Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
जामिया नगर इन दिनों उबल रहा है. यह उबाल यहां की ध्वस्त हो चुकी व्यवस्था का है. बिजली की बेहद ही खराब हालत ने यहां के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. गर्मी व भीषण उमस में तपे-थके लोग अब विरोध के लिए इकट्ठा हो रहे हैं, तो उन्हें पुलिस की लाठियां झेलनी पड़ रही हैं.
रमज़ान के पाक महीने में रोज़ेदारों को अपनी जायज़ ज़रूरतों के लिए थानों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. न कोई सुनने वाला है… न कोई झांकने वाला… काउंसलर से लेकर सांसद तक किसी ने इस ओर झांकने की भी ज़रूरत नहीं समझी है. (हां! इलाके के विधायक ने इसके लिए उप-राज्यपाल नजीब जंग के घर के बाहर धरना ज़रूर दिया है.)
जामिया नगर बर्बादी के मुहाने पर खड़ा अपनी तक़दीर को रो रहा है. स्थानीय निवासी सेराज़ अख्तर बताते हैं कि नेता तो यहां थोक के भाव में हैं. लेकिन जैसे ही वो चुनाव जीतते हैं, इलाके को पूरी तरह से भूल जाते हैं. इतनी गर्मी में 12-13 घंटे बिजली जाना कौन से ‘अच्छे दिन’ की निशानी है? चलिए दिन तो कैसे भी गुज़र जाता है. लेकिन हमारी रातें और बुरी हो गई हैं.
ज़्यादातर स्थानीय लोगों का कहना है कि पूरे दिन बिजली नहीं आने से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. इफ्तार के समय लोगों के घरों एवं मस्जिद में पानी खत्म हो जाता है. उनकी ज़िन्दगी एकदम से नरक बन चुका है. वो बताते हैं कि बिजली कटौती के चलते यहां सारे कारोबार ठप हो गये हैं. समस्या से निजात दिलाने वाला कोई नहीं है.
बटला हाउस में रहने वाली एन. फातिमा ज़ैदी बताती हैं कि यह इलाका तो बिल्कुल नरक बन चुका है. जबसे रमज़ान शुरू हुआ है, हमारी मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं. जैसे ही हम किचन में अफ्तार बनाने के लिए घुसते हैं, वैसे ही बिजली गायब…. अब क्या करें अफ्तार तो बनाना ही हैं. आग के भट्टे जलते हुए मोमबत्ती की रौशनी में यह काम करना पड़ता है. वो यह भी बताती हैं कि बिजली के कारण सबसे अधिक समस्या औरतों को ही होती है. मर्द तो जैसे ही बिजली जाती है, सड़कों पर टहलने निकल जाते हैं. पर हम तो कहीं जा भी नहीं सकते.
इस इलाके में करीब दस सालों से रह रहे जर्नलिस्ट व आन्तरिक व विदेशी मामलों के जानकार मो. रेयाज़ बताते हैं कि मैं जबसे इस इलाके में कभी ऐसी समस्या नहीं हुई है. शायद दिल्ली में ऐसा पहली बार हो रहा है कि बिजली के लिए लोगों को सड़कों पर उतरना पड़ रहा है. आगे वो यह भी बताते हैं कि दरअसल, समस्या ट्रांसफर्मर और लोकल लीडरशीप की भी है. जबसे इस इलाके में हूं, एक भी नया ट्रासंफर्मर नहीं देखा और न ही किसी काउंसलर या विधायक या सांसद ने इस ओर ध्यान दिया. जबकि इलाके में पिछले दस सालों में आबादी पांच गुणा बढ़ गई है.
वहीं आम आदमी पार्टी से जुड़े स्थानीय नेता अमानतुल्लाह खान बताते हैं कि हमारे धरने के बाद बीएससीएस के अधिकारियों ने अगले 3-4 दिनों में 11 नए ट्रांसफर्मर लगाने की बात कही है. उम्मीद है कि अगले कुछ दिनो में बिजली का मामूल ठीक हो जाएगा और इलाक़े को को इस गर्मी से कुछ आराम हासिल होगा.
स्पष्ट रहे कि यह वही इलाका है, जिसका नाम सुनते ही सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो जाते हैं. बटला हाउस के नाम पर सियासत करने वालों की भी अच्छी-खासी जमात है, मगर यहां की तकलीफों से किसी को कोई वास्ता नहीं है.
यहां के बाशिंदे रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए दर-दर की ठोकरें खाने व ज़लालत झेलने पर मजबूर हैं. यही यहां की तक़दीर है. इन सबके बीच कुदरती बारिश ने कल से थोड़ी राहत ज़ररू दे दी है, मगर इससे न तो बिजली की समस्या हल होने जा रही है और न ही बारिश के चलते होने वाले दुश्वारियों पर कोई फर्क पड़ने जा रहा है.
