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मुसहर समाज में शिक्षा की अलख जगाता एक संस्था

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

फ़ासला बनारस से सिर्फ़ लगभग 50 किलोमीटर… बड़े शहर से निकली बड़ी सड़कें यहां पहुंचते-पहुंचते छोटी हो जाती हैं. ऊबड़-खाबड़ भी… ये क़रीब चालीस मूसहर परिवारों की बस्ती है. नाम है शहनपुर….

सरकारी स्कूल यहां की इकलौती पक्की इमारत है. 1 जुलाई मंगलवार के दिन जब मैं यहां पहुंचा तो क़ायदे से सुबह के दस बजे स्कूल बच्चों से आबाद होना चाहिए था. लेकिन यहां न शिक्षिका थी न बच्चे. बस एक बुज़ुर्ग चारपाई डालकर लेटा था.

गांव वालों का आरोप है कि स्कूल अक्सर बंद रहता है, क्योंकि शिक्षिका मूसहर बच्चों को अपना नहीं पाती. सड़क पार एक और बस्ती है जहां से कुछ बच्चे इस स्कूल में पढ़ने आते हैं. उस दिन वो भी नहीं आए थे.

IMG_3601लेकिन ये शहनपुर की पूरी तस्वीर नहीं है. इसका एक दूसरा पहलू भी है. जो एक सामाजिक संस्था के प्रयासों से रोशन है.

पीपुल्स विजिलेंस कमिटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) इसी बस्ती में बच्चों के लिए के रिमेडियल सेंटर संचालित करती है, जिसमें क़रीब 38 मूसहर बच्चे पढ़ते हैं.

यहां पढ़ाने वाले रंजीत कुमार भी मूसहर ही हैं. बीए पास रंजीत बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ अंग्रेज़ी में एमए की पढ़ाई भी कर रहे हैं.

रंजीत कहते हैं, “मैंने बचपन से अपने समाज के पिछड़ेपन को देखा और सहा है. मुझे जौनपुर में नौकरी का अवसर भी मिला था. लेकिन अपने समुदाय के बच्चों को पढ़ाना मुझे बड़ा काम लगा.” सामाजिक संस्था पीवीसीएचआर रंजीत को वेतन भी देती है.

जब मैं वहां पहुंचा तो कुछ बच्चे पढ़ाई और बाक़ी कैरम खेलने में लीन थे. बच्चों का मन पढ़ाई से ज़्यादा खेल में लगता है, इसलिए रंजीत ने बच्चों को पढ़ाने का नया तरीक़ा निकाला है.

वे कविताओं के ज़रिए बच्चों को गिनती और वर्णमाला सिखाते हैं. एक कविता जो मैंने वहां सुनी-

एक बड़े राजा की बेटी

दो दिन से बिस्तर पर लेटी

तीन डॉक्टर दौड़े आएं

चार दवा की पुड़िया लाएं

पांच मिनट में घोल बनाए

छः छः मिनट बाद पिलाए

सात दिनों तक दवा चली

आठवें दिन वो मां से बोली

नवें दिन वो दौड़ लगाई

दसवें दिन वो स्कूल को आई…

शहनपुर गांव की ये पहली पीढ़ी है, जो कविताओं के ज़रिए शिक्षा के पथ पर चल रही है. इससे पिछली पीढ़ी अशिक्षा का दंश झेल रही हैं.

पढ़ा लिखा न होने के कारण मूसहर समाज के लोग सरकारी योजनाओं का भी फ़ायदा नहीं उठा पाते हैं. शहनपुर के पिछड़ेपन का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सरकारी स्कूल के अलावा यहां एक और जो पक्का मकान है. वह इंदिरा आवास योजना के तहत बना है. लेकिन उसकी भी छत अधूरी ही रह गई है.

पीवीसीएचआर शहनपुर के अलावा ऐसी ही पांच और बस्तियों में रिमेडियल सेंटर संचालित करती है. तरक़्क़ी की दौड़ में पीछे रह गए समाज को पटरी पर लाने की ये कोशिश भर है. उम्मीद है ये कोशिशें कामयाब होंगी.

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