सहारनपुर में हुआ संघर्ष स्थानीय प्रशासन के फेल होने का नतीजा –रिहाई मंच

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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में अल्पसंख्यक समुदाय के दो गुटों के बीच हुए हिंसक संघर्ष की निंदा करते हुए कहा है कि गुरुद्वारे और मस्जिद के बीच ज़मीन के विवाद को लेकर जो संघर्ष हुआ वह पूरी तरह से स्थानीय पुलिस प्रशासन और खुफिया के फेल होने का परिणाम है.

भाजपा और उसके सहयोगी संगठन पिछले एक साल से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने में लगे थे जिसका परिणाम मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा रही, जिसमें लाखों लोग विस्थापित हुए, सैकड़ों हत्याएं हुईं और दर्जनों बलात्कार हुए. आज वही सांप्रदायिक ताकतें वही एक बार फिर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने में लगी हैं.

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि इस संघर्ष में जिस तरह से चार लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, वह अचानक उपजे किसी संघर्ष का नतीजा नहीं है. बल्कि इसके लिए पहले से ही तैयारियां की गई थीं. लेकिन प्रशासन हालात की गंभीरता का अंदाजा लगाने में विफल रहा.

उन्होंने कहा कि इससे पहले भी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा सन् 2011 में गांधी जयंती के दिन उत्तराखंड के रुद्रपुर में सिक्खों और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष कराया जा चुका है. सहारनपुर में आज जिस तरह से हालात बेकाबू हुए हैं और वहां पर कर्फ्यू लगाना पड़़ा है वह सांप्रदायिक ताक़तों की गंभीर साजिश का नतीजा हैं.

बहुत पहले से चल रहे इस विवाद में जिस तरह से अचानक हिंसा भड़क उठी और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, उससे यह साबित होता है कि सपा सरकार हिंसा फैलाने वालों के साथ थी.

उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग रमज़ान के महीने को भी किसी भी तरह सांप्रदायिक हिंसा से रंगने की कोशिश करते ही रहते हैं, जिसका असर आज कांठ से लेकर, मुरादाबाद और लखनऊ तक में दिख रहा है.

मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सहारनपुर, मेरठ और कांठ की घटना को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसी तरह संज्ञान में लेना चाहिए, जिस तरह उसने मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा का लिया था.

उन्होंने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिकता फैला रहे भाजपा सांसदों और विधायकों की सदस्यता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  खारिज कर देनी चाहिए.

रिहाई मंच इलाहाबाद के प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कांठ में एक मंदिर पर लाउडस्पीकर लगाने को लेकर पिछले कई दिनों से बने हुए तनाव और इस प्रकरण में भाजपा की भूमिका की आलोचना करते हुए कहा कि मुज़फ्फरनगर दंगों में अफवाह फैलाने के मुख्य आरोपी भाजपा विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा द्वारा फैलाई गई अफवाह के बाद जेल में रहते हुए अपने फेसबुक से सांप्रदायिक अफवाह फैलाने के खिलाफ रिहाई मंच द्वारा अमीनाबाद पुलिस थाना लखनऊ में दो तहरीर दी गई थी, लेकिन आज तक उस पर कोई कारवाई नहीं हुई.

उल्टे थाना प्रभारी अमीनाबाद ने सुरेश राणा के लोगों को सूचित कर दिया कि उनके खिलाफ तहरीर मिली है और उनके लोगों ने उस फेसबुक एकाउंट के फर्जी तरीके से चलाए जाने के खिलाफ एक मुक़दमा दर्ज करा दिया.

उन्होंने कहा कि रिहाई मंच सपा सरकार को भाजपा विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा के खिलाफ सबूत दे रहा है. इसके बावजूद भी सपा सरकार सुरेश राणा और संगीत सोम को हिरासत में लेने से बच रही है.

उन्होंने कहा कि  सपा सरकार इन सांप्रदायिक हिंसा और तनावों को हवा देने वालों का साथ जानबूझ कर दे रही है. इससे यह साफ हो जाता है कि सपा सरकार की निष्ठा किसके साथ है.

रिहाई मंच के नेता अनिल यादव ने कहा है कि पिछले दिनों लखनऊ में वक्फ संपत्तियों को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के नाम पर जिस तरह से हिंसक बवाल हुआ और उसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी, से साफ है कि उत्तर प्रदेश की कानून और व्यवस्था काफी जर्जर हो चुकी है.

जहां तक वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की बात है सपा सरकार ने स्वयं अपने चुनावी घोषणापत्र में यह माना था कि वक्फ की संपत्तियों पर अवैध कब्जा है और उसे सरकार द्वारा अवैध कब्जे से मुक्त करवाने की बात भी कही थी. स्वयं सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख है कि मुसलमानों की हालत बेहद खस्ता है, अब जब इस हालात में उनकी ज़मीनों पर अवैध कब्जा होगा तो उनके हालात और भी खराब होंगे. लेकिन अब सरकार कान में तेल डाले बैठी है और जिसका फायदा सांप्रदायिक ताकतें अपने व्यक्तिगत लाभों के लिए लोगों की भावनाएं उकसाकर ले रही हैं.

रिहाई मंच के नेता हरेराम मिश्र ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद से लेकर कांठ तथा लखनऊ तक जितनी भी सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं वह सरकार की सांप्रदायिकता परस्त नीतियों के ही कारण घटी हैं. मुज़फ्फरनगर में दंगाइयों द्वारा मार दिए गए ग्राम डूंगर थाना फुगाना के मेहरदीन के इंसाफ के लिए रिहाई मंच के नेता राजीव यादव द्वारा दर्ज कराई गई. एफआईआर के बाद भी दंगाइयों के दबाव में मृतक के शव को कब्र से निकलवाने और पोस्टमार्टम करवाने में सपा सरकार पीछे हट गई थी. इससे साफ है कि सपा सरकार की नीतियां पूरी तरह से अपने सांप्रदायिक जनाधार को तुष्ट करने वाली ही दिख रही है. यही वजह है कि सांप्रदायिक ताकतों के हौसले बुलंद हैं.

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