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मानवाधिकार को नए सिरे से परिभाषित किए जाने की ज़रूरत

BeyondHeadlines News Desk

सोनभद्र: ‘सरकार ने आज तक मानवाधिकार का परिभाषा घोषित नहीं किया है. इस वजह से मानव अधिकारों को लेकर हमेशा संशय बना रहता है. मनुष्य के लिए जो जरूरत की चीजें हैं, सत्ता ने लोगों को उससे दूर रखा है. देश और प्रदेश में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है. इसलिए मानवाधिकार को नए सिरे से परिभाषित किए जाने की ज़रूरत है.’

यह बातें मानवाधिकार संगठन ‘पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल)’ की सोनभद्र इकाई के वार्षिक सम्मेलन में पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष चितरंजन सिंह ने लोगों के सामने रखा.

चितरंजन सिंह ने देश में किसानों और गरीबों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि देश में साढ़े चार लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. करीब सवा एक लाख लोगों की मौत हर साल भूख से हो रही है. इसलिए विकास के मॉडल को मानवाधिकार के नज़रिए से भी देखने की ज़रूरत है. हमें मानवाधिकार के क्षेत्र को और अधिक विकसित करना पड़ेगा.

संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष अजीत सिंह ने कहा कि भारतीय बाजार विदेशियों के लिए खोला जाना चिंताजनक है. इसने भारतीय बाजार को तबाह कर दिया है, जिससे मानवाधिकारों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हो रहा है.

पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव एडवोकेट विकास शाक्य ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मानवाधिकार स्वतंत्र रूप से अपने फैसले को लागू नहीं करा सकता है और ना ही वह किसी मामले की जांच करा सकता है. उसे अपने फैसले को लागू कराने के लिए सरकारी एजेंसियों और निर्वाचित सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है. इस वजह से लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. वास्तव में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए एक स्वतंत्र जांच एजेंसी होनी चाहिए और कानून में यह प्रावधान होना चाहिए कि वह अपने फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करा सके.

पीयूसीएल की दुद्धी इकाई के संरक्षक डॉ. लवकुश प्रजापति ने मानवाधिकार के साथ-साथ मनुष्य की बुनियादी ज़रूरतों पर भी ध्यान देने की बात कही. उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर भी चिंतन करना चाहिए कि मनुष्य की जो ज़रूरते हैं, उसके आधार पर मानवाधिकार को परिभाषित किया जाए.

पूर्व छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता विजय शंकर यादव ने कहा कि मानवाधिकारों की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को जागरूक होना पड़ेगा. जब तक हर नागरिक अपने अधिकारों के लिए लड़ने का जज्बा नहीं बना लेता, तब तक सही मायने में मानव अधिकारों को सुरक्षा नहीं मिल पाएगा. इसके लिए अभियान चलाने की ज़रूरत है.

आदिवासी बहुल सोनभद्र से प्रकाशित हिन्दी साप्ताहिक समाचार-पत्र ’वनांचल एक्सप्रेस’ के संपादक शिव दास प्रजापति ने कहा कि सत्ता में काबिज सरकारें और उनकी पुलिस संगठित रूप से मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं. देश और प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों में खुलेआम बेगुनाहों का कत्ल किया जा रहा है. इतना ही नहीं उन्होंने इन कत्लेआम को अंजाम देने के लिए अपना तरीका भी बदल दिया. वे अब एक सोची-समझी साजिश के तहत खनिज संपदा से परिपूर्ण इलाकों में अवैध खनन को अंजाम दे रही हैं. वहां खुलेआम मजदूरों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है जिससे वे हर दिन हजारों की संख्या में मारे जा रहे हैं. सोनभद्र-मिर्जापुर समेत प्रदेश के विभिन्न इलाकों में हुए खनन हादसे इस बात के गवाह हैं. उसमें मारे गए लोगों को आज तक मुआवजा नहीं मिला है क्योंकि सत्ता द्वारा मामले की जांच के लिए बैठाई गई जांच कमेटी सालों बीत जाने के बाद भी अपनी रिपोर्ट शासन-प्रशासन को नहीं सौंप रही हैं.

27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हुआ खनन हादसा इसका जीवंत उदाहरण है, जिसकी जांच रिपोर्ट ढाई सालों बाद भी राज्य सरकार को नहीं सौंपी गई है. जबकि सोनभद्र में अवैध खनन का मामला उच्चतम न्यायालय में भी उठ चुका है और उसने इसे पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कराने का आदेश दिया है.

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