बनारस में फासीवादी हिंसा और बलात्कार की संस्कृति के खिलाफ कैंडल मार्च

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BeyondHeadlines News Desk

वाराणसी के प्रगतिशील जनसंगठनो के साझा मंच “बना रहे बनारस” के बैनर तले प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ती तीस्ता सीतलवाड़ के नेतृत्व में टाऊन हाल मैदागिन से आजाद पार्क लहुराबीर चौराहे तक कैंडिल मार्च निकालकर फिरकापरस्त ताकतों और बलात्कार की संस्कृति के खिलाफ विरोध जताया. इस विरोध प्रदर्शन कैंडिल मार्च में वाराणसी के विभिन्न प्रबुद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार और सम्मानित नागरिक और विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नेता और प्रतिनिधि शामिल हुए.

कैंडिल मार्च के बाद आजाद पार्क में हुए सभा में मानवाधिकार कार्यकर्ती तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि पुणे में फेसबुक विवाद के कारण बीते सोमवार को 24 वर्षीय निर्दोष आईटी इंजीनियर मोहसिन शादिक शेख को कट्टर हिंदू-वादी संगठन ‘हिन्दू राष्ट्र सेना’ द्वारा पीट-पीट कर मार डाला गया. हिन्दू राष्ट्र सेना द्वारा 200 पब्लिक ट्रांसपोर्ट और निजी वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. मोहसिन की पिटाई में शामिल युवकों द्वारा मोहसिन की मौत के बाद मोबाईल से आपस में एक दुसरे को यह मैसेज भेजा गया कि पहला ‘विकेट गिर गया’ जो यह प्रदर्शित करता है कि यह कोई आवेश में की गई हिंसा नहीं, बल्कि यह हिन्दू राष्ट्र सेना की कट्टर फासीवादी विचारधारा के कारण सुनियोजित तरीके से की गयी अमानवीय और धर्म के नाम पर नफ़रत फ़ैलाने वाली घटना है. इस घटना की सभी धर्म और जातिय भेदभाव की खिलाफत करने वाले लोगों ने एक स्वर में घोर निंदा किया और इस घटना में आरोपियों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही की मांग केंद्र सरकार से किया जाना चाहिये.

‘बना रहे बनारस’ साझा मंच की संयोजिका मुनिजा रफ़ीक खान ने कहा कि आज देश के विभिन्न राज्यों में राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, बंगाल, बिहार सहित उत्तर प्रदेश में महिलाओं और लड़कियों के साथ लगातार बढ़ती बलात्कार की घटनाएं, भ्रूण हत्या पितृसत्तात्मक फासीवादी ताक़तों द्वारा किया जाने वाला हिंसा का भयानक व विभस्त रूप है. यह न केवल पितृसत्ता और लैंगिक गैर-बराबरी पर आधारित सोच को घटनाओं के रूप में सामने ला रहा है, बल्कि क़ानून व सुरक्षा व्यवस्था को भी कड़ी चुनौती दे रहा है, जो कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश व समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है.

एक तरफ़ सांप्रदायिक एवं फ़ासीवादी ताकतें लोकतांत्रिक मूल्यों को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं और उसके सामंती मानसिकता से ग्रस्त गुर्गे लगातार अपने चरम व घोर पितृसत्ता मूल्यों को अपने कुकृत्यों से पोषित कर रहे हैं. इस समय समाज के सभी लोगों को महिलाओं, बच्चों, अल्पसंख्यकों पर बढ़ते जातिगत, सांप्रदायिक हमले का खुलकर हर मोर्चे पर विरोध करना चाहिये और सरकार पर लगातार यह दबाव बनाया जाना बहुत ज़रूरी है कि वह इस प्रकार की घटनाओं को बहुत संवेदनशील ढ़ंग से संज्ञान में लेते हुए हल करना होगा.

कैंडिल मार्च में साम्प्रदायिक ताकतें हो बरबाद, फासीवादी ताकतें हो बरबाद, कट्टरपंथी विचारधारा हो बरबाद, बलात्कार की संस्कृति हो बरबाद, जैसे नारे बुलन्द कर पुरजोर खिलाफत किया गया.

मार्च में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों फारवर्ड ब्लाक, कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (मार्क्सवादी), कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी, सहित कई जनसंगठन, प्रगतिशील लेखक संघ, विजन, मानवाधिकार जननिगरानी समिति, रंगमंच से जुड़े रंगकर्मी, रिहाई मंच, साहित्यकार, बुद्धिजीवी, चिंतक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हुए.

प्रमुख रूप से व्योमेश शुक्ला, संजय श्रीवास्तव, संजय भट्टाचार्य, अतीक अंसारी, कामरेड हीरालाल, डाo लेनिन रघुवंशी, ज़हीर, हाजी इश्तियाक, मोहम्मद बिलाल, जागृति राही, रियाजुलहक, अब्दुल्ला खान, शिरिन शबाना खान, शिव प्रताप चौबे, इरशाद अहमद, छाया, अजय सिंह, अजित सिंह आदि सैकड़ों कार्यकर्त्ता शामिल हुए.

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