मैं नन्दू की मदद नहीं कर सका…

Beyond Headlines
3 Min Read

Siraj Mahi for BeyondHeadlines

हर रोज़ की तरह उस दिन भी मैं शाम को सड़क की तरफ सैर करने के लिए जा रहा था. रास्ते में माहौल रोज़ जैसे रहता था, आज उससे अलग था. लोगों की भीड़ सामने सड़क के किनारे लगी थी. मोहल्ले के ही कुछ लड़के थे, झुंड बना कर कुछ मज़ाक जैसा चल रहा था.

पास जाकर देखा तो एक लड़का जिसका नाम नन्दू था. लोग उसे मुर्गा बनाकर उस पर ईंटे रखकर उसके नितम्ब पर चप्पल मार रहे थे. वह रो-रो कर एक ही बात कह रहा था कि मैं चोर नहीं हूं… मैं चोर नहीं हूं… वह ईटों के भार से कई बार ईंटों के साथ गिर जा रहा था और जब वह गिर जाता तो लोग उसे और मारते. बाकी लोग खड़े होकर जोर से ठहाके मार कर हंसते…

वह भी पड़ोसी ही था. इस नज़ारे को देख कर मेरे तो होश उड़ गए.लोगों से मालूम किया तो पता चला कि इस लड़के ने अपने पड़ोस के घर से कुछ रुपये चुरा लिए हैं. यही कोई डेढ़ सौ रुपये…जबकि ना किसी ने देखा था और न किसी के पास कोई सबूत था.

मैं उस नन्दू की मदद करना चाहता था, लेकिन सोचा कि मैं इतने लोगों के बीच क्या कर सकता हूं. बस फिर क्या था…. मैंने अपना मक़सद याद किया और सैर पर निकल पड़ा.

रात को करीब 10 बजे के बाद वह खबर फिर सूनाई दी कि उन लोगों ने उस लड़के का टकला बनाकर उसे गलियों में घुमाया. वह लोग इतना मज़ा शायद इसलिए ले रहे थे, क्योंकि उन सबके अन्दर शायद चोर मौजूद था. जो चोर नहीं होता उसे चोर को सजा देने में कोई मज़ा नहीं आता.

हमारे आस-पास के छोटे होटलों पर ना जाने ऐसे कितने ही बच्चे ‘छोटू’ नाम के मिल जाएंगे जो ग्राहक बनकर आए शरीफों की डांट के साथ-साथ ज़रा सा काम गलत होने पर अपने मालिक की लात घूंसे की बारिश उन पर होती है.

मैं नन्दू की मदद नहीं कर सका, क्योंकि मुझे लगा था कि शायद उसने चोरी की होगी. फिर वह मार खा रहा था, उससे मुझे क्या मतलब… लेकिन बाद में पता चला कि उस लड़के ने चोरी नहीं की, जिस आदमी का पैसा था उसने अपने ही घर में दूसरी ताख पर रखा हुआ था. तब मुझे अपने आप पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस  हुई, जो उस समय मैंने नन्दू की मदद नहीं की. ऐसे ही ना जाने कितने अत्याचार हमारे आस पा होते रहते हैं. लेकिन हमारी आंखे तब खुलती हैं जब ये हादसे हमारे साथ या फिर मेरे अपनों के साथ होता है.

Share This Article