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BeyondHeadlines > Exclusive > पहले हम हिन्दुस्तानी हैं, बाद में हिन्दू या मुसलमान….
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पहले हम हिन्दुस्तानी हैं, बाद में हिन्दू या मुसलमान….

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published August 5, 2014
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11 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

Contents
यहां पढ़े: जौनपुर के मदरसे: सामाजिक क्रांति की एक झलकयहां पढ़े: बाल पंचायतः बड़ों की ज़िम्मेदारियाँ निभाते बच्चे

मदरसों के बारे में आम धारणा है कि यहां सिर्फ़ मुस्लिम बच्चे ही पढ़ते हैं, जिन्हें सिर्फ़ धार्मिक शिक्षा ही दी जाती है. उत्तर प्रदेश में जौनपुर के मदरसे इस धारणा को तोड़ रहे हैं.

इन मदरसों में न सिर्फ़ हिंदू बच्चे दुनियावी तालीम हासिल कर रहे हैं बल्कि ये हिंदू-मुस्लिम एकता और सद्भाव की मिसाल भी क़ायम कर रहे हैं.

इन मदरसों में हिंदू बच्चे संस्कृत में श्लोक पढ़ते हैं तो मुस्लिम बच्चों के लब उर्दू की सदाओं से रोशन रहते हैं. यही नहीं यहां शिक्षक भी दोनों समुदायों से हैं.

एक समय था जब इन मदरसों की सुध लेने वाला कोई नहीं था. लेकिन वाराणासी की मानवाधिकार जन निगरानी समिति की पहल ने इनकी कायापलट दी है.

मदरसों में दुनियावी तालीम उपलब्ध करवाने के लिए समिति ने मदरसों में दुनियावी तालीम देने के लिए मानक पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य पुस्तकें, कुशल प्रशिक्षित शिक्षक, बाल केन्द्रित शिक्षण पद्धति आदि उपलब्ध करवाए.

संस्था वाराणसी व जौनपूर के 20 मदरसों को आदर्श मदरसा बनाने के लिए कार्य कर रही है. इन मदरसों में बच्चे दीनी तालीम के साथ-साथ दुनियावी तालीम भी बखूबी हासिल कर रहे हैं.

यहां पढ़े: जौनपुर के मदरसे: सामाजिक क्रांति की एक झलक

मदरसा अबरे रहमत जौनपूर ज़िले के जलालपूर ब्लॉक के मझगवां कला गांव में है. इस मदरसे में 8वीं क्लास तक की पढ़ाई होती है. यहां तकरीबन 160 बच्चे हैं. जिसमें 60 फ़ीसदी बच्चे हिन्दू हैं. लड़कियों की तादाद भी अच्छी-खासी है.

इस मदरसा के मैनेजर बाबर कुरैशी, जो पेशे से एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचारपत्र के पत्रकार हैं, बताते हैं कि यह मदरसा 1985 से चल रहा है.

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बाबर कहते हैं, “शुरू से ही हमारा ध्यान रहा कि एक ऐसी संस्कृति विकसित की जाए, जो सबके सर्वागीण विकास की बात करती हो. इस देश में साम्प्रदायिक ताक़तें काफ़ी तेज़ी से सर उठा रही हैं, ऐसे में भारतीय सेक्यूलर नींव को मज़बूत करना काफ़ी अहम है. कहने को तो हम सेक्यूलर हैं, लेकिन अधिकतर लोगों से जब आप मिलेंगे तो पता चलेगा कि उनका एक भी मुस्लिम या हिन्दू दोस्त नहीं है. लेकिन यहां एक ऐसा कल्चर है, जहां बचपन से बच्चे एक दूसरे की संस्कृति को जानते हैं.”

वे बताते हैं, “हिन्दू बच्चे उर्दू पढ़ते हैं, तो मुस्लिम बच्चे संस्कृत सीख रहे हैं. हम हिन्दू बच्चों को कुरआन नहीं पढ़ाते, क्योंकि इस पर विवाद हो सकता है. साम्प्रदायिक लोग आरोप लगा सकते हैं कि हम धर्म परिवर्तन कराना चाह रहे हैं.”

मदरसे के बच्चों को सिर्फ़ किताबी तालीम ही नहीं दी जाती है बल्कि सांस्कृतिक कलाएं भी सिखाई जाती हैं.

बाबर बताते हैं कि यहां के बच्चे डांस व योगा दोनों करते हैं. शिक्षा के लिए खेल का भी सहारा लिया जाता है. आगे यह भी बताते हैं कि जैसे हम इस्लाम में हैं तो दीन जानना ज़रूरी है, ठीक उसी तरह से देश में रहना है तो इस देश की संस्कृति जानना काफी अहम है. इसीलिए यहां हर बच्चे को एक ही बात सिखाई जाती रहै कि पहले वो हिन्दुस्तानी हैं, बाद में हिन्दू या मुसलमान….

इस मदरसे में कुल 8 शिक्षक हैं. और सारे टीचर एम.ए. पास हैं. मो. ताहिर मध्यकालीन इतिहास में एम.ए. किया है. वो बताते हैं कि कुछ दिनों पहले तक यहां एक भी बच्ची तालीम हासिल नहीं करती थी, लेकिन अब इस मदरसे में 35 फीसदी लड़कियां हैं.

इस मदरसे में बच्चों ने अपनी बाल पंचायत भी बना रखी है, जिसका नाम अब्राहम लिंकन बाल पंचायत है.

यहां पढ़े: बाल पंचायतः बड़ों की ज़िम्मेदारियाँ निभाते बच्चे

जौनपूर ज़िले के जलालपूर ब्लॉक के ही पुरैव बाज़ार गांव में मदरसा चश्मे समद है. यहां करीब 120 बच्चे पढ़ते हैं. इस मदरसे में कुल 8 शिक्षक हैं, जिनमें तीन हिन्दू हैं. मदरसे के प्रिसिंपल अब्दुस सलाम के मुताबिक यह मदरसा 1962 से चल रहा है, लेकिन अभी बिल्डिंग का अभाव है. बच्चे टूटे-फूटे कमरों में ही तालीम हासिल कर रहे हैं.

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वो बताते हैं कि पहले हिन्दू बच्चे ज़्यादा थे. लेकिन बाद में कुछ लोगों ने उनके अभिभावकों को भड़काना शुरू कर दिया. इसलिए धीरे-धीरे अब संख्या कम हो रही है. अब सिर्फ 5-6 हिंदू बच्चे ही बचे हैं. शायद इसकी वजह सही बिल्डिंग उपलब्ध न होना भी हो सकता है.

मदरसे में पढ़ाने वाले बंशभूषण शर्मा बताते हैं कि जब उन्होंने यह मदरसा ज्वाइन किया तो कई लोगों ने बोला कि कहां जाकर फंस गए हो? बल्कि सच तो यह है कि मेरा मन भी अब पढ़ाने को नहीं हो रहा था. मदरसे के रजिस्टर में अपना नाम पप्पू लिखवाया था. पर अब इन बच्चों को पढ़ाकर काफी मज़ा आता है. 10 साल से इसी मदरसे में हूं.

वो बताते हैं कि मुसलमान बिरादरी अगर अपने पिछड़ेपन का कारण ढूंढ ले तो इतिहास को फिर से दोहराया जा सकता है. ज़रा सोचिए कि जब हम एक थे तो बाहरी (अंग्रेज़) को भी बाहर कर दिया. पर आज हम खुद बिखरे पड़े हैं. हमें फिर से एक होने की ज़रूरत है. बात-बात में शर्मा जी ने इतिहास की कई बातों का मिसाल हमारे सामने पेश की. साथ ही इस बात का भी अहसास कराया कि मुसलमानों का एक ज़बरदस्त इतिहास रहा है.

इस मदरसे की अध्यापिका दुर्गा वर्मा यहां 3 साल से बच्चों को पढ़ा रही हैं. उर्दू छोड़कर वो यहां हर विषय बखूबी पढ़ाती हैं. वो बताती है कि कुछ लोग मुझसे पूछते हैं तो मैं उन्हें अपने मदरसे के बारे में बताने में खुशी महसूस करती हूं. कई लोगों को बोला कि वो अपने बच्चों को मदरसा भेजे. और वो अब फिर से मदरसा आने को तैयार होने लगे हैं.

IMG_3631जौनपूर ज़िले के रामपूर ब्लॉक के सेमुहीडीह गांव में अभी मदरसे की नई बिल्डिंग बन रही है, इसलिए बच्चे सामने ही पीपल के पेड़ के छांव में पढ़ते हैं. यहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या लगभग 60 है. जिसमें 12 बच्चे हिन्दू हैं. इस मदरसे को चलाने वाले शहादत अली प्राचीन इतिहास में एम.ए. कर चुके हैं. वो बताते हैं कि उन्हें अपने गांव से काफी लगाव है, और वो गांव में रहकर ही गांव की सेवा करना चाहते हैं.

वो बताते हैं कि वो अपनी पूरी उर्जा के साथ बच्चों को पढ़ाते हैं. यही वजह है कि गांव कई हिन्दू परिवार मिलकर अपने बच्चे को उनके मदरसे में भेजना चाहता है.

कुछ ऐसी ही बेशुमार बातें व कहानियां दूसरे मदरसों की भी हैं. इनकी संख्या 20 है. मानवधिकार जन निगरानी समिती (पीवीएचसीआर) मदरसों के इन बच्चों को दुनियावी तालीम के साथ जोड़ने की कोशिशें कर रही है.

पीवीएचसीआर से जुड़े राजेन्द्र प्रसाद इन 20 मदरसों की बाल पंचायत प्रोग्राम के कोऑर्डिनेटर हैं. और इसका मक़सद बच्चों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना है.

राजेंद्र कहते हैं, “हम एक ऐसा साझा माहौल बनाने की कोशिश में लगे हैं, जहां हर कोई खुद को हिन्दुस्तानी कहे. खुद को हिन्दू या मुसलमान नहीं.”

क्रांति कुमार के कंधो के उपर इन मदरसों में आई.टी.ई. सेन्टर स्थापित करने की ज़िम्मेदारी है. उनके मुताबिक अब तक 5 मदरसों में यह सेन्टर स्थापित किया जा चुका है. वो बताते हैं कि मदरसों को लेकर लोगों में काफी भ्रम रहता है. लेकिन सच यह है कि इन मदरसों के बच्चे काफी टैलेन्टेड होते हैं, बस उनको एक दिशा देने की ज़रूरत है.

वो यह भी बताते हैं कि इस देश में कई साइंटिस्ट इन्हीं मदरसों से पढ़े हैं. वो चाहते हैं कि इन मदरसों के बच्चों को कंवेंट स्कूल की तमाम सुविधाएं मिलनी चाहिए. उन्हें विश्वास है कि सुविधाएं मिलने पर मदरसों के बच्चे भी मुख्यधारा की शिक्षा प्राप्त कर देश के लिए काम कर सकते हैं.

क्रांति कुमार फिलहाल तकनीक का इस्तेमाल कर बच्चों के पाठ्यक्रम को रोचक व सरल बनाने में जुटे हैं. बच्चे जब फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी के माध्यम से पढ़ते हैं, तो खूब मज़ा आता है. और सीखते भी काफी जल्दी हैं.

घनश्याम साइंस व मैथ के प्रशिक्षक हैं. वो इन मदरसों के शिक्षकों को प्रशिक्षण देने का काम करते हैं. वो शिक्षकों को यह बताते हैं कि कैसे बच्चों को खेल-खेल में साइंस या मैथ पढ़ाया जा सकता है.

घनश्याम कहते हैं कि मदरसे के बच्चे भी देश का भविष्य हैं. अगर देश को मज़बूत बनाना है तो इनको भी मजबूत बनाना होगा. क़लम का आविष्कार चाहे जिसने भी किया हो, लेकिन यह हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई सबके काम आता है.

सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक कट्टरता के इस दौर में ये मदरसे शांति, सद्भाव और तरक्की के लिए एक नई उम्मीद हैं. बच्चों के दिलों में दूसरों के धर्म के प्रति मुहब्बत पैदा कर ही धार्मिक कट्टरता को कम किया जा सकता है. और ये मदरसे इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं.

ये अलग बात है कि इनकी संख्या बहुत कम है. लेकिन एक सच यह भी है कि दियों से ही दिए रोशन होते हैं. उम्मीद है और भी मदरसों जौनपुर व वाराणासी के इन मदरसों की राह पर चलकर धार्मिक सद्भाव की मिसाल क़ायम करेंगे.

TAGGED:Lenin Raghuvanshimadarsamadarsa in jaunpurPVCHRपहले हम हिन्दुस्तानी हैंबाद में हिन्दू या मुसलमान....
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