Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
नरेन्द्र मोदी ने रोड शो के ज़रिए बनारस में अपनी ताक़त तो दिखा दी, मगर इस पूरी क़वायद में उन्होंने चुनाव आचार संहिता को अपने जूतों तले कुचल डाला.
देश के एक आम नागरिक को भी यह मालूम होता है कि चुनाव आचार संहिता लगने के साथ ही धारा-144 के प्रभाव में आ जाती है और ऐसे में बगैर इजाज़त 4 या उससे अधिक लोगों को इकट्ठा होना किसी अपराध से कम नहीं होता.
मोदी के इस रोड शो में उनके पीछे हज़ारों की भीड़ चल रही थी. न कई इजाज़त ली गई और न ही इजाज़त लेने की ज़रूरत समझी गई. जिस सूरत में चार लोग भी बगैर इजाज़त किसी जगह इकट्ठा नहीं हो सकते, उस सूरत में मोदी की अगुवाई में उन्मादी भीड़ पूरे चार घंटों तक काशी की सड़कों पर उतर कर आचार संहिता को अपने पैरों से रौंदती रही.
उधर मोदी ने भी बड़े ही शातिर तरीके से अपनी गाड़ी की खिड़की के शीशे उतार दिए थे ताकि वो जनता का अभिवादन लेते रहे और उसे अपने हाव-भाव से राजनीतिक संदेश देते रहे.
ऐसे में अगर देखा जाए तो मोदी बगैर किसी इजाज़त हज़ारों की भीड़ के साथ इस देश के लोकतंत्र के इतिहास की सबसे बड़ी नाफरमानी का नमूना पेश कर दिया.
फर्ज़ कीजिए कि जिस प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार प्रधानमंत्री बनने से पहले ही इस पैमाने पर नियम-कानूनों को और दिशा-निर्देशों का धज्जियां उड़ा रहे हैं, वो प्रधानमंत्री बनने की सूरत में अपने मक़सद को पूरा करने के खातिर किस सीमा तक जा सकते हैं.
बीएचयू से आगे निकलते ही रविन्द्र पूरी इलाके में नरेन्द्र मोदी का काफिला पहुंचने के साथ ही यह साफ हो गया था कि हज़ारों की भीड़ इस रोड शो के हर पड़ाव में बढ़ती ही जाएगी. इसके आगे भेलूपूर, सोनार पूरा, मदन पूरा, गोदौलिया, गिरजा घर, लक्सा, गुरू बाग़ से लेकर बीजेपी का रथ-यात्रा स्थित चुनावी कार्यालय तक ऐसा ही नज़ारा दिखाई दिया.
हैरानी की बात यह थी कि मोदी के खुलेआम आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने के इस कार्यक्रम में प्रशासन मूकदर्शक बना तमाशा देख रहा था. मोदी के खिलाफ कोई कार्रवाई के बजाए प्रशासन का पूरा ध्यान मोदी के रोड शो का रास्ता साफ करने में लगा हुआ था.
आइए अब ज़रा एक दिन पहले की कहानी को भी समझ लें. बीजेपी ने प्रशासन से 7 मई के सुबह में मोदी के रोहनिया जनसभा, बेनिया बाग में एक जनसभा, सूर्या होटल में 150 लोगों के साथ एक मुलाकात और गंगा आरती में शामिल होने की इजाज़त मांगी थी.
प्रशासन ने तुरंत ही जगत इंटर कालेज, रोहनिया में जनसभा की इजाज़त दे दी, क्योंकि यह स्थान शहर से तकरीबन 5 किलोमीटर की दूरी पर है. बाकी जगहों के लिए इंतज़ार करने को कहा. दिन में प्रशासन ने बेनिया बाग में जनसभा करने से मना कर दिया और बाकी के लिए बताया गया कि वो सुरक्षा के दृष्टिकोण से जांच करने के बाद ही जवाब दिया जाएगा.
बेनिया बाग में जनसभा की इजाज़त न देने के पीछे की कहानी यह है कि यह इलाका सुरक्षा के दृष्टिकोण से ज़्यादा सही नहीं था. साथ ही मैदान छोटा होने के कारण इसमें ज्यादा लोग नहीं आ सकते और सबसे बड़ा कारण यह वही मैदान था जहां 1991 में बीजेपी के एक चुनावी सभा में शत्रुधन सिन्हा के भाषण की वजह से शहर में दंगा भड़क उठा था. इतना ही नहीं, सुत्र बताते हैं कि इस ग्राउंड पहले से ही किसी एनजीओ के कार्यक्रम के लिए इसे अलॉट किया जा चुका था. जिसे प्रशासन ने आनन-फानन में रद्द भी कर दिया. हालांकि प्रशासन ने बीजेपी को इस ग्राउंड के बदले कटिंग ग्राउंड का विकल्प भी दिया.
लेकिन बीजेपी के अमित शाह, अरूण जेटली व अन्य नेताओं ने शाम 6 बजे सूर्या होटल में प्रेस कांफ्रेंस कर प्रशासन पर कई आरोप लगाते हुए ‘सत्याग्रह’ का ऐलान कर किया. उसके ठीक कुछ घंटों बाद यानी रात के 10 बजे वाराणसी के ज़िला अधिकारी प्रांजल यादव ने आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर बाकी के दो परमिशनों को भी क्लियर कर दिया.
लेकिन ज़िला अधिकारी के इस कांफ्रेस के बाद 11 बजे रात में उसी सूर्या होटल में अमित शाह ने दुबारा प्रेस कांफ्रेस बुलाया और प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए बताया कि अब हमें कोई परमिशन नहीं चाहिए. जनसभा सिर्फ रोहनिया में होगी और फिर मोदी जी बीएचयू से रथ-यात्रा स्थित दफ्तर में आकर कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे. इसी के साथ ही ज़िला अधिकारी के ट्रांस्फर की मांग को लेकर अपने ‘सत्याग्रह’ का भी ऐलान कर दिया.
खास बात यह है कि ज़िला अधिकारी ने जब अपने परमिशन का ऐलान किया था, उसमें रोड शो जैसी न तो कोई परमिशन थी और न ही कोई परमिशन मांगी गई थी. इसके बावजूद बीजेपी ने रोड शो निकाला और चुनाव आयोग को सरेआम चुनौती दी.
कानून के मुताबिक धारा-144 का उल्लंघन के आरोप में पहले एफआईआर होती है और फिर गिरफ्तारी भी की जाती है.
कहानी यहीं खत्म नहीं होता. बीजेपी ने आज एक नहीं, बल्कि दो-दो बार धारा-144 की धज्जियां उड़ाई. सबसे पहले दिन में 11.30 बजे के करीब बीएचयू गेट पर अमित शाह, अरूण जेटली जैसे बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने धारा-144 के बावजूद ‘सत्याग्रह’ करते हुए हज़ारों की भीड़ इकट्ठा कर ली. प्रशासन इस वक्त भी मौके पर मौजूद था, पर उसने न तो किसी को इकट्ठा होने से रोका और न ही गिरफ्तार किया.
ऐसे में एक बार फिर से इस बात की संभावना मज़बूत होती जा रही है कि यह मोदी का रोड शो नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा का ज्वाइंट रोड शो था. ताकि ऐन चुनाव के मौके पर दोनों ही अपने-अपने वोटरों को ध्रुवीकरण का सही संदेश पहुंचा सके.