक क्यों नहीं दिया जिसमें उन्होंने पूछा था कि साबरमती एक्सप्रेस जो गोधरा में आगजनी का शिकार हुई, उसमें संघ परिवार के अराजक तत्वों के उत्पात को नियंत्रित करने के लिए उत्तर प्रदेश के जिन पुलिस अधिकारियों को अयोध्या से ही उस ट्रेन में बैठाकर गुजरात भेजा गया था, उन अधिकारियों की पहचान क्या है. क्योंकि उनकी गवाही गोधरा कांड के रहस्य पर से पर्दा उठा सकती है. उन्होंने पूछा कि आखिर गोधरा कांड का रहस्य छिपाने में सपा को इतनी दिलचस्पी क्यों है?
रिहाई मंच के आज़मगढ़ प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को छोड़ने के झांसे मे आ चुका मुस्लिम समाज दोबारा सपा के इस झांसे मे नहीं आने वाला है.
रिहाई मंच नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मुस्लिम नौजवान हैं, जो आतंकवाद के झूठे आरोपों में अपनी जिंदगी का बड़ा वक्त जेलों में बिताने के बाद बेदाग साबित हो कर छूट चुके हैं. लेकिन कई बार मुख्यमंत्री से मिलने और ज्ञापन देने के बावजूद उनके पुर्नवास और मुआवजे के लिए सरकार ने कोई क़दम उठाना तो दूर आश्वासन तक नहीं दिया.
उन्होंने कहा कि आज़मगढ़ के बीसियों लड़के या तो आतंकवाद के नाम पर फर्जी मुकदमों में बंद हैं या फिर उन्हें आईबी और एटीएस अपने पास रखे हुए है, जिसे वे अपनी ज़रूरत के हिसाब से समय-समय पर गिरफ्तार करने का दावा करते हैं. लेकिन इस समस्या पर संजीदगी दिखाने के बजाए मुलायम सिंह ऐसे लड़कों को छोड़ देने का झूठा दावा करके ऐसे पीडि़त परिवारों के साथ पिछले दो साल से मजाक करते रहे हैं. जिसमें कुछ तथाकथित उलेमा भी शामिल रहे हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले साल रिफाहे आम क्लब लखनऊ में एक उलेमा संगठन के सम्मेलन में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का दावा कर चुके मुलायम को बताना चाहिए कि अगर बेगुनाह छूट चुके थे तो फिर घोषणा पत्र में उन्हें छोड़ने का वादा वे क्यों कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि जनता ऐसे उलेमाओं से भी सवाल ज़रूर पूछे जो मुलायम के ऐसे झूठे दावों को सच बता कर उनके लिए वोट मांगने का काम करेंगे. उन्होंने कहा कि रिहाई मंच आज़मगढ़ समेत पूरे सूबे में अपने 25 बिंदुओं चुनावी मांग-पत्र को जनता के बीच ले जा रही है ताकि लोग सपा समेत सभी पार्टियों से अपने सवालों पर जवाब तलब कर सकें.