काला धन का कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है मोदी सरकार के पास!

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BeyondHeadlines News Desk

कभी काले धन के मुद्दे पर पूर्व की यूपीए सरकार हमेशा बीजेपी के निशाने पर रही थी. बीजेपी के नेताओं ने हमेशा आरोप लगाया कि यूपीए सरकार जान-बुझ कर विदेशों में काला धन रखने वाले भारतीयों के नाम का खुलासा करने से बच रही है. साथ ही जनता को भी कई आंकड़े पेश करके बताया गया कि अगर काला धन वापस आ गया तो इस देश की गरीबी समाप्त हो जाएगी.  विभिन्न अनुमानों के अनुसार यह 500 अरब डॉलर (करीब तीन लाख करोड़ रुपये) से 1400 अरब डॉलर (करीब आठ लाख करोड़ रुपये) के बीच है. लेकिन अब जब बीजेपी खुद सत्ता पर काबिज हो चुकी है तो काले धन से जुड़े अपने ही तथ्यों को आधिकारिक आंकड़ा नहीं मानती है, बल्कि खुद ही काले धन से जुड़े तथ्यों को दबाना चाहती है. बीजेपी के नेता खुद ही बता रहे हैं कि विदेशी बैंकों में देश का कितना काला धन जमा है, इसका कोई प्रामाणिक आंकड़ा किसी के पास नहीं है.

दिलचस्प बात तो यह है कि जो पार्टी खुद ही विदेश के बैंकों में खाता रखने वाले भारतीय नागरिकों का ब्यौरा के लिए पिछली यूपीए सरकार पर दबाव बनाती रही है, अब वो खुद विभिन्न देशों के साथ कराधान बचाव समझौते के गोपनियता प्रावधानों का जिक्र करते हुए विदेश बैंकों में खाता रखने वाले भारतीय नागरिकों का ब्यौरा देने से इनकार कर रही है.

पिछले दिनों सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत राजस्व विभाग के केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने कहा, ‘विदेशी प्राधिकरणों से विदेशी बैंकों में खाताधारक भारतीयों के बारे जानकारी दोहरे कराधान बचाव समझौते के तहत प्राप्त हुई है. संधि के प्रावधानों में यह गोपनीयता संबंधी बातें हैं. इसलिए विभाग को प्राप्त ब्यौरे की जानकारी नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इसे सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 की धारा 8 (1) (ए) और धारा 8 (1) (एफ) के तहत छूट प्राप्त है.’

इतना ही नहीं, सूचना के अधिकार के तहत मिले अहम दस्तावेज़ बताते हैं कि सरकार तीन साल बाद भी नहीं पता लगा पाई है कि देश और विदेश में कितना काला धन लगा हुआ है. हालांकि इसकी मात्रा का अनुमान लगाने के लिए यूपीए सरकार ने क़वायद शुरू की थी. यह और बात है कि अब तक इसको लेकर सरकार के हाथ खाली हैं. देश के अंदर और बाहर काले धन का पता लगाने के लिए 21 मार्च, 2011 से अध्ययन शुरू किया गया था.

इसकी कमान दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) एवं नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक्स रिसर्च (एनसीएईआर) तथा हरियाणा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट (एनआईएफएम) के हाथों में दी गई थी. अध्ययन को पूरा करने के लिए 18 महीने का समय था. यह अवधि 21 सितंबर, 2012 को पूरी हो गई.

सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आवेदन के जवाब में वित्त मंत्रालय ने बताया कि इस पर अध्ययन पूरा किया जाना अभी बाकी है. अब देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उच्चतम न्यायालय के ही पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम बी शाह के नेतृत्व में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी)  कितने दिनों में यह आंकड़े जुटा पाती है.

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